कैसे बनें हर दिल अज़ीज़ ?

punjabkesari.in Thursday, Apr 19, 2018 - 01:29 PM (IST)

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।


मीठा-मीठा बोलिए। आप कड़वा मत बोलिए। आप मत बोलिए। दिलों को जोड़ने वाली मीठी वाणी में बोलिए। ज्यादा मत बोलिए। अकारण मत बोलिए। बिना जानकारी के मत बोलिए। अप्रमाणिक मत बोलिए। कम बोलिए। काम का बोलिए। अपनी जिह्वा का उपयोग किसी के घर आग लगाने के लिए नहीं, बाग लगाने के लिए करिए। जुबान को कैंची मत बनाइए, कसौटी बनाइए जो खरे-खोटे को परख सके।


धीमे बोलिए। धीरज से बोलिए। धीमी आवाज कोयल की मिठास देती है और तेज आवाज गधे का फूहड़पन। जो ज्यादा बोलते हैं उनके लिए पीठ पीछे यह सुनने को मिलता है कि लो एक माथा खाऊ आ गया। पूरे शरीर में एक जीभ ही है, जिसमें हड्डी नहीं होती। हड्डी सख्त होती है पर जीभ लचीली होती है। कृपया जीभ को जीभ रहने दें उसे कठोर, भड़काऊ, कलहकारक वाणी बोलकर हड्डी न बनाएं। पत्नी ने भोजन बनाया। सब्जी में मिर्ची ज्यादा हो गई। अब अगर पति बोले, ‘‘यह कोई भोजन है क्या? मिर्ची ही मिर्ची झोंक दी। किसी पंसारी से यारी हो गई है क्या?’’ 


तो निश्चित ही पत्नी को मिर्ची लगेगी और घर का वातावरण भी कलहपूर्ण हो जाएगा और अगर पति थोड़ी समझ से काम ले और कहे भाई! मजा आ गया। बेहद चटपटी सब्जी बनी है। मुंह तो मुंह कानों को भी स्वाद आ गया।’’ 


यह सुनकर समझने वाला तो समझ ही जाएगा पर बुरा नहीं लगेगा बल्कि आगे से ध्यान रखेगा कि मिर्च अधिक न पड़ जाए। थोड़ा अपनी वाणी को संभालिए। परिवार को संभालने के लिए यह पहली शर्त है। बोल चाल के ढंग से बोलने वाले की भी पहचान हो जाती है कि वह कितना सभ्य और शिष्ट है। 


कहने-कहने का ढंग होता है। यदि किसी से कहा जाए: आइए। आप भी भोजन कर लीजिए तो इसकी कुछ और ही बात है। किन्तु इसके स्थान पर अगर यों बोला जाए कि आओ तुम भी ठूंस लो। तो...? तो...? वह ठूंसेगा तो नहीं, तुम को ठूंसा जरूर मारेगा। जुबान से जहर नहीं अमृत झरना चाहिए। अमृत किसी दुकान में थोड़ी न मिलता है। मीठी वाणी ही अमृत है।
 


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Niyati Bhandari

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