दुष्कर्म का ‘सैक्स’ से कोई लेना-देना नहीं

punjabkesari.in Sunday, Apr 22, 2018 - 03:16 AM (IST)

दिसम्बर 2012 में निर्भया से दुष्कर्म और उस पर जघन्य हमला तथा उसके बाद उसकी मौत ने सारे देश की आत्मा को झकझोर दिया था क्योंकि हालिया अतीत में उस जैसी कोई आपराधिक घटना नहीं हुई थी। इसने एक ऐसे उल्लेख को आकर्षित किया जिसका इस्तेमाल आमतौर पर नहीं किया जाता और वह है पाशविकता। उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म, क्रूरता की गई, निर्वस्त्र बस से बाहर फैंक दिया गया और मरने के लिए छोड़ दिया गया। चमत्कारिक रूप से सिंगापुर के एक अस्पताल में मरने से पहले वह अपनी खौफनाक कहानी सुनाने के लिए कुछ दिन और जीवित रही। 

दुष्कर्म सैक्स को लेकर नहीं होता। ऐसा सोचना कठिन है कि कोई व्यक्ति किसी महिला (जो अपनी पूरी ताकत से उसके साथ लड़ रही है) अथवा बच्ची के ऊपर जबरदस्ती लेटकर यौनानंद प्राप्त कर सकता है। दुष्कर्म एक महिला के ऊपर पुरुष की शक्ति को लेकर है विशेषकर महिला के शरीर के बारे में। जहां तक एक असहाय बच्ची, जो महज कुछ महीनों या कुछ वर्षों की अथवा नाबालिग है, के साथ दुष्कर्म का मामला है तो किसी को यह विश्वास करने के लिए जो एक अपराधी के सारे अवरोध समाप्त कर देता है, सैक्स तथा ताकत से आगे देखने की जरूरत है। 

ऐसे लगभग सभी मामलों में मैं समझता हूं कि आरोपी को पता होता है कि वह अपराध कर रहा है मगर वह यह मानता है कि उसे शिकार के ऊपर ताकत हासिल है और दुष्कर्म उस ताकत का प्रदर्शन है- कि कानून उसे सजा नहीं देगा और यदि वह उसे दंडित करने का प्रयास करता है तो उसे अपने संबंधियों अथवा जाति के लोगों या पुलिस अथवा उसकी पार्टी अथवा सरकार से समर्थन मिल जाएगा। इस अंतिम मान्यता का एक नाम है-दंड मुक्ति। सामूहिक दुष्कर्म दंड मुक्ति का एक परम कार्य है। 

उन्नाव, कठुआ के अपराध 
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 17 वर्षीय पीड़िता के साथ एक सार्वजनिक व्यक्ति (भाजपा विधायक) तथा उसके सहयोगियों ने कथित तौर पर जून 2017 में दुष्कर्म किया। दो महीने बाद पीड़िता ने यह मांग करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि विधायक तथा उसके भाई के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज की जाए। अप्रैल 2018 में पीड़िता के पिता को विधायक ने कथित रूप से मामला वापस लेने की धमकी दी। 

पुलिस ने उसके पिता को कथित रूप से उठा लिया और विधायक के भाई ने उसकी पिटाई की। पिता को 5 अप्रैल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और फिर सरकारी अस्पताल। यह मामला 8 अप्रैल को प्रकाश में आया जब पीड़िता तथा उसके पारिवारिक सदस्यों ने मुख्यमंत्री के आवास के बाहर खुद को आग लगाकर आत्महत्या का प्रयास किया। अगले दिन अस्पताल में पिता की मौत हो गई। 10 अप्रैल को विधायक के भाई को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 अप्रैल को मामला सी.बी.आई. को सौंप दिया गया। 13 अप्रैल को सी.बी.आई. ने विधायक को गिरफ्तार कर लिया। 

जम्मू-कश्मीर के कठुआ में पीड़िता बकरवाल जनजातीय समुदाय की 8 वर्षीय एक लड़की थी। जनवरी, 2018 में उसे कथित रूप से एक मंदिर में एक सप्ताह तक बंधक बनाकर रखा गया, उसे दर्द निवारक दवाएं दी गईं और सामूहिक दुष्कर्म किया गया तथा बाद में हत्या कर दी गई। इसका मकसद उसके समुदाय को रासाना क्षेत्र से बाहर जाने के लिए डराना था। मुख्य आरोपी मंदिर का केयर टेकर था। अन्य में दो पुलिस अधिकारी शामिल थे जिन्होंने कथित रूप से चार लाख रुपए लिए और महत्वपूर्ण सबूत नष्ट कर दिए। राज्य पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की और मुख्य आरोपी ने मार्च में आत्मसमर्पण कर दिया। ङ्क्षहदू एकता मंच ने (एक भाजपा नेता के नेतृत्व में) ‘पारदर्शी’ जांच के लिए मामला सी.बी.आई. को हस्तांतरित करने की मांग को लेकर रैलियां आयोजित कीं। भाजपा से संबंधित दो राज्य मंत्री मार्च में आयोजित रैली में शामिल हुए। अप्रैल में उन्हें त्याग पत्र देने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

