Kabir Jayanti : सत्य मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है कबीर वाणी

punjabkesari.in Monday, Jun 17, 2019 - 12:35 PM (IST)

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कबीर साहिब का आविर्भाव वि.स. 1456 ईस्वी 1398 को ज्येष्ठ पूर्णिमा को सोमवार के दिन हुआ। इसी दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौणा करा के अपने घर लौट रहे थे। लहरतारा सरोवर के निकट से गुजरते समय नीमा को प्यास लगी और पानी पीने के लिए तालाब पर गई। नीमा अभी चुल्लू भर पानी पीने ही लगी थी कि किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी और देखा नवजात शिशु कमल दल के गुच्छ पर था जो आगे चल कर सद्गुरु कबीर हुए। यह स्थान सद्गुरु कबीर जी का प्राकट्य स्थल है जिसके दर्शनों के लिए हर धर्म के लोग देश-विदेश से आते हैं।

लहरतारा का यह मंदिर प्राकट्य स्थल और सद्गुरु कबीर साहिब की कर्मभूमि है। गंगा का रुख बदल गया और जो लहरें पीछे छूटीं तो तालाब बना लहरतारा। सद्गुरु कबीर का घर जो नीरू और नीमा का निवास स्थान था। नीरू टीले पर ही सद्गुरु कबीर का लालन-पालन हुआ। सद्गुरु कबीर जी के माता-पिता (नीरू-नीमा) कपड़े बुनने का कार्य करते थे। सद्गुरु कबीर साहिब का सत्संग सुनने को लोग उतावले रहते थे।  सत्य मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है कबीर वाणी 

बेगर-बेगर नाम धराये एक माटी के भांडे।

इन्होंने जातिवाद पर प्रहार करते हुए कहा कि मानव उस एक भगवान की संतान है परंतु कोई अपने आपको ऊंची और कोई नीची जाति का कहता है। व्यक्ति तो मिट्टी का बना एक पुतला है।

कबीर मेरी जाति को सभु को हंसनेहार बलिहारी इस जाति कउ जिहि जपिओ सिरजन हारु

सद्गुरु कबीर साहिब को लोग नीची जाति का कह कर उनका उपहास उड़ाते थे लेकिन सद्गुरु कबीर जी ने इसे बहुत ऊंचा समझा, जिसने भगवान का नाम जपाया और जन्म लेकर भक्ति में लीन हुए।

सद्गुरु कबीर साहिब की वाणी बताती है कि ज्ञान की पूर्णता से ही जीव को छुटकारा मिल सकता है। उनकी उपदेशात्मक साखियों को अपने जीवन में उतार लें तो हमारा जीवन हमेशा-हमेशा के लिए सुखी बन सकता है। वह वस्तुत: संत साधक थे। किसी प्रकार की आर्थिक सम्पन्नता सामाजिक प्रतिष्ठा आदि लौकिक वस्तुओं को अपने लिए ही नहीं, बल्कि मानव मात्र के लिए तुच्छ समझते हैं। उनकी साधना का मूल मानव मात्र का आध्यात्मिक कल्याण है। भक्ति, प्रेम, ज्ञान और सदाचरण द्वारा वह ईश्वर को प्राप्त करने का संदेश दे रहे हैं।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागौं पांय। बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दिया बताय॥

वह कहते हैं कि गुरु और ईश्वर दोनों मेरे सामने खड़े हैं, मैं किसके चरण स्पर्श करूं? सद्गुरु कबीर गुरु के महत्व को मानते हुए कहते हैं कि मैं सर्वप्रथम गुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूं जिन्होंने मुझे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया।
कबीरा सोई पीर है, जो जानै पर पीर। जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥

सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं कि वही ‘पीर’ (संत) है जो दूसरे व्यक्ति की पीड़ा को जानता है। जो दूसरे की पीड़ा को नहीं जानता अर्थात जिसके मन में अन्य प्राणियों के प्रति दया-भाव नहीं है वह काफिर बेपीर (निर्दयी) कहलाता है।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि। सब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि॥

जीव कहता है कि जब मेरे भीतर ‘अहं’ का भाव था तब तक ईश्वर की प्राप्ति मुझे नहीं हुई। अब ईश्वर से साक्षात्कार हो गया है और मेरे भीतर का अहं समाप्त हो गया। अब अनंत प्रकाश में आत्मस्वरूप को देख लेने से सारा अज्ञान का अंधकार मिट गया।
हिन्दू कहूं तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहि। पांच तत्व का पूतला गैवीं खेलैं माहि॥

मैं न हिन्दू हूं न मुसलमान। मैं तो पांच तत्वों का पुतला हूं जो ईश्वर के द्वारा बनाया गया हूं वही अदृश्य पुरुष सबमें खेल रहा है।
उन्होंने सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाकै हिरदै सांच है ताकै हृदय आप।

सत्य के समान संसार में कोई तप नहीं है और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है जिसके हृदय में सत्य का निवास है उनके हृदय में ईश्वर स्वयं वास करते हैं।

पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोये। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होये॥

पोथी पढ़-पढ़ कर सारा जग मर गया पर कोई पंडित नहीं हुआ, जो प्रेम का एक अक्षर पढ़ लेता है वही पंडित होता है।

प्रेमी ढूंढत मैं फिरौ प्रेमी मिलै न कोई। प्रेमी को प्रेमी मिलैं तब सब विष अमृत होई॥
कबीर साहब कहते हैं कि मैं ईश्वर-प्रेमी को ढूंढता फिर रहा हूं परंतु मुझे सच्चा ईश्वर-प्रेमी नहीं मिला। जब एक ईश्वर प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी को मिल जाता है तो विषय-वासनाओं रूपी सम्पूर्ण सांसारिक विष प्रेम रूपी अमृत में बदल जाता है। 


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Niyati Bhandari

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