पश्चिमी यू.पी. में ‘कड़ा मुकाबला’

punjabkesari.in Monday, Apr 15, 2019 - 03:59 AM (IST)

आम चुनाव के पहले चरण में वीरवार को 91 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटें शामिल हैं। 2014 में भाजपा गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में 73 सीटें जीती थीं और  मतदान के पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर हुए चुनावों के नतीजों को लेकर राजनीतिक विश्लेषक पशोपेश में हैं। पिछले चुनावों में भाजपा