इस एक काम से रात में देखा गया हर सपना हो सकता है पूरा

punjabkesari.in Friday, Apr 19, 2019 - 04:34 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)
जलालुद्दीन रूमी अनंत प्रेम के सच्चे उपासक और सही मायनों में एक सूफी संत थे। एक दिन उनके पास उनका एक शिष्य अरमान आया, जो एक बड़ा व्यापारी बनना चाहता था। इस व्यापार के लिए वह प्रतिपल एक नया सपना बुनता, पर क्रिया के अभाव में वह सपना टूट जाता। अरमान बोला, ‘‘बाबा, क्यों मेरे सारे सपने ऊषाकालीन ओस की बूंद के समान होते हैं, सूरज की रोशनी पड़ी कि गायब हो जाते हैं? मैं परेशान हो चुका हूं बाबा! आखिर मेरे सपने पूरे क्यों नहीं होते?’’
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बाबा रूमी अपने इस शिष्य की मनोवृत्ति जानते थे। वह उसकी बात सुनकर बोले, ‘‘बेटा, दिक्कत यह है कि तुम केवल सपने देखते हो और ऊर्जा के अभाव में सपने गिर जाते हैं। सपना देखना गलत नहीं है। गलत तो केवल निष्क्रिय, निस्तेज एवं आलसी होकर सपने देखना है। ऐसे सपने को दिवास्वप्न कहते हैं। यह तो निकम्मों का काम है। पर तुम निकम्मे मत बनो। कड़ी मेहनत करो, अपने समय का सदुपयोग बेहतर कार्य करने में करो, तभी ऊर्जा का संचय होगा और वही तुम्हारे सपनों को हकीकत में बदल देगा और जो तुम पाना चाहते हो, वह पा सकोगे। इसलिए पलायनवादी मत बनो, उठो और मेहनत करो।’’

अरमान को बाबा की बात समझ में आ गई। उसे समझ में आ गया कि भविष्य का ताना-बाना बुनने से पहले उसे कार्य रूप में परिणत करना पड़ेगा। उसने कहा, ‘‘बाबा, आपकी बात सिर-माथे पर, लेकिन आप यह तो बताएं कि शुरूआत कहां से करूं?’’
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जलालुद्दीन रूमी बोले, ‘‘अतीत की यादें एवं भविष्य के सपने ईश्वर व मनुष्य के बीच पर्दा डाल देते हैं। हमारे हाथ में न तो अतीत है और न ही भविष्य, दोनों ही हमसे दूर हैं। हमारे निकट है तो केवल वर्तमान का क्षण। यही वर्तमान का क्षण ही सच व यथार्थ है। अत: इसका सदुपयोग करना सीखना चाहिए। इसी में जीने का अभ्यास करना चाहिए। जो वर्तमान को साध लेता है, वह अगला-पिछला सभी कुछ साध लेता है। वर्तमान में विभूतियों, उपलब्धियों का अंबार भरा पड़ा है। इसे उघाड़कर तो देखो, इसमें झांककर तो देखो। यही साधना है और इसी को साधना है।’’

यह सुनकर अरमान उठा और अपने सपनों को कार्यरूप में परिणत करने के लिए निकल पड़ा।


 


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