पंजाब की सड़कों पर बेखौफ घूम रही जुगाड़ू एम्बुलैंसें

punjabkesari.in Saturday, Apr 20, 2019 - 10:17 AM (IST)

फिल्लौर(भाखड़ी): पंजाब की सड़कों पर बेखौफ घूम रही जुगाड़ू एम्बुलैंसें मरीजों की जान बचाने की जगह जान लेने का काम कर रही हैं। आर.टी.आई. से मिली जानकारी से हुए खुलासे के अनुसार लुधियाना महानगर की ट्रैफिक पुलिस ने पिछले 2 वर्षों से एक भी जुगाड़ू एम्बुलैंस का चालान नहीं किया है। जबकि लुधियाना में प्रदेश के सबसे ज्यादा और बड़े अस्पताल होने के चलते बड़ी संख्या में जुगाड़ू एम्बुलैंस घूमती देखी जा सकती हैं। ये एम्बुलैंस मरीजों को बिना किसी मंजूरी व उपकरण के एक शहर से दूसरे शहर ले जा रही हैं, जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।

4 कैटेगरी की होती हैं एम्बुलैंस
आर.टी.आई. कार्यकत्र्ता रोहित सभ्रवाल ने बताया कि भारत ही नहीं बल्कि सभी देशों में एम्बुलैंस का बहुत बड़ा महत्व है। दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति या फिर बीमारी से पीड़ित मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने और व्यक्ति की जान बचाने में एम्बुलैंस अहम योगदान देती है। हमारे देश में एम्बुलैंस की 4 कैटेगरी हैं। पहली कैटेगरी की एम्बुलैंस का काम सड़क या गलियों में छोटी-मोटी दुर्घटना होने पर मरीज को डाक्टरी सुविधा उपलब्ध करवाना है, दूसरी कैटेगरी की एम्बुलैंस मरीज की पहचान कर उसकी नाजुक हालत को देखते हुए उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाने के काम आती है, तीसरी कैटेगरी की एम्बुलैंस में इंसान की जान बचाने वाले सभी उपकरण होते हैं और चौथी कैटेगरी की एम्बुलैंस में अस्पताल में इस्तेमाल किए जाने वाले हर प्रकार के एडवांस उपकरण व डाक्टर उपलब्ध होता है, जो दुर्घटना के वक्त मौके पर ही इंसान की जान बचाने में सक्षम होती है। 


एम्बुलैंस डाक्टर या अस्पताल के नाम पर होती हैं रजिस्टर्ड
हड्डियों के मशहूर डाक्टर अविनाश चौहान ने बताया कि नियमों के मुताबिक एबुलैंस के लिए वाहन खरीदते वक्त इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि एम्बुलैंस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला वाहन डाक्टर, चैरीटेबल ट्रस्ट या फिर अस्पताल के नाम पर हो। दूसरा इस एम्बुलैंस को चलाने वाले ड्राइवर को भी विशेष तौर पर मरीज की जान बचाने के लिए उसे उठाकर एम्बुलैंस में डालने की ट्रेनिंग दी जाती है। अफसोस की बात है कि प्रदेश में ज्यादातर एम्बुलैंस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों को लोगों ने अपने ही नाम पर खरीद कर उन्हें एम्बुलैंस बनाया हुआ है।

मुनाफे का कारोबार देख खुद ही बना ली जुगाड़ू एम्बुलैंस
रोहित सभ्रवाल ने बताया कि टैक्सी चलाने जैसे कारोबार में कम मुनाफा होता देख कुछ लोगों ने खुद ही गाडिय़ों के ऊपर एम्बुलैंस लिख कर उसमें एक बैड लगाकर उसे जुगाड़ू एम्बुलैंस बना लिया। मरीज को नजदीक के अस्पताल छोडऩे या मात्र कुछ ही किलोमीटर का 2 से 3 हजार और दूसरे प्रदेश छोडऩे का 15 से 20 हजार रुपया ले रहे हैं। ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल इन जुगाड़ू एम्बुलैंसों पर निर्भर हैं। एम्बुलैंस में कभी भी डैड बॉडी को नहीं ले जाया जाता जबकि यह जुगाड़ू एम्बुलैंस अधिक रुपए लेकर मृत शरीर भी उठा कर ले जा रही हैं। दूसरा इन जुगाड़ू एम्बुलैंसों में स्वाइन फ्लू व अन्य छूत की बीमारियों से बचने के लिए न ही कोई कैबिन और न ही कोई उपकरण लगे होते हैं जो मुनाफे के चक्कर में मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ है। 


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