ज्यादा होगा धन, भटकेगा मन

punjabkesari.in Monday, Apr 16, 2018 - 02:18 PM (IST)

एक गरीब युवक था। वह हर रोज अपने गुरु के आश्रम में जाकर वहां साफ-सफाई करता, सेवा के अन्य कार्य करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। जब भी वह अपने गुरु से मिलता तो यही कहता, ‘‘गुरु जी, कृपया आप मुझे यह आशीर्वाद दीजिए कि मेरे पास ढेर सारी दौलत आ जाए और मैं एक अमीर आदमी बन जाऊं। इसीलिए तो मैं आपके दर्शन करने आता हूं। यहां आकर सेवा करने का मेरा उद्देश्य भी यही है कि परमात्मा मेरी सेवा से खुश होकर मुझ पर कृपा करे और मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए। अभी तो मैं पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं और मेरा गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे।’’


गुरु जी ने कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो। भगवान के घर की गई सेवा कभी निष्फल नहीं रहती परंतु हमें कभी भी कामना-पूर्ति के विचार से पूजा-पाठ अथवा सेवा नहीं करनी चाहिए। हर काम समय पर ही होता है। जब तुम्हारा वक्त आएगा, तब परमात्मा तुम्हारे सामने अवसर खोलता चला जाएगा।’’


वह युवक गुरु के आश्रम में आकर सेवा करता रहा परंतु जब भी वह अपने गुरु जी को मिलता तो अमीर बनने की अपनी इच्छा जरूर व्यक्त करता। समय ने पलटा खाया, उसका काम-धंधा अच्छा चलने लगा और वह काफी ज्यादा धन कमाने लग गया। वह अपने काम में इतना व्यस्त हो गया कि उसे अपना गुरु भी भूल गया और उसका आश्रम में जाना भी छूट गया। 


कई वर्षों बाद, एक दिन सुबह होते ही वह आश्रम पहुंचा और फिर से आश्रम की साफ-सफाई का काम करने लगा। गुरु जी ने जब उसे देखा तो बड़े ही आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटा, इतने वर्ष कहां रहे? काफी देर के बाद आश्रम में आए हो, सुना है तुम बहुत बड़े सेठ बन गए हो।’’


वह व्यक्ति हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘‘महाराज, आपके आशीर्वाद से मेरा काम-धंधा बहुत बढ़ गया है और मैंने बहुत धन कमा लिया है। काम को संभालने के लिए मैंने कई कर्मचारी रखे हुए हैं। मैंने महलनुमा बहुत बड़ा मकान बना लिया है, मेरे पास बड़ी-बड़ी गाडिय़ां हैं, मेरे बच्चों की शादियां, अच्छे घरों में हो गई हैं, मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं है, पर मेरे दिल में चैन बिल्कुल नहीं है। मैं रोज सोचता था कि आज सेवा करने के लिए आश्रम में आऊंगा, पर आ न सका। गुरु जी, आपने मुझे सब कुछ दिया, पर जिंदगी का चैन नहीं दिया।’’


गुरु ने कहा, ‘‘बेटा, चैन तुमने मांगा ही कब था? जो तुमने मांगा वह तो तुम्हें मिल गया। फिर आज यहां क्या करने आए हो?’’


उसकी आंखों में आंसू भर आए, वह गुरु के चरणों में गिर पड़ा और बोला, ‘‘महाराज, अब मैं कुछ मांगने के लिए नहीं बल्कि सच्चे दिल से सेवा करने के लिए ही आया करूंगा। बस इतनी कृपा करो कि मेरे दिल को शांति मिल जाए।’’


गुरु ने कहा, ‘‘पहले तय कर लो कि अब कुछ मांगने अथवा किसी इच्छापूर्ति के लिए आश्रम की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे।’’


गुरु जी ने समझाया कि, ‘‘चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए, पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता, इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं चाहिए।’’

 
वह व्यक्ति बड़ा ही शर्मसार होकर अपने गुरु को देखता रहा और नतमस्तक होते हुए बोला, ‘‘महाराज, मुझे क्षमा कर दें। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी। मुझे मालूम हो गया है कि धन-दौलत व पद-प्रतिष्ठा में न सुख है, न चैन। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस मुझे आश्रम में सेवा करने दीजिए।’’


सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है। हम सब की हालत ऐसी ही है। हमारा हर कृत्य किसी मांग अथवा इच्छापूर्ति के विचार से ही प्रेरित होता है। हम सारा जीवन यह समझ ही नहीं पाते कि परमात्मा कितना दयालु है और हमारा कितना ध्यान रखता है। इसीलिए हम अज्ञानतावश सारा जीवन धन-दौलत के पीछे भागते रहते हैं। जब हमें धन-दौलत मिल जाती है तो हमें पता चलता है कि हमारी मांग कितनी गलत है। 

इसलिए हमें धन-दौलत न मांगकर हमेशा यही प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारी चेतना जाग जाए, हमें जीवन भेद का पता चल जाए और हम पूर्ण गुरु के मार्गदर्शन में चलते हुए अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर लें। गुरु ही हमें सत्य ज्ञान की रोशनी दिखा कर हमारा पथ प्रदर्शन करता है। 

कर दिया तूने उजाला जीवन के हर मोड़ पर,
वरना इस दुनिया में हर कोई चला जाता है दिल तोड़ कर।
तेरे दर पे जब से आया, कोई कमी नहीं है मेरे घर में,
मेरा हर काम हो जाता है, तेरे सामने हाथ जोड़ कर।
जब भी मैं बुरे हालातों से घबराता हूं,
तब मेरे गुरु की आवाज आती है, ‘रुक, मैं आता हूं।’


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Niyati Bhandari

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