किसी का खाना खाने से पहले जानें ये बात

punjabkesari.in Wednesday, Apr 11, 2018 - 12:14 PM (IST)

महाभारत का युद्ध अंतिम दौर में था। भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे थे। युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ उनके समीप बैठे उनका धर्मोपदेश सुन रहे थे। तभी द्रोपदी बोलीं, ‘‘पितामह मेरी भी एक शंका है।’’ ‘‘बोलो बेटी’’, भीष्म ने स्नेहपूर्वक कहा। ‘‘पितामह, मैं पहले ही क्षमा याचना कर लेती हूं। प्रश्न जरा टेढ़ा है।’’ ‘‘बेटी, जो पूछना है निर्भय होकर पूछो’’, भीष्म बोले। ‘‘पितामह, जब भरी सभा में दुस्शासन मेरा चीरहरण कर रहा था उस समय आप भी वहां उपस्थित थे किन्तु आपने मेरी सहायता नहीं की। उस समय आपका विवेक और ज्ञान कहां चला गया था। एक अबला के चीरहरण का दृश्य आप किस प्रकार देख सके थे।’’ यह सुनकर भीष्म गंभीर हो गए। यह प्रश्न उनके सम्मुख पहली बार नहीं आया था, जिस समय यह घटना घटी थी उस समय भी यही प्रश्न उनके सम्मुख था। उसके बाद जब कभी उन्हें इस घटना का स्मरण होता तो वह प्रश्न उनके सामने रहता।


आज द्रोपदी ने स्पष्ट पूछ लिया था। भीष्म बोले, ‘‘बेटी तुम ठीक कहती हो। मैं उस समय दुर्योधन का पाप से पूर्ण अन्न खा रहा था। वही पार मेरे मन और मस्तिष्क में समाया हुआ था। मैं देख रहा था कि अत्याचार हो रहा है लेकिन उसको रोक नहीं सका। मैं चाहता था कि ऐसा न हो किन्तु मना करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं रह गया था।’’ द्रोपदी ने बीच में ही कहा, ‘‘लेकिन आज यह ज्ञान कैसे प्रकट हो रहा है।’’ 


‘‘बेटी, आज अर्जुन के बाणों ने मेरा वह सारा रक्त बाहर निकाल दिया है जिसमें दुर्योधन के पाप के अन्न का प्रभाव था। अब तो मैं रक्तविहीन प्राणी हूं इसलिए मेरा विवेक आज सजग है। मेरे शरीर से पाप के अन्न से बना रक्त निकल चुका है।’’ इसके बाद द्रोपदी के पास कुछ कहने को नहीं रहा। इस उत्तर से वह संतुष्ट हो गईं।


ध्यान रखें- आप भी खाते हैं, किसी दूसरे के घर का भोजन तो ये बुरा असर आप पर भी पड़ सकता है। आहार का प्रभाव व्यक्ति के तन और मन पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है।


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Niyati Bhandari

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