‘बलात्कार’... आखिर कब तक

punjabkesari.in Tuesday, Apr 24, 2018 - 02:35 AM (IST)

कठुआ,उन्नाव, सूरत, एटा, छत्तीसगढ़़ आदि की घटनाओं ने बता दिया है कि भारत के लोग यौन आतुर रहते हैं। इन घटनाओं में छोटी-छोटी बालिकाओं के साथ बलात्कार किया गया और उनकी जघन्य हत्याएं की गईं, जिनके चलते लगता है कि भारत में महिलाओं के प्रति कोई सम्मान, निष्पक्षता, संतुलन, सहिष्णुता नहीं है। अन्यथा 8 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म की घटना का वर्णन किस प्रकार करें जिसे नशीली दवाएं देकर बेहोश किया गया और फिर 8 व्यक्तियों के द्वारा जम्मू के कठुआ जिले में एक मंदिर में उसका बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। वह जम्मू-कश्मीर के बकरवाल समुदाय की बालिका थी और उसके बलात्कार से उस क्षेत्र में और पूरे देश में आतंक, निराशा, खिन्नता और गुस्सा छाया हुआ है। 

दूसरे प्रकरण में उत्तर प्रदेश में भाजपा के एक विधायक ने न केवल एक किशोरी के साथ यौन उत्पीडऩ किया अपितु जब उसके पिता ने शिकायत की तो उसकी हत्या कर दी। उसके बाद गुजरात के सूरत, उत्तर प्रदेश के एटा और छत्तीसगढ़ में 8-9 साल की 3 बालिकाओं के साथ भी छेडख़ानी की घटनाएं सामने आईं। यही नहीं उत्तर प्रदेश में चलती रेलगाड़ी में 20 वर्षीय एक मानसिक विकलांग के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। ओडिशा में 19 वर्षीय एक मां का उसके पति के सामने बलात्कार किया गया तथा दिल्ली में दिन-दिहाड़े एक चलती कार में एक लड़की के साथ 5 लोगों ने बलात्कार किया। एक अस्पताल में बच्चे को जन्म देते समय एक अन्य महिला के साथ बलात्कार किया गया तथा हरियाणा में 80 वर्षीय एक वृद्ध ने 5 वर्षीय एक बालिका का बलात्कार किया। 

क्या आप इन घटनाओं से आहत हैं? बिल्कुल नहीं क्योंकि भारत में महिलाओं के विरुद्ध बलात्कार चौथा आम अपराध है। हमारे देश में प्रत्येक 5 मिनट में बलात्कार की एक घटना होती है। समाचारपत्रों में 2, 4, 6, 8 वर्ष की बालिकाओं के साथ बलात्कार के समाचार सुर्खियों में छाए रहते हैं। वर्ष 2016 में केरल में निर्भया कांड की पुनरावृत्ति हुई जब एक 30 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार कर उसके शरीर को क्षत-विक्षत किया गया। पिछले वर्ष एक प्रसिद्ध मलयाली अभिनेत्री के साथ कोच्चि के निकट 2 घंटे तक छेडख़ानी की गई। उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम कहीं भी जाएं, कहानी एक जैसी है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, उनके जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है और फिर भी हम अपने समाज को सभ्य समाज कहते हैं। 

इन घटनाओं पर भारत की गलियों और सड़कों पर गुस्सा देखने को मिल रहा है। यह किसी महिला के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार या उसके उत्पीडऩ का प्रश्न नहीं है अपितु इन घटनाओं से सभी चिंतित हैं। चिंता की बात यह है कि क्या हमने स्वयं का अपराधियों के समक्ष समर्पण करने का निर्णय कर लिया है। क्या इन जघन्य अपराधों से हमारे नेताओं की आत्मा जागती है? बिल्कुल नहीं। हमारे वाकपटु प्रधानमंत्री से ही शुरूआत करते हैं जो छोटी-छोटी बातों पर ट्वीट किया करते हैं किन्तु महिलाओं के साथ हुई इन घटनाओं पर मौन रहते हैं। हम नमो से यह अपेक्षा नहीं करते हैं कि वह प्रत्येक घटना पर टिप्पणी करें किन्तु इन घटनाओं ने देश को शर्मसार किया है, इसलिए उनसे टिप्पणी की अपेक्षा थी। इसकी बजाय उन्होंने कठुआ अैर उन्नाव की घटनाओं पर कहा कि इन घटनाओं पर 2 दिन से चर्चा हो रही है। 

हमारी बेटियों को निश्चित रूप से न्याय मिलेगा। अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा और न्याय अवश्य किया जाएगा, किन्तु निर्भया कांड के समय की तरह ये टिप्पणियां भी खोखली लगती हैं जब राजनेताओं ने बड़ी-बड़ी बातें की थीं किन्तु उन्होंने इस तथ्य की अनदेखी की थी कि हमारे शहर और वातावरण महिलाओं के लिए असुरक्षित बनते जा रहे हैं। वे ऐसी घटनाओं के प्रति आंखें बंद कर लेते हैं और आज स्थिति यह हो गई है कि यदि किसी महिला को सड़क-गली से उठा लिया जाता है या चलती कार में उनके साथ सामूहिक बलात्कार होता है तो हम चुप रहते हैं। 

राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार 2011 में बलात्कार के 24206 मामले, 2012 में 24923, 2013 में 33707 और 2014 में 37000 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से 24270 मामलों में अपराधी पीड़िता की जान-पहचान वाला रहा है। इन घटनाओं में वृद्धि का कारण ङ्क्षलग अनुपात में असंतुलन भी बताया जा रहा है। चीन की तरह भारत में भी लिंग अनुपात में असंतुलन है। जनगणना के अनुसार वर्ष 1961 में 0 से 6 आयु वर्ग में लिंग अनुपात 100 था जो 2011 में बढ़कर 108.9 हो गया। मोदी के गुजरात में 112 लड़कों पर केवल 100 लड़कियां उपलब्ध हैं। समाजशास्त्री इसे हमारी संस्कृति से भी जोड़ते हैं जहां पर लड़कियों की बजाय लड़कों को महत्व दिया जाता है और जिसके चलते कन्या भू्रण हत्या बढ़ती जा रही है। साथ ही ऐसे मामलों में न्यायालय से न्याय नहीं मिलता है। बहुत कम बलात्कारियों को सजा होती है और कई मामलों में कई वर्षों तक निर्णय नहीं होता है। इस तरह न्याय में विलंब भी अन्याय बन जाता है। 

निर्भया कांड के बाद नए कानून में बलात्कार की कड़ी परिभाषा दी गई है किन्तु क्या इससे महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं में कमी आई है और अब सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 11 वर्ष तक की बच्चियों के साथ बलात्कार के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है। किन्तु इस प्रश्न का उत्तर फिर भी नहीं मिला कि महिलाओं को पुरुषों की यौनेच्छा या उनके अहंकार को संतुष्ट करने की वस्तु क्यों माना जाता है? क्या हमने कानून के शासन को अलविदा कह दिया है? हमारे देश में आज महिलाएं और युवतियां असुरक्षित वातावरण में रह रही हैं जहां पर उन्हें सैक्स की वस्तु या पुरुष की पाशविक यौन प्रवृत्तियों को शांत करने की वस्तु के रूप में देखा जाता है। यौन उत्पीडऩ की शिकार अनेक महिलाएं चुप रहती हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि उन्हें आगे और उत्पीडऩ न सहना पड़े या उन्हें चरित्रहीन घोषित न किया जाए। 

पिछले सप्ताह ही तमिलनाडु के राज्यपाल पुरोहित तब विवाद में फंस गए जब उन्होंने एक महिला पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय उनके गाल पर थपथपी लगाई। हालांकि उन्होंने बाद में माफी मांग ली थी। यही नहीं, हमारे नेता कहते हैं कि भारत को मध्य रात्रि में स्वतंत्रता मिलने का मतलब यह नहीं है कि महिलाएं अंधेरे में बाहर निकलें या वे जींस पहनें और अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहनें। वर्तमान में यौन उत्पीडऩ के विरुद्ध केवल कार्यात्मक कानून विशिष्ट मार्ग निर्देश है जिसमें प्रत्येक संस्था में एक यौन उत्पीडऩ के विरुद्ध समिति का गठन किया जाना चाहिए। उसमें पांच सदस्य होने चाहिएं जिनमें से अध्यक्ष सहित 3 सदस्य महिलाएं होनी चाहिएं। 

लिखित या मौखिक शिकायत के आधार पर समिति आरोपी से पूछताछ करेगी और गवाहों के बयान लेगी और यदि आरोपी दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाएगी। पुरुषों का पक्ष लेने वाले लोग कहते हैं कि पुरुषों का भी उत्पीडऩ होता है। कुछ महिलाएं सुविधाएं लेने के लिए स्वयं को उपलब्ध कराती हैं या पेशेवर असहमति का बदला लेने के लिए कई बार निर्दोष पुरुषों के विरुद्ध भी यौन उत्पीडऩ की शिकायतें दर्ज कराती हैं। यह भी एक चिंता का विषय है। फिर इस समस्या का समाधान क्या है? हमारे नेताओं को इस बात पर ध्यान देना होगा कि महिलाओं के साथ अत्याचार तब तक बढ़ते जाएंगे जब तक मजबूत पुलिस कानून नहीं बनाए जाते, जिसके चलते महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने से पूर्व पुरुष सौ बार सोचेगा। 

ऐसे वातावरण में जहां पर नैतिकता और नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है, संपूर्ण देश में ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं जो नैतिकता की दृष्टि से उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि महिलाएं कब तक पुरुषों के वेश में जानवरों की यौन इच्छाओं का शिकार बनती रहेंगी। समय आ गया है कि हम भारत की महिलाओं की स्थिति के बारे में पुनर्विचार करें। क्या वे यह कहती रहेंगी: बलात्कार आखिर कब तक? ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी या हम एक नए अध्याय की शुरूआत कर महिलाओं को जंजीरों से मुक्त करेंगे?-पूनम आई. कौशिश


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Pardeep

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