लड़कियों के साथ तमीज से पेश आओ

punjabkesari.in Thursday, Apr 26, 2018 - 02:18 AM (IST)

नेशनल डेस्कः कठुआ और सूरत में नाबालिग बच्चियों के साथ रेप और फिर नृशंस हत्या की खबरों के बीच किसी एक फिल्म चैनल पर एक हॉलीवुड फिल्म देखने को मिली जो एक विधवा मां और पति से दुखी बेटी के रिश्तों पर थी, जो अपने-अपने दुखों के बीच खुश रहने के रास्ते तलाशती हैं। बेटी कैंसर की शिकार हो जाती है और डॉक्टर जवाब दे देते हैं। बेटी अपने 2 बेटों को आखिरी मुलाकात के लिए बुलाती है। बड़ा बेटा 7-8 साल का और छोटा 5 साल का। वह दोनों से कहती है कि मेरे जाने के बाद दोनों पिता को तंग मत करना और आपस में प्यार से रहना।  इसके बाद मरणासन्न महिला दोनों बेटों से कहती है ‘बी नाइस टू गल्र्स’ (लड़कियों के प्रति अच्छा व्यवहार रखना)। छोटा बेटा मां की बात मान जाता है। बड़ा थोड़ी हेठी दिखाता है तो मां उससे फिर कहती है कि लड़कियों के प्रति अच्छा व्यवहार रखना और उनके साथ तमीज से पेश आना। इस बार बड़ा बेटा भी मां की बात पर सिर झुका कर हां कहता है।

इस सीन को देखकर बरबस ही आंख में आंसू आ गए। एक तरफ भारतीय न्यूज चैनलों में कठुआ रेप केस और  उन्नाव रेप केस में हो रही राजनीति की खबरें लगातार आ रही थीं, वहीं फिल्मी चैनल में दिखाई जा रही एक अमरीकी फिल्म में एक मरणासन्न मां अपने बेटों को लड़कियों के साथ तमीज से पेश आने की सीख दे रही थी।

भारतीय न्यूज चैनलों में नेता रेप को ही हिंदू-मुसलमान बनाने पर तुले थे, रेप करने वालों के पक्ष में हो रही रैलियों में शामिल हो रहे थे, अपने राजनीतिक रसूख का फायदा उठाकर गिरफ्तारी से बच रहे थे, 3 बच्चों की मां के साथ कोई कैसे रेप कर सकता है जैसे बयान दे रहे थे,  आरोपी विधायक को माननीय विधायक जी कहा जा रहा था तो दूसरी तरफ अमरीकी फिल्म में मौत के मुहाने पर खड़ी मां अपने बच्चों से लड़कियों के प्रति अच्छा व्यवहार करने की मार्मिक अपील कर रही थी।

मैंने याद करने की कोशिश की, क्या किसी भारतीय फिल्म में मरती हुई मां ने अपने बेटों को ऐसी राय दी है? बहुत दिमाग खपाया लेकिन कोई  एक प्रसंग याद नहीं आया। फिल्म समाज का ही प्रतिबिम्ब होती है यानी अमरीकी समाज में बेटों से बेटियों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है और इसके लिए बाकायदा मां-बाप बेटों को आगाह भी करते हैं। ये सब उस समाज में होता है जिसे हम खुला-आजाद मानते हैं, जहां पारिवारिक रिश्तों को तरजीह नहीं दी जाती है, जहां बालिग होते ही बच्चे अपना अलग रास्ता तलाश लेते हैं लेकिन भारत जैसे देश में, जहां देवियों की पूजा की जाती है, जहां कंजकों में 7-7 लड़कियों के पैर धोए जाते हैं, वहां बेटों में लड़कियों का सम्मान करने का संस्कार नहीं डाला जाता।

2 साल पहले शामली जाना हुआ था। वहां कुछ पढ़े-लिखे बुजुर्ग जाट बिरादरी के लोगों से बात हुई। उन दिनों शामली में स्कूल-कालेजों के बाहर लड़कियों के साथ छेडख़ानी की घटनाओं की बाढ़-सी आई हुई थी। 2 दिन पहले ही छेडख़ानी को लेकर हुए एक बवाल में एक लड़के की मौत भी हो गई थी और एक मजहब विशेष के लोगों को गांव छोड़कर भागना पड़ा था। बातों-बातों में एक ने कहा कि उनके यहां मां और बहन के अलावा किसी अन्य महिला का सम्मान करना सिखाया ही नहीं जाता है।

अगर लड़के की मोहल्ले की किसी लड़की को छेड़ देने की शिकायत आती भी है तो उसे संजीदगी से नहीं लिया जाता, लड़के से डांट-डपट नहीं की जाती। बहुत हुआ तो फटकार लगा दी। उन सज्जन का यह भी कहना था कि आगे चलकर लड़के यही समझते हैं कि लड़की तो छेडऩे के लिए ही बनी है। हालांकि उन सज्जन का प्रतिवाद करते हुए दूसरों का कहना था कि ये सब 10-20  साल पहले होता रहा होगा लेकिन अब बदलाव आया है जिसमें तेजी लाने की जरूरत है।

