बस्ते के बोझ ने बिगाड़ी बच्चें की सेहत

punjabkesari.in Monday, Apr 23, 2018 - 10:58 AM (IST)

बठिंडा (आजाद): हर बच्चे का पढऩे-लिखने की बजाय खेलने-कूदने में ज्यादा मन लगता है, लेकिन अभिभावकों के आसमान छूते अरमानों केआगे बच्चे के कोमल मन को बड़ी ही बेरहमी से कुचला जाता है। हर अभिभावक चाहता है कि उसका बेटा पढऩे-लिखने मेंसबसे आगे रहे व उसे जल्द से जल्द मोटी रकम की नौकरी मिल जाए। बच्चे के अभिभावक जानते हैं कि अंधी प्रतियोगिता के दौड़ में नौकरी मिलना लोहे के चने चबवाने के समान है।

अपने बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने के चक्कर में बचपन से ही खेल से ज्यादा पढ़ाई पर जोर देने लगते हैं। इसी का नतीजा है कि बेहतर से बेहतर स्कूल जहां पर पढ़ाई हो वहीं एडमिशन करवाते हैं। इन स्कूलों में पढ़ाई के  नाम पर बच्चों के बस्ते को भारी कर दिया जाता है, जिसके बोझ के तले बच्चे का पूरा बचपन ही दब जाता है। सुबह से लेकर शाम तक कंधे पर बस्ते टांगे रहने से बच्चों की सेहत खराब होने लगती है। इसी बीच बच्चों का बचपना भी कहीं खो जाता है। स्कूल में बच्चों के बस्ते के वजन को नियंत्रित करने के लिए वर्ष 2006 में एक्ट बनाया गया था, लेकिन बठिंडा के स्कूलों में इस एक्ट को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखती।

नियमों के विरुद्ध जाकर बच्चे के बस्ते को राष्ट्रीय मानक से ज्यादा भारी कर दिया है। शहर की दुकानों समेत कई प्राइवेट स्कूलों में नए सत्र के लिए किताबों की बिक्री शुरू हो गई है। स्कूलों ने अभिभावकों को किताबों की लिस्ट सौंपी है उसमें दर्ज किताबों की संख्या यह बता रही है कि आपके बच्चे के बस्ते का वजन कम होने वाला नहीं है। बच्चा अगली क्लास में प्रमोट हुआ तो इस बार उसके बस्ते के वजन में इजाफा ही होगा। गौरतलब है कि बस्ते के वजन को लेकर बने एक्ट के तहत 12वीं कक्षा तक के बच्चों के बस्ते का वजन 2 से अधिकतम 6 किलोग्राम तक होना चाहिए। नियमों के उल्लंघन व अनदेखी करने वालों पर सजा का भी प्रावधान है। नियमों के अनुसार उल्लंघन करने के मामले में 3 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। प्रक्रिया के तहत संबंधित स्कूल की मान्यता भी रद्द करने की कार्रवाई की जा सकती है। 

10-15 किताबें और कापियां
स्कूल की बुक लिस्ट को देखा जाए तो हर बच्चे की बुक लिस्ट में औसतन 10-15 किताबें होंगी। इसके अलावा विषयवार कापियां भी होंगी। अभिभावकों के अनुसार कई स्कूलों में तो किताबों अनुसार कापियां भी होती हैं। बच्चों को हर दिन 6-8 किताबें व कापियां लेकर स्कूल जाना पड़ता है। ऐसे में बस्ते का बोझ बच्चों पर भारी पड़ जाता है।

क्या होते हैं दुष्परिणाम 
अगर बच्चे के स्कूल बैग का वजन उससे 10 प्रतिशत अधिक होता है तो साइकोफॉसिस होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है। भारी बैग की कंधे पर टागनें वाली पट्टी अगर पतली है तो इससे कंधे की नसों पर असर पड़ता है और वे धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगते हैं, उनमें हर समय दर्द बना रहता है। 

क्या हैं नियम 
जानकारों का कहना है किनियमों अनुसार नर्सरी व के.जी. कक्षा के ब"ाों के लिए बैग या किताबें नहीं होनी चाहिएं। इसके बाद आगे की कक्षाओं में बच्चों की औसत उम्र व वजन को ध्यान में रखते हुए किताबों व कापियों की संख्या तय करनी चाहिए, ताकि बस्ते का वजन उसी अनुपात में हो। बच्चे उसे उठाने में असहज महसूस न करें। प्रावधानों के मुताबिक स्कूलों में लॉकर भी होने चाहिएं, जिससे बच्चों को हर दिन बस्ते लेकर आना-जाना न पड़े, साथ ही क्लास रूटीन तैयार करने में भी इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। 

बच्चों के क्लास बैग का भारतीय मानक 
-कक्षा पहली से दूसरी 2 किलो 
-कक्षा तीसरी से चौथी 3 किलो 
-कक्षा 5वीं से 8वीं 4 किलो
-कक्षा 9वीं से 10वीं 6 किलो 

विकसित देशों में बच्चों के बैग का वजन 
- यू.के.जी.  3.50
-पहली कक्षा 4 किलो
- दूसरी कक्षा 5 किलो 
-5वीं कक्षा 8 किलो 


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