क्या मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ेंगी प्रियंका

punjabkesari.in Wednesday, Apr 17, 2019 - 04:06 AM (IST)

कांग्रेसी खेमे में ऐसी चर्चा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ कर अपनी चुनावी पारी की शुरूआत कर सकती हैं। कांग्रेस नेतृत्व इस बारे में चुप है हालांकि प्रियंका गांधी ने इस रहस्य को बरकरार रखा है।

हाल ही में रायबरेली में जब पार्टी कार्यकत्र्ताओं ने प्रियंका गांधी से चुनाव में खड़े होने का अनुरोध किया तो उन्होंने कार्यकत्र्ताओं से यह पूछते हुए प्रतिक्रिया दी कि क्या उन्हें वाराणसी से चुनाव लडऩा चाहिए। कांग्रेस वाराणसी से प्रियंका को चुनाव में उतार सकती है। ऐसी चर्चाएं पिछले कुछ दिनों से हैं। शनिवार को पार्टी ने कहा कि वह अफवाहों पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी और यदि ऐसा कोई निर्णय लिया जाता है तो मीडिया को इसके बारे में सूचित किया जाएगा। 

प्रश्र यह है कि क्या वह चुनाव मैदान में कूदेंगी। प्रियंका को राजनीति में आने में कई वर्ष लगे हैं। गांधी परिवार इस बारे में काफी सावधानी रखता है कि राजनीति में कब प्रवेश किया जाए और कहां से चुनाव लड़ा जाए। इन मामलों में यह परिवार काफी सोच-समझ कर फैसला लेता है। यहां तक कि सोनिया गांधी को भी यह फैसला लेने में 7 साल लगे और वह राजनीति में 1998 में आईं जब पार्टी खराब स्थिति में थी और उसे किसी करिश्माई नेता की जरूरत थी। 

उन्होंने उस समय पार्टी में आने का साहस दिखाया जब पार्टी विपक्ष में मरणासन्न स्थिति में थी और इसके तुरंत पुनर्जीवित होने के कोई आसार नहीं थे। वह 1999 में चुनाव में उतरीं और विपक्ष की पहली महिला नेता बनीं। राजनीति में अनाड़ी होने के बावजूद उन्होंने भाजपा को मुद्दों पर घेरा। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके अच्छे रिश्ते थे। यू.पी.ए. की कमान सम्भाल कर सोनिया ने सब को हैरान कर दिया और भाजपा के ‘इंडिया शाइङ्क्षनग’ के सपने को ध्वस्त करते हुए लगातार दो बार सत्ता में रहीं। 

राजनीति में राहुल की एंट्री
राहुल गांधी ने 2004 में राजनीति में प्रवेश किया और परिवार के गढ़ अमेठी से चुनाव लड़ा व जीता। तब से वह राजनीति में हैं। राहुल गांधी को 2007 में पार्टी महासचिव और 2013 में उपाध्यक्ष बनाया गया। पिछले वर्ष मार्च में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार सम्भाला। यह पहली बार है कि वह आम चुनावों में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं और यदि पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह उनके लिए महत्वपूर्ण होगा। राजनीति में प्रियंका गांधी की एंट्री भी एक सोचा-समझा कदम था और उनके प्रवेश का समय हैरानीजनक माना जा रहा है क्योंकि पार्टी में कई वर्षों से उनकी मांग की जा रही थी। प्रियंका को राहुल गांधी के मुकाबले अधिक करिश्माई नेता माना जाता है और ऐसा अनुमान है कि वह इस डर से राजनीति में नहीं आ रही थीं कि इससे उनके भाई का प्रभाव कम न हो जाए। बहरहाल, सोनिया गांधी की सक्रियता कम होने के बाद प्रियंका मैदान में आ गई हैं। 

चुनाव लडऩे का निर्णय पूरी तरह परिवार पर छोड़ दिया गया है। क्या गांधी परिवार के तीनों सदस्यों को चुनाव मैदान में उतरना चाहिए, यह प्रश्र भी परिवार पर ही छोड़ दिया गया है। उत्तर प्रदेश में दिन-प्रतिदिन शोर तेज होता जा रहा है। पार्टी नेताओं और कार्यकत्र्ताओं का मानना है कि प्रियंका के आने से प्रदेश और देश में कांग्रेस और मजबूत होगी। 

भाजपा का गढ़ है वाराणसी
प्रियंका के चुनाव में आने के बारे में काफी समय से चर्चा थी। पहले यह माना जा रहा था कि यदि सोनिया गांधी अवकाश ले लेती हैं तो प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी। पार्टी की इलाहाबाद इकाई ने यह मांग करते हुए प्रस्ताव पास किया था कि कांग्रेस नेतृत्व फूलपुर से प्रियंका को चुनाव में उतारे जहां से पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू लोकसभा सदस्य रहे हैं। ऐसा अब भी हो सकता है क्योंकि प्रियंका वहां अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। मोदी को हराना कठिन हो सकता है क्योंकि वह अब भी वाराणसी में मशहूर हैं। पारम्परिक तौर पर भी, 2004 को छोड़ कर, 1991 से लेकर अब तक वाराणसी से भाजपा ही चुनाव जीतती रही है। 

अब बात उस अनुमान की जिसे खुद प्रियंका हवा देती रही हैं। बार-बार यह पूछे जाने पर कि क्या वह चुनाव लड़ेंगी, प्रियंका ने सीधे मीडिया से पूछा ‘‘क्यों नहीं’’ ‘‘आप भी लड़ सकते हो’’, उन्होंने कहा, ‘‘यदि मेरी पार्टी मुझे चुनाव लड़वाना चाहती है तो मैं अवश्य लड़ूंगी।’’ कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं का मानना है कि इंदिरा गांधी से उनकी शक्ल मिलने के कारण वह काफी वोट खींच सकती हैं। प्रियंका गांधी लोगों से खूब घुल-मिल जाती हैं और वह काफी भीड़ जुटाने वाली नेता हैं। 

इस बार मोदी लहर नहीं
पार्टी के एक धड़े का मानना है कि यदि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो मोदी वाराणसी में सिमट कर रह जाएंगे। दूसरे, क्योंकि कोई मोदी लहर नहीं है, ऐसे में प्रियंका के लिए उनका मुकाबला करना आसान होगा। तीसरे, 2014 में मोदी के खिलाफ लगभग 4 लाख वोट बंट गए थे। यदि प्रियंका को कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया जाता है तो मत विभाजन को रोका जा सकता है। चौथे, वह गांधी परिवार से एक नया चेहरा होंगी। पार्टी ने अभी तक वाराणसी और फूलपुर से किसी का भी नाम घोषित नहीं किया है।

इस बीच राहुल और प्रियंका 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना चाहती है। प्रियंका ने स्पष्ट किया है ‘‘हम 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए माहौल तैयार कर रहे हैं।’’ मोदी के खिलाफ प्रियंका के चुनाव लडऩे पर पी.एम. की प्रतिक्रिया थी ‘‘लोकतंत्र में, कोई भी कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है। मैं इस बात से नहीं डरता कि कहां से कौन चुनाव लड़ रहा है। यह मेरे लिए मायने नहीं रखता।’’ मोदी और प्रियंका का मुकाबला काफी दिलचस्प होगा लेकिन बड़ा प्रश्र यह है कि क्या कांग्रेस यह जोखिम लेगी।-कल्याणी शंकर


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