चोरी करने पर यहां देवी देती है पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद

punjabkesari.in Sunday, May 26, 2019 - 04:37 PM (IST)

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भारत देश में देवी के कई मंदिर हैं, जिनकी अपनी अपनी अलग महत्वा है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो देवभूमि उत्तारखंड में स्थित है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के चुड़ियाला गांव में सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी के मंदिर की। कहा जाता है कि इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि जो किसी की भी नैतिक शिक्षा को नकार देगी और आपको हैरान कर देगी। आपको बता दें कि दरअसल इस धार्मिक स्थान पर भक्तों को अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोगों को चोरी करनी होती है। जी हां, आपको जानकर हैरानी ज़रूर होगी लेकिन ये सच है।
PunjabKesari, Sidhpeeth Chudamani Temple, Uttarakhand, सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर
चोरी करने की प्रथा
कहा जाता पुत्र प्रप्ति की इच्छा रखने वाले जोड़े इस मंदिर में आकर माता के चरणों से पड़ा लकड़ी का गुड्डा चोरी करके अपने साथ ले जाता है उन्हें पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है। मगर इसके बाद अषाढ़ माह में पुत्र के साथ माता-पिता का मां के दरवार में मात्था टेकना ज़रूरी माना जाता है। बता दें कि जहां भंडारे के साथ ही जोड़े द्वारा ले जाए हुए लकड़े के गुड्डे के साथ ही एक अन्य लोकड़ा (यानि लकड़ी की गुड्डा) अपने पुत्र के हाथों से चढ़ाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। गांव की प्रत्येक बेटियां भी विवाह के पश्चात पुत्र प्राप्ति के बाद लोकड़ा चढ़वाना नहीं भूलती है। लोगों का कहना है कि एक बार लंढौरा रियासत के राजा जंगल में शिकार करने आए जंगल में घूमते-घूमते उन्हें माता की पिंडी के दर्शन हुए। राजा के यहां कोई पुत्र नहीं था। राजा ने उसी समय माता से पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी। जिसके बाद पुत्र प्राप्ति के बाद उसने सन् 1805 में मंदिर का भव्य निर्माण कराया।
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पौराणिक कथा
प्रचलित कथाओं के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किए जाने से क्रोधित और निराश हुए माता सती ने यज्ञ में कूदकर यज्ञ को विध्वंस कर दिया था। कहा जाता है इसके बाद भगवान शिव जिस समय माता सती के मृत शरीर को उठाकर ले जा रहे थे तब माता सती का चूड़ा यहां के घनघोर जंगल में गिरा था। जिसके बाद यहां माता की पिंडी स्थापित होने के साथ ही भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

पिंडी के दर्शनों को आते थे शेर
बताया जाता आज जहां ये मंदिर स्थापित है वहां पहले घनघोर जंगल हुआ करता था, जहां शेरों की दहाड़ सुनाई पड़ती थी। किंवदंतियों के अनुसार माता की पिंडी पर रोज़ाना शेर भी मत्था टेकने के लिए आते थे।
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Jyoti

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