ऑफ द रिकार्ड: कम मतदान होने के बाद आर.एस.एस. हुआ सक्रिय
punjabkesari.in Thursday, Apr 18, 2019 - 04:57 AM (IST)
नेशनल डेस्क: भाजपा नेतृत्व इस बात को लेकर चिंतित है कि उसके परम्परागत मतदाता और आर.एस.एस. के पुराने कार्यकत्र्ता आराम से घर में बैठे हैं या फिर वैसी कड़ी मेहनत नहीं कर रहे जैसी उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों दौरान की थी। ऐसा दिखाई देता है कि पार्टी के कार्यकत्र्ता इन चुनावों को लेकर काफी बेचैन हैं। इस संबंधी पहला संकेत लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देखने को मिला जहां 91 सीटों के लिए मतदान हुआ था। यद्यपि 2014 में भाजपा ने अकेले ही अपने बलबूते पर इन 91 सीटों में से 32 सीटों पर जीत हासिल की थी और इस बार अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है। गाजियाबाद को छोड़कर अधिकांश सीटों पर मतदान कम हुआ है।
उत्तर प्रदेश की अन्य 7 सीटों पर वर्ष 2014 के मुकाबले कम मतदान हुआ। वर्करों की उदासीनता का एक अन्य संकेत उस समय मिला जब आर.एस.एस. के महासचिव कृष्ण गोपाल ने पिछले सप्ताह आगरा में पार्टी वर्करों की बैठक बुलाई। उन्होंने वी.एच.पी., ए.बी.वी.पी. बजरंग दल जैसे आर.एस.एस. से संबंधित संगठनों के राज्य प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई थी। उत्तर प्रदेश में 8 अन्य सीटों के लिए मतदान कल दूसरे चरण में होने जा रहा है। गोपाल जी 2019 के चुनाव के लिए रणनीति और अन्य मुद्दों पर चर्चा करना चाहते थे। उन्होंने पाया कि प्रतिनिधियों में काफी रोष व्याप्त है। इन प्रतिनिधियों ने अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा कि सत्ता में रहते हुए पिछले 5 वर्षों में भाजपा ने उनकी उपेक्षा की है।
सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा उनके अनुरोधों की कोई सुनवाई नहीं की गई। बैठक में स्वतंत्र और खुले मन से चर्चा की गई। इसलिए वर्करों ने खुले मन से अपनी बात कही। कृष्ण गोपाल ने पदाधिकारियों और वर्करों को शांत करने की कोशिश की और उनसे कहा कि भाजपा के लिए कड़ी मेहनत के साथ अभियान चलाएं ताकि इस बात को यकीनी बनाया जा सके कि मोदी सरकार फिर सत्ता में आए। यद्यपि पदाधिकारियों ने सहमति जताई। मगर यह स्पष्ट हो गया है कि अमित शाह जिस तरह पार्टी का संचालन कर रहे हैं वह परम्परागत पुराने वर्करों का अपमान और उनको नजरअंदाज कर रहे हैं जिन्होंने पार्टी को मजबूत बनाया था। इस मामले से ब्राह्मण बहुत निराश हैं।
ऐसी रिपोर्ट है कि आर.एस.एस. के कार्यकत्र्ता इस बार उतने उत्साहित नहीं हैं जितने वे 2014 में थे। 5 वर्ष पूर्व आर.एस.एस. कार्यकत्र्ताओं ने दिल से कड़ी मेहनत कर भाजपा की मदद की थी जिसके परिणामस्वरूप उसे भारी जीत हासिल हुई। इस बार कम मतदान होने से पार्टी नेतृत्व चिंतित है और उसके बाद आर.एस.एस. की समूची मशीनरी चुनाव अभियान में कूद पड़ी है। क्या वे भाजपा की खिसक रही जमीन को रोक सकेंगे, इस बारे कोई नहीं जानता?