वेंकैया नायडू ने ये 10 कारण गिना विपक्ष का महाभियोग प्रस्ताव किया खारिज

punjabkesari.in Monday, Apr 23, 2018 - 01:57 PM (IST)

नई दिल्लीः राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को ‘पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने’ संबंधी कांग्रेस एवं अन्य दलों के महाभियोग नोटिस में लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए उसे नामंजूर कर दिया। नायडू ने राज्यसभा के महासचिव देश दीपक वर्मा से कहा है कि वह कांग्रेस सहित सात दलों का नोटिस नामंजूर होने की जानकारी सभी संबंधित सदस्यों को दे दें। इस फैसले पर पहुंचने से पहले उन्होंने इस नोटिस के सभी पहलुओं पर कानूनविदों और संविधान विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के अलावा शीर्ष न्यायविदों की सार्वजनिक प्रतिक्रया पर भी संज्ञान लिया है।

इन कारणों से नायडू ने नहीं दी महाभियोग की इजाजत

  • सभापति ने दस पन्ने के अपने आदेश में कहा है कि न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाए गए आरोप पुख्ता नहीं हैं।     
  •  न्यायमूर्ति मिश्रा पर लगाए गए कदाचार के आरोपों को प्रथम दृष्टया संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के दायरे से बाहर पाए जाने के कारण इन्हें अग्रिम जांच कराने के योग्य नहीं माना जा सकता है।    
  • अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार ‘‘सिद्ध कदाचार’’ और ‘‘अक्षमता’’ के आधार पर ही किसी न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। जबकि प्रस्तुत मामले में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाये गए आरोपों के लिए पेश दलीलों में ‘अनिश्चितता’ के कारण नोटिस को स्वीकार करने का पुख्ता आधार नहीं माना जा सकता है।
  • ‘‘प्रत्येक आरोप और इसके प्रत्येक आधार के सभी पहलुओं की विवेचना के लिए कानूनविदों और विशेषज्ञों से विस्तार से विचार विमर्श के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि यह प्रस्ताव स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।’’     
  • प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों का गंभीरता और सावधानीपूर्वक विश्लेषण के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘‘हम व्यवस्था के किसी भी स्तंभ को विचार, शब्द या कार्यकलापों के द्वारा कमजोर करने की अनुमति नहीं दे सकते।’’     

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  • नायडू ने इस मामले में नोटिस देने वाले सदस्यों द्वारा राज्यसभा के प्रक्रिया संबंधी नियमों का पालन नहीं करने का भी आदेश में जिक्र किया है।
  • प्रस्ताव पर 64 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। इसके लिए जज इन्क्वायरी ऐक्ट के सेक्शन 3(1) के तहत विचार करने की जरूरत थी।
  • प्रस्ताव पर नायडू ने कहा कि उन्होंने संविधान के प्रस्तावों और जजों को हटाने के मौजूदा प्रावधानों का भी अध्ययन किया। पूरी जांच-परख के बाद इस बात से सहमत हूं कि यह नोटिस सही नहीं है।
  • रोस्टर बंटवारा सुप्रीम के चीफ जस्टिस का अधिकार है और वह मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं। चीफ जस्टिस के पास बेंच का गठन करने और केसों का बंटवारा करने का अधिकार है। साफ है कि यह कोर्ट का अंदरूनी मामला है और कोर्ट इसपर खुद ही फैसला कर सकती है।
  • प्रस्ताव में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाए गए आरोपों को मीडिया में सार्वजनिक करना नियमों के विपरीत। इस तरह के किसी भी मामले में लगाये गये आरोपों की जांच पूरी होने और सदन में नोटिस पेश किए जाने तक मामले के तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि कांग्रेस सहित सात दलों की ओर से नायडू को इस आशय के प्रस्ताव का नोटिस गत शुक्रवार को सौंपा गया था। इसमें न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ पांच आधार पर कदाचार का आरोप लगाते हुए नायडू से ‘प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने’ की प्रक्रिया शुरु करने की मांग की थी।

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Seema Sharma

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