ग्रामीण इलाकों में रूट कम, इधर नीली बसों का निकला दम

punjabkesari.in Saturday, Jun 22, 2019 - 11:07 PM (IST)

धर्मशाला (सौरभ): बंजार में हुए भीषण बस हादसे ने सूबे के ग्रामीण क्षेत्रों में लचर परिवहन सेवा की पोल खोलकर रख दी है। इतने बड़े हादसे के बाद भी निगम के अफसर नींद से जागने को तैयार नहीं हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण निगम की वर्कशॉपों व अड्डों में लंबे अरसे से बेकार खड़ी जंग खा रही जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के तहत मिली सैकड़ों बसें हैं। वर्तमान में हालात यह हैं कि ग्रामीण इलाकों में नाममात्र बस सेवा के चलते हर दिन लोग आवागमन में दिक्कतें झेलते हैं, ऐसे में संपर्क मार्गों पर दौड़ने वाली बसों में मजबूरन क्षमता से अधिक यात्री बिठाए जाते हैं। इसके चलते गांवों के सैंकड़ों लोग रोजाना जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर हैं। दूसरी तरफ निगम के अफसरों की सुस्त कार्यप्रणाली के चलते प्रदेश को मिली 12 मीटर व 9 मीटर लंबी 791 लो फ्लोर नीली बसों में से 300 से अधिक बसें कबाड़ बनने की कगार पर हैं।
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निगम के हर डिपो में बेकार खड़ी हैं 10 से 15 बसें

निगम के हर डिपो में करीब 10 से 15 बसें बेकार खड़ी हैं। सूत्र बताते हैं कि इन बेकार खड़ी बसों में अधिकतर संख्या 12 मीटर लंबी उन बसों की है जोकि राज्य के संकरे सड़क मार्गों पर चलने में नाकाम रही हैं। सूत्रों के अनुसार निगम को मिली 12 सीटर लंबी करीब 172 बसों में से 100 से अधिक बसें बेकार खड़ी हैं। बीते 2 से अधिक वर्षों से इन बसों की मैंटीनैंस भी नहीं की गई है जिस कारण इनके कलपुर्जों में जंग लग चुका है। लो फ्लोर बसों के लिए रखरखाव व वर्कशाप के लिए केंद्र ने शुरूआत में 63 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान भी किया था, लेकिन समय पर इसके लिए प्रस्ताव न भेजने के कारण यह बजट लैप्स हो गया। अगर यही हाल रहा तो कुछ ही समय में ये बसें कबाड़ बन जाएंगी जोकि जनता के पैसे की बर्बादी का जीता-जागता उदाहरण है।
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इसलिए बेकार खड़ी नीली बसें

1. जे.एन.एन.यू.आर.एम. के तहत तत्कालीन सरकार ने जरूरत से अधिक बसें मंगवा लीं, लेकिन इन्हें चलाने के लिए बिना सोचे-समझे रूट तय कर दिए। गलत कलस्टर निर्धारित करने के चलते निजी बस आप्रेटर मामला कोर्ट में ले गए।
2. पहाड़ी प्रदेश के संकरे सड़क मार्गों के लिए 12 सीटर लंबी बसें किसी भी लिहाज से सही नहीं कही जा सकतीं, लेकिन 172 के करीब ऐसी बसें खरीद ली गईं जोकि केवल मैदानी क्षेत्रों में दौड़ सकती हैं।
3. इन बसों के लिए प्रोजैक्ट रिपोर्ट बनाने में भी लापरवाही बरती गई। प्रबंधन ने डी.पी.आर. बनाने का जिम्मा ऐसे कंसल्टैंट्स को दिया जोकि प्रदेश की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ ही नहीं थे।
4. नीली बसों को चलाने के लिए 13 कलस्टर निर्धारित किए गए लेकिन इन कलस्टरों में इतनी अधिक बसों के लिए रूट चलाना लगभग नामुमकिन ही है।
5. निगम प्रबंधन में चालकों-परिचालकों सहित वर्कशॉपों में स्टाफ की कमी भी नीली बसों को चलाने में बड़ी बाधा है। स्टाफ की कमी के कारण कई ग्रामीण रूट लंबे अरसे से बंद हैं।
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मंत्री गोविंद का दावा, अधिकतर बसें चलाईं

परिवहन मंत्री गोविंद ठाकुर का दावा है कि जवाहर नेहरू शहरी नवीकरण मिशन के तहत मिली अधिकतर नीली बसों को निर्धारित रूटों पर चलाया गया है। उनका कहना है कि महज 99 बसें ही बिना रूट के बेकार खड़ी हैं, जिनमें भी अधिकतर 12 मीटर लंबी बसें हैं। गोविंद ठाकुर ने कहा कि निगम जल्द ही ड्राइवरों व कंडक्टरों की नई भर्ती कर रहा है। 200 नई बसें खरीदने का भी प्रस्ताव है जिससे समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा।


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Vijay

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