देश भर के 7.5 करोड़ वाहन हो सकते हैं कबाड़

punjabkesari.in Monday, Apr 23, 2018 - 06:27 PM (IST)

अमृतसर  (इन्द्रजीत): केंद्र सरकार ने देश भर में 15 वर्ष पुराने वाहन सड़कों से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अघोषित तौर पर फिलहाल योजना बनाई जा रही है कि देश भर में चल रहे 28 करोड़ वाहनों में से 30 प्रतिशत वाहनों को कहां रखा जाए। बहरहाल, इस बात की टोह ली जा रही है कि किस प्रदेश अथवा किस मैट्रोसिटी में कितने वाहन हैं और उसे कितनी जगह चाहिए। नतीजे के तौर पर अभी तक संबंधित कई विभाग जिनमें डी.टी.ओ., आर.टी.ओ., पुलिस, जिला प्रशासन शामिल है वाहन के आकार और स्थान का जायजा लेने में लगे हुए हैं। इसमें बड़ा रहस्य है वाहनों की संख्या और स्थान से कहीं महत्वपूर्ण इनके साइड इफैक्ट। दरअसल इतनी बड़ी संख्या में वाहन यदि हटा लिए जाएं तो खपतकारों के लिए क्या समस्याएं आ सकती हैं। इसके आकलन में ‘पंजाब केसरी’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कई महत्वपूर्ण अंश मिले हैं।


वाहन हटाने का क्या है मकसद? 
15 वर्ष पुराने वाहनों को हटाने के संबंध में सरकार द्वारा वर्षों से तर्क दिए जा रहे हैं कि पुराने वाहनों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। यदि इन्हें हटाया न गया तो वातावरण में एयर क्वालिटी इंडैक्स (ए.क्यू.आई.) इतना बढ़ जाएगा कि इससे ओ-जोन परत दूषित होने अथवा प्रभावित होने का खतरा पैदा हो सकता है। प्रदूषण के मापदंड और वाहनों के विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने वाहन कभी भी प्रदूषण का कारण नहीं बनते। वाहनों का प्रदूषण 3 प्रकार का होता है कैमीकल पॉल्यूशन, फ्यूल पॉल्यूशन और वाटर पॉल्यूशन। इनमें कैमीकल पॉल्यूशन वाहन के इंजन के भीतर चल रहे लुब्रीकैंट से बनता है। 


फ्यूल पॉल्यूशन डीजल/पैट्रोल/कैरोसीन जनित होता है। इनमें यदि इंजन  का लुब्रीकैंट ऑयल (मोबिल ऑयल) वाहन उठाना शुरू कर देता है तो इसका मुख्य कारण वाहन के पिस्टन रिंग डाऊन हो जाते हैं। इसका पॉल्यूशन साइलैंसर में आ जाता है जो वातावरण में एयर क्वालिटी इंडैक्स को प्रभावित करता है। यदि वाहन का फ्यूल पंप खराब हो जाता है तो फ्यूल पॉल्यूशन बढ़ जाता है तथा फ्यूल की खपत बढ़ जाती है। तीसरा वाटर पॉल्यूशन वाहन के साइलैंसर से निकलने वाले मॉयस्चर से होता है। तीसरे प्रकार का पॉल्यूशन वातावरण में डैल्यूट हो जाता है, जबकि पहले 2 पॉल्यूशन जिनमें कैमीकल/फ्यूल पॉल्यूशन होते हैं, यदि वातावरण में अधिक हो जाए तो धरती की रक्षा करने वाली ओ-जोन परत की पहली शृंखला ट्रोपो स्फीयर को छोड़ कर दूसरी शृंखला स्टेट्रो स्फीयर्स में शामिल हो जाता है। इसके कारण अल्ट्रावायलेट किरणें धरती के सुरक्षा कवच को तोडऩा शुरू कर देती हैं। इसी कारण वाहनों के प्रदूषण को रोकने की आवश्यकता होती है। 