खंडित न्याय प्रणाली 
उन्नाव तथा कठुआ के अपराधों को अंजाम देने वालों को पता था कि आपराधिक न्याय प्रणाली टूट चुकी है और जो थोड़ी-बहुत बची है वह भी टूट जाएगी। इस जानकारी ने उनके दंड मुक्ति में विश्वास को और भी मजबूत कर दिया। दंड मुक्ति में विश्वास बढ़ाने के लिए की गई टिप्पणियां : उन्नाव घटना में एक सहयोगी विधायक ने कहा कि हो सकता है पीड़िता के पिता को कुछ लोगों ने पीटा हो मगर वह दुष्कर्म के आरोपों को मानने से इंकार करते हैं। सांसद मीनाक्षी लेखी (भाजपा प्रवक्ता) ने कहा कि कांग्रेस पहले ‘अल्पसंख्यक-अल्पसंख्यक’ चिल्लाती थी, फिर ‘दलित-दलित’ और अब ‘महिला-महिला’ तथा फिर किसी तरह से वह राज्य के मामलों का दोष केन्द्र के सिर मढऩे का प्रयास कर रही है। 

चुप्पी दोष मुक्ति में विश्वास को मजबूत करती है। कठुआ में लड़़की की मौत तथा उन्नाव की घटना को लेकर शोर-शराबे के बावजूद 13 अपै्रल तक प्रधानमंत्री ने एक भी शब्द नहीं बोला। भाजपा कार्यकत्र्ताओं की ओर से घड़ी-घड़ाई टिप्पणियां की गईं मगर उनमें अंत:करण की अभिव्यक्ति बिल्कुल नहीं थी। दोनों घटनाओं में आरोपों को भाजपा ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया, यहां तक कि अन्य को इन मामलों को राजनीतिक रंग नहीं देने की नसीहत दी। 

दोष मुक्ति सर्वव्यापक है
महिलाओं तथा बच्चियों के खिलाफ बढ़ती जा रही हिंसा तो चिंताजनक है ही मगर दंड मुक्ति में विश्वास, जिसने ऐसा दिखाई देता है कि सभी सार्वजनिक कर्मचारियों को संक्रमित कर दिया है, अत्यधिक चिंता का विषय है: किसी संस्थान का प्रत्येक उदाहरण जो पक्षपात करने वालों के माध्यम से पकड़ा गया हो, चुनावों में पराजय के बावजूद एक राजनीतिक पार्टी द्वारा राज्य में सरकार बनाने की प्रत्येक घटना, विद्वान समझे जाने वाले एक मंत्री द्वारा की गई प्रत्येक अत्यंत मूर्खतापूर्ण टिप्पणी, बैंकों को लूटने वाले धोखेबाजों की सुरक्षा के लिए प्रत्येक उड़ान, विरोधियों को खरीदने का प्रत्येक प्रयास, सी.बी.आई. अथवा एन.आई.ए. द्वारा लड़ा जाने वाला प्रत्येक ऐसा मामला जो इस कारण धराशायी हो जाता है कि गवाह मुकर जाते हैं, किसी एजैंसी का प्रत्येक पर्दाफाश जो एक नागरिक की स्वतंत्रता अथवा निजता का उल्लंंघन करने के लिए कानून को तोड़ती-मरोड़ती है, एक फर्जी एनकाऊंटर में पुलिस द्वारा की गई प्रत्येक हत्या और मीडिया के खिलाफ किसी आदेश तथा मानहानि के लिए करोड़ों रुपए का मुकद्दमा कानून के शासन की बजाय दोष मुक्ति का शासन लागू करने की तरफ एक कदम है। इस पीढ़ी का यह कत्र्तव्य है कि बेरोकटोक दिखाई देने वाले इस बहाव को दोष मुक्ति के प्रजातंत्र की ओर जाने से रोके।-पी. चिदम्बरम 


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Pardeep

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