बेटों पर भी लगाम लगाने की जरूरत
बेटों को भी कसने की जरूरत है या यूं कहा जाए कि बेटों को ही कसने की जरूरत है। इसकी तरफ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  भी इशारा कर चुके हैं। लाल किले के बाद हाल ही में लंदन में भी मोदी ने बेटों को नसीहत देने की बात दोहराई। उनका कहना था कि बेटा जब देर रात घर लौटता है तो उससे भी पूछा जाना चाहिए कि वह कहां था और क्या कर रहा था। लड़की छेडऩे की शिकायत मिलने पर बेटे के साथ सख्ती की जाए। बेटियों के साथ टोका-टाकी बहुत हुई, अब बारी बेटों से भी हिसाब लेने की है। मोदी की ङ्क्षचता सभी भारतीय मां-बाप की होनी चाहिए जिनके यहां बेटा पैदा होने पर छत पर चढ़कर थालियां पीटी गई हैं, मोहल्ले भर का मुंह मीठा किया गया है। अब अगर हॉलीवुड की उस फिल्म की मां की तरह देश में भी मांएं अपने बेटों से लड़कियों से तमीज से पेश आने को कहें तो शायद कुछ बात बने।

टू फिंगर टैस्ट को तुरंत बंद किया जाए
लेकिन इतने भर से बात नहीं बनने वाली। कुछ तो डर पैदा करना ही होगा। कानून का डर, जेल जाने का डर, जिंदगी भर सरकारी नौकरी या संगठित क्षेत्र में नौकरी नहीं मिलने का डर। हर रेपिस्ट को साफ-साफ पता होना चाहिए कि रेप किया तो पकड़ा जाना तय है, 2-4 महीने के अंदर सख्त से सख्त सजा होना तय है और नौकरी नहीं मिलना तय है। हर रेप केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में जाए। दो से ज्यादा तारीखें आरोपी पक्ष को नहीं दी जाएं।  एवीडैंस एक्ट में संशोधन हो ताकि रेप पीड़िता को बार-बार बयान देने या आरोपी पक्ष के वकीलों से सवाल-जवाब देने अदालत में नहीं जाना पड़े। महिला थानों की संख्या बढ़े। टू फिंगर टैस्ट को तुरंत बंद किया जाए। रेप पीड़िता को पूरी सुरक्षा दी जाए। उसे तुरंत मुआवजा दिया जाए।  दबंग आरोपियों को न तो पुलिस संरक्षण मिले और न ही राजनीतिक संरक्षण।

निर्भया फंड में जमा करीब 4 हजार करोड़ रुपयों का महिला कल्याण में इस्तेमाल हो। रेप के आरोपी नेता की उसी के दल की महिला नेता बचाव न करे। देश के दो बड़े राष्ट्रीय दलों यानी भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेता यानी अमित शाह और राहुल गांधी इन मुद्दों पर सहमत हो जाएं और प्रधानमंत्री के नाते नरेन्द्र मोदी कानूनी पहलुओं में जरूरी बदलाव की पहल करें तो देश की  बेटियां मुस्कुराते हुए कह सकेंगी- ‘अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।’

मोदी सरकार ने किया कानून में बदलाव
मोदी सरकार ने देश की जनता के भारी दबाव और आक्रोश के बाद रेप कानून में भारी बदलाव किया है। अब 12 साल तक की बच्चियों से सामूहिक रेप पर फांसी तक की सजा का प्रावधान कर दिया गया है। सवाल उठता है कि क्या फांसी का डर बच्चियों के रेप पर अंकुश का काम करेगा? राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के रेप के 94 फीसदी मामलों में रेप करने वाले रिश्तेदार, दोस्त, जान-पहचान के लोग होते हैं। अब जब फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया गया है तो कहा जा रहा है कि ऐसे मामले सामने ही नहीं आ पाएंगे, किसी अपने को ही फांसी का डर मामले को दबा सकता है। रेप को छुपाने के लिए रिश्तेदार-दोस्त ही दबाव डालेंगे। ऐसे में रेप का दंश बच्ची को चुपचाप सहना पड़ेगा।

दूसरी बात यह है कि जब रेप करने वाले को लगेगा कि पकड़े जाने पर फांसी होना तय है तो वह सबूत मिटाने के लिए पीड़िता को मार डालने की कोशिश करेगा। वैसे भी हत्या के लिए  फांसी का प्रावधान  होने के बाद भी देश भर में हत्याएं होती हैं और 385 ऐसे हत्यारे इस समय अलग-अलग जेलों में फांसी पर लटकाए जाने का इंतजार कर रहे हैं। वैसे भी जिस देश में कम उम्र की बच्चियों के रेप के मामले में तीन फीसदी को ही सजा हो पाती है, वहां बच्ची की हत्या होने पर सबूत और ज्यादा कमजोर हो जाएंगे।

यही सवाल दिल्ली  हाईकोर्ट ने भी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार से पूछा है।  अदालत का कहना है कि आखिर इतनी हड़बड़ी में रेप पर फांसी का कानून क्यों लाया गया और क्या सरकार ने किसी अध्ययन के आधार पर फैसला लिया? क्या सरकार ने किसी तरह की जांच में पाया कि मौत की सजा का प्रावधान करने पर रेप होने कम हो जाएंगे? अदालत का यह मानना था कि जब रेप करने वाले को लगेगा कि पकड़े जाने पर फांसी की सजा मिलना तय है तो फिर क्यों पीड़िता को जिंदा छोड़ेगा? कुल मिलाकर यही लगता है कि सरकार ने ऐसा कानून बनाकर जैसे खुद पर से जिम्मेदारी हटा दी है और जनता के बीच खुद को बेटियों का हितरक्षक बताने में लगी है। प्रधानमंत्री मोदी भी इस सच्चाई को समझ रहे हैं, यही वजह है कि पंचायती राज दिवस के मौके पर मध्य प्रदेश में एक रैली में प्रधानमंत्री ने कड़े कानून की बात तो कही लेकिन साथ ही साथ लड़कों को शिक्षित करने पर भी उतना ही जोर दिया।- विजय विद्रोही


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