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
पुराने वाहनों के व्यापारी एवं ऑल इंडिया सेल-परचेज एसो. के एग्जीक्यूटिव मैंबर संजय गुप्ता ने कहा कि प्रदूषण की समस्या के कारण इतनी बड़ी संख्या में वाहन डिस्पोज कर देना गलत है, क्योंकि वाहन को रोकने के लिए कुछ तरीके हैं।

वाहन के चालान पर जोर देने की बजाय पुलिस प्रदूषणयुक्त वाहनों को कब्जे में लेकर इन्हें रजिस्ट्रर्ड एजैंसियों अथवा शोरूम के पास भेजे, वहां इनकी पूरी मरम्मत करके जब तक वाहन चालक सर्टीफिकेट प्राप्त नहीं कर लेता डिलीवरी न दी जाए।

टोल फ्री नंबर जारी किए जाएं, जो भी कोई व्यक्ति प्रदूषणयुक्त वाहन चलाए उसकी सूचना पूरे सर्कल में फैल जाए। इससे 30 प्रतिशत से अधिक प्रदूषण की समस्या हल होगी।

प्रशिक्षित लोगों को जागरूकता हेतु आगे आना चाहिए ताकि वर्कशापों व आम लोगों को समझाया जा सके। इसमें 40 प्रतिशत वाहन लोगों की अज्ञानता के कारण ही प्रदूषण छोड़ते हैं।

ऑटो और कमर्शिअल वाहनों के लिए अलग नियम बनाए जाएं और उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले वाहनों के ईंधन के मानक चैक किए जाएं। इसमें 18 प्रतिशत समस्या समाप्त हो जाएगी।

 

वास्तविकता : पुराने वाहन नहीं बनते प्रदूषण का कारण
पुराने वाहन कभी भी प्रदूषण का कारण नहीं बनते। प्रदूषण के लिए न तो वाहन की चैसी और न ही इंजन जिम्मेदार होता है। यहां तक कि वाहन की हीट को भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता। कैमीकल प्रदूषण वाहन के इंजन के ऊपरी हिस्से में लगे हैड के बीच पिस्टन रिंग और वॉल्व सील्स की खराबी होती है, जिसे आसानी से हटाया जा सकता है। 
वहीं फ्यूल पॉल्यूशन के लिए मात्र फ्यूल पंप को ठीक करना अथवा बदलना होता है। यह मामूली कारण है। साधारण कारों में यह फाल्ट ठीक करने के लिए 5 से 8 हजार तक का और मध्यम कारों में 10 से 18 हजार का खर्चा होता है, जबकि महंगी कारें जिनकी कीमत 15 लाख से ऊपर होती हैं, इनमें खर्चा 40 से 60 हजार तक होता है। प्रश्न यह है कि वाहन की कीमत के सामने मामूली रिपेयर को नजरअंदाज कर वाहन को डिमोलिश कर देना कहां तक सही है। 


नए वाहनों से भी होता है पॉल्यूशन 
विशेषज्ञों का कहना है कि कैमीकल/फ्यूल पॉल्यूशन के लिए नए और पुराने वाहन कोई मानक नहीं रखते। यदि किसी वाहन में लुब्रीकैंट ऑयल कम हो जाए तो 3 महीने पुराना वाहन भी पॉल्यूशन के शिकंजे में आ जाता है, जबकि यदि वाहन की मैनटेनैस सही हो तो 50 वर्ष पुराना वाहन भी पॉल्यूशन नहीं छोड़ता। कारों के रैडीएटर में लीकेज हो तो पानी कम होने से इंजन हीटअप हो जाता है। ऐसी स्थिति में नई कार भी धुआं छोड़ जाती है। नए वाहनों से भी पॉल्यूशन पैदा हो जाता है यदि कोई अनाड़ी व्यक्ति 3 से 5 मिनट तक फुल एक्सैलरेटर को खड़े वाहन पर ऑन रखे, हैंड ब्रेक लगा वाहन यदि 5 से 10 कि.मी. तक चल जाए तो।

विशेषज्ञों की राय 
पुराने वाहन कभी भी प्रदूषण का कारण नहीं बनते। मुख्य रूप से यह होते हैं कारण
1. कैमीकल
   पॉल्यूशन
2. फ्यूल पॉल्यूशन
3. वाटर पॉल्यूशन

वाहन कंपनियां समय से नहीं, किलोमीटर से देती हैं गारंटी
वाहन कंपनियां वाहन को मात्र पहले एक वर्ष ही वारंटी देती हैं। इसमें वाहन की रिपेयर मुफ्त होगी, जबकि गारंटी के तौर पर वाहन के किलोमीटर होते हैं। अक्सर वाहन कंपनियां 50 लाख कीमत के नीचे वाहन पर 3 से 4 लाख कि.मी. की गारंटी देती हैं। वहीं जिनकी कीमत 80 लाख से ऊपर उठ जाती है तो उसके क्वालिटी इंडैक्स में 5 लाख से 8 लाख कि.मी. तक सुरक्षित होने का दावा किया जाता है। यदि देखा जाए तो आम वाहन चालक कार को प्रति वर्ष 6 हजार से 18 हजार कि.मी. तक चलाता है, जबकि कमॢशयल वाहन की दरें अलग हैं। 15 वर्ष वाहन चलने के उपरांत महंगी कारें मात्र अढ़ाई से 3 लाख कि.मी. ही चल पाती हैं। ऐसी स्थिति में यदि किसी बी.एम.डब्ल्यू., मर्सडीज, जैगुआर, रोल्ज रॉयस कार को 15 साल की अवधि के बाद डिमोलिश कर दिया जाए तो वाहन मालिक की स्थिति क्या होगी, क्योंकि लाखों का वाहन कबाड़ में हजारों में बिक जाएगा।


मध्यमवर्गीय लोगों पर होगा वज्रपात
इसमें अमीर लोगों को तो दिक्कत नहीं होगी। मध्यम वर्गीय लोग जो 50 हजार से 1 लाख तक की कार को आवागमन का साधन बना बैठे हैं, उनके लिए नया वाहन खरीदना मुश्किल होगा। यहां तक कि कई लोग तो 20-25 हजार के 4 पहिया वाहन पर गुजारा कर रहे हैं।


बैंकों का बढ़ेगा बोझ
वाहन डिस्पोज होने की सूरत में या तो वाहन चालक 10 से 12 वर्ष पहले का मॉडल देखेंगे अथवा नया वाहन खरीदेंगे। इसमें अधिकतर लोग बैंकों के कर्जे की लपेट में आ जाएंगे। वर्तमान समय में नई बाइक पर बैंक की किस्त 2000 से 5000 है, जबकि कारों पर 7 हजार से 70 हजार तक महीने की किस्त है। 

 

वाहनों की संख्या कितनी
केंद्र सरकार के चीफ डाटा आफिसर ऑफ मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे के. गुइट्स ने ‘पंजाब केसरी’ को बताया कि वर्ष 2016 मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक देश में 230 मिलियन (23 करोड़) वाहन हैं। इनमें 2 वर्ष की औसत ग्रोथ 9.8 मिला ली जाए तो मार्च 2018 तक देश भर में वाहनों की संख्या 27 करोड़ 73 लाख बन जाती है। 
वहीं केंद्र सरकार के एक अन्य उच्च परिवहन अधिकारी ने बताया कि वाहनों की कुल गिनती में 27.3 प्रतिशत ऐसे वाहन हैं जो 2003 से पहले के चल रहे हैं। इनकी संख्या 7.5 करोड़ है जो डिस्पोज करने के दायरे में आ सकते हैं।

 

दूसरे देशों में नहीं है यह समस्या
15 साल पुराने वाले वाहन बंद कर देने में जहां भारत का सिस्टम उतावला हो रहा है, वहीं इंगलैंड, जर्मनी, कनाडा, अमरीका व अन्य  विकसित  देशों में समय की कोई सीमा नहीं। यहां तक कि इंगलैंड में तो 100 वर्ष तक वाहन आम चल रहे हैं।


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Sonia Goswami

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