सुप्रीम कोर्ट की झिड़की पर जागा चुनाव आयोग

punjabkesari.in Thursday, Apr 18, 2019 - 03:38 AM (IST)

मैंने पिछले 40 वर्षों से चुनावों को नजदीक से देखा और कवर किया है। ऐसे में मैं यह निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि वर्तमान लोकसभा चुनाव सबसे ज्यादा कड़वाहट भरे साबित हो रहे हैं और इनसे चुनावी चर्चा निम्रतर स्तर पर आ पहुंची है। पिछले चुनावों में भी कई अपवाद रहे हैं और उनसे कानून के तहत सख्ती से निपटा गया लेकिन इस बार राजनीतिक दलों में दुर्भावना फैली हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता भी इस तरह के ट्रैंड को बढ़ावा दे रहे हैं और अन्यों को सभी सीमाएं लांघने के लिए उत्साहित कर रहे हैं। 

2014 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने पूरी ताकत और आक्रामकता से लड़े थे जबकि उस दौरान भी ओछी शब्दावली का ऐसा प्रयोग नहीं किया गया। ऐसा शायद इसलिए हुआ कि  उस समय यह स्पष्ट था कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाने जा रही है और अन्य दलों ने भी मोदी लहर के आगे घुटने टेक दिए थे।  इस बार कोई लहर न होने और किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना कम होने के कारण हर पार्टी और उम्मीदवारों के मन में ङ्क्षचता है लेकिन इस प्रक्रिया में चुनावी चर्चा का स्तर नीचे आ गया है। इस बार अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जिस तरह की अभद्र और कठोर भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है ऐसा शायद पहले कभी नहीं देखा गया। 

‘पप्पू’  और ‘फैंकू’ से हुई शुरूआत 
इस तरह के घृणित प्रचार के बीज शायद सोशल मीडिया और सामान्य चर्चाओं में ‘पप्पू’  और ‘फैंकू’ के इस्तेमाल से आए। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है चुनाव प्रचार में अभद्र भाषा के प्रयोग में तेजी आ रही है। ऐसे में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कई मामलों में तमाम शक्तियां होने के बावजूद चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहा। उसने नेताओं की fखंचाई करने या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए प्रयास नहीं किए। जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की ङ्क्षखचाई की और ये संकेत दिए कि वह मुख्य चुनाव आयुक्त को कोर्ट में बुला सकता है तो चुनाव आयोग  अचानक नींद से जागा और इसने कुछ नेताओं पर अपना चाबुक चलाया। 

ये नेता, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा नेता आजम खां, बसपा नेता मायावती और केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी साम्प्रदायिक टिप्पणियां कर रहे थे और मतदाताओं को किसी न किसी तरह से उकसा रहे थे। इन नेताओं की टिप्पणियों के लिए उन्हें कुछ अवधियों तक प्रचार करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया गया। इन नेताओं की देखा-देखी छोटे स्तर के नेता भी अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।  इसका एक आहत करने वाला उदाहरण हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला जहां प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ खुले तौर पर अभद्र भाषा का प्रयोग किया। पार्टी की केरल इकाई के अध्यक्ष श्रीधरण पिल्लई ने भी साम्प्रदायिक टिप्पणी की। 

राहुल और मोदी को लेनी होगी जिम्मेदारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी को इस स्थिति और एक-दूसरे के खिलाफ घृणात्मक प्रचार शुरू करने तथा अपने नेताओं पर लगाम नहीं लगाने के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी। मोदी द्वारा बार-बार राहुल को  अपरिपक्व बताना ठीक नहीं था। उधर राहुल भी बार-बार ‘चौकीदार चोर है’ नारे का प्रयोग करते रहे थे। इसने भाजपा नेताओं को उत्तेजित किया। अब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को राफेल डील के बारे में कोर्ट की  जजमैंट का गलत हवाला देने और एक टिप्पणी के लिए कोर्ट का संदर्भ देने पर नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब किया है। 

मोदी ने सेना को राजनीति में घसीटा
लेकिन राहुल गांधी और उनके पारिवारिक सदस्यों पर व्यक्तिगत हमलों के अलावा प्रधानमंत्री ने सेना को भी राजनीति में घसीटा है। पहले उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्र भक्ति पर  सवाल उठाए और फिर पहली बार वोट देने जा रहे मतदाताओं से अपना वोट बालाकोट तथा उससे पहले हुई सॢजकल स्ट्राइक्स को समॢपत करने का आह्वान किया। अब उन्होंने कहा कि किसानों की आत्महत्या की तरह जवानों का बलिदान भी चुनावी मुद्दा हो सकता है। बेशक दोनों में तुलना हो  सकती है। चुनाव आयोग इन टिप्पणियों पर चुप है और एक दिन योगी आदित्यनाथ ने तो भारतीय सेना को ‘मोदी सेना’ कह डाला था। 

चुनाव आयोग को पहले ही नेताओं पर शिकंजा कसना चाहिए था और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की झिड़की के इंतजार में नहीं रहना चाहिए था। आज के समय में देश पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन को याद कर रहा है जिन्होंने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर उनमें डर पैदा कर दिया था। वर्तमान में चुनाव आयोग को शेषन द्वारा स्थापित आदर्शों पर चलना चाहिए।-विपिन पब्बी
 


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