परशुराम जयंती: जानें भगवान विष्णु के छठे अवतार की वीरगाथा

punjabkesari.in Wednesday, Apr 18, 2018 - 03:11 PM (IST)

समस्त सनातन जगत के आराध्य भगवान विष्णु जी के छठे अवतार भृगुकुल तिलक, अजर, अमर, अविनाशी, अष्ट चिरंजीवियों में सम्मिलित, शास्त्र एवं शस्त्र के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का प्राकट्य वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया के दिन माता रेणुका के गर्भ से हुआ। परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि वेद-शास्त्रों के महान ज्ञाता थे।


भगवान परशुराम जी ने अत्याचारी शासकों से 21 बार भयंकर युद्ध किए तथा लोप हो रहे पावन वैदिक सत्य सनातन धर्म की रक्षा की तथा इस पवित्र आर्य भूमि को उनके अत्याचारों से मुक्त कराया। उनके इस महान कार्य से संपूर्ण मानव जगत लाभान्वित हुआ। जिस शासक वर्ग का सबसे बड़ा दायित्व प्रजा का रक्षण होता है, यदि वह ही समाज को प्रताड़ित करने लगे तथा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे तथा प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगे, ऐसे पीड़ित व शोषित समाज की रक्षा हेतु योगी होते हुए भी भगवान परशुराम जी ने शस्त्र उठाकर सत्य, समानता एवं सामाजिक न्याय की अवधारणा से पोषित सत्य सनातन धर्म की स्थापना की।


भगवान परशुराम जी का उल्लेख हमें रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा कल्कि पुराण में मिलता है। भृगु कुल में उत्पन्न परशुराम जी सदैव अपने गुरुजनों तथा माता-पिता की आज्ञा का पालन करते थे। उनके कथनानुसार राजा का कर्तव्य होता है वैदिक सनातन धर्म के अनुसार राजधर्म का पालन करते हुए प्रजा के हित में कार्य करे, न कि प्रजा से आज्ञा पालन करवाए और उसके अधिकारों पर अंकुश न लगाए।


भगवान परशुराम जी ने अश्वमेध महायज्ञ का आयोजन कर सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी थी। भगवान शिव द्वारा प्रदान अमोघ परसे से इनका नामकरण परशुराम हुआ। भगवान शिव की कृपा से ही भगवान परशुराम जी को भगवान श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच प्राप्त हुआ। भगवान परशुराम जी ने भीष्म, द्रोण व कर्ण को भी शस्त्र-विद्या प्रदान की। 


भगवान परशुराम जी की परशुराम गायत्री है- 'ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।' 


वैदिक सनातन संस्कृति के प्रचार के लिए हर युग में भगवान परशुराम जी ने महान योगदान दिया।


भगवान परशुराम जी के भगवान गणेश जी के साथ हुए युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया, जिससे वह एकदंत कहलाए। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम जी के अवतार के समय, भगवान शिव का धनुष भंग होने पर, भगवान परशुराम जी ने श्रीराम को स्वयं नारायण जान कर उन्हें वैष्णव-धनुष प्रदान किया। तब श्रीराम जी ने भगवान परशुराम जी को प्रणाम कर उनका पूजन भी किया। भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु जी के दसवें अवतार कल्कि अवतार में उन्हें वेद,वेदाङ्ग तथा शस्त्र विद्या प्रदान करेंगे।


भगवान परशुराम जी ने श्रेष्ठ मानवीय धर्म की रक्षा हेतु शस्त्र उठाया। धर्म के साक्षात् विग्रह भगवान परशुराम जी ने मानव कल्याण के उद्देश्य से शाश्वत धर्म के सिद्धांतों के अनुसार अपने आचरण द्वारा जो महान आदर्श स्थापित किए, वे सभी के लिए अनुकरणीय हैं।


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Niyati Bhandari

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