करना चाहते हैं अपने लक्ष्य को हासिल तो पढ़े हनुमान जी से जुड़ा ये प्रसंग

punjabkesari.in Tuesday, Jun 25, 2019 - 12:28 PM (IST)

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इस बात से तो सब वाकिफ ही होंगे कि राम भक्त हनुमान एक कुशल प्रबंधक के रूप में भी जाने जाते थे। वे मानव संसाधन का बेहतर उपयोग करना जानते थे। रामचरित मानस में ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे ये साबित होता है कि महाबली हनुमान में हर स्थिति को अपने अनुकूल करने की जबर्दस्त क्षमता थी। हनुमानजी को समर्पित सुंदरकांड में ऐसी कई घटनाओं का जिक्र है जो यह बताती हैं कि उन्होंने कैसे बल और बुद्धि का उपयोग करते हुए माता सीता की खोज की थी। हनुमानजी ने एक ही रास्ते में आने वाली दो समस्याओं को अलग-अलग तरीके से निपटाया था। तो आइए आज आपको इसी से जुड़े एक प्रसंग के बारे में बताते हैं। 
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एक बार की बात है कि जामवंत से प्रेरित हुए हनुमान समुद्र लांघने के लिए चल पड़ते हैं। वे आकाश में उड़ रहे थे। तभी समुद्र ने सोचा कि हनुमान थक गए होंगे, उसने अपने भीतर रह रहे मैनाक पर्वत से कहा कि तुम हनुमान को विश्राम दो। मैनाक पर्वत ने हनुमानजी से कहा कि आप थक गए होंगे, थोड़ी देर मुझ पर विश्राम करें। हनुमानजी ने  निमंत्रण का मान रखते हुए उसे सिर्फ छू लिया और कहा कि रामजी का काम किए बगैर मैं विश्राम नहीं कर सकता। इससे ये पता चला कि मैनाक का मान भी रह गया और राम जी का काम भी। इसके बाद वह अपने लक्ष् के लिए  आगे चले गए। हमें भी उनकी ये बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए। जब तक लक्ष्य न मिल जाए, तब तक विश्राम नहीं करना चाहिए।
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उसके सीता की खोज में समुद्र लांघ रहे हनुमान को बीच रास्ते में सुरसा नाम की नाग माता ने रोक लिया और उनको खाने की जिद की। हनुमानजी ने बहुत मनाया, लेकिन नहीं मानी। वचन भी दे दिया, राम का काम करके आने दो, फिर खुद ही आकर आपका आहार बन जाऊंगा, किंतु वे न मानी। हनुमान समझ गए कि मामला मुझे खाने का नहीं है, सिर्फ अहम का है। उन्होंने तत्काल सुरसा के बड़े स्वरुप के आगे खुद को छोटा कर लिया। उसके मुंह में से घूम कर निकल आए। सुरसा खुश हो गई और लंका का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कहते हैं कि जहां मामला अहम का हो, वहां बल नहीं, बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए।
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जब हनुमानजी लंका के द्वार पर पहुंचे, वहां लंकिनी नाम की राक्षसी मिली। रात के समय हनुमान छोटा रूप लेकर लंका में प्रवेश कर रहे थे, लंकिनी ने रोक लिया। यहां परिस्थिति दूसरी थी, लंका में रात के समय ही चुपके से घुसा जा सकता था। समय कम था, उन्होंने लंकिनी से कोई वाद-विवाद नहीं किया। सीधे ही उस पर प्रहार कर दिया। लंकिनी ने रास्ता छोड़ दिया। इससे सीख मिलती है कि जब मंजिल के करीब हों, समय का अभाव हो और परिस्थितियों की मांग हो तो बल का प्रयोग करना अनुचित नहीं है।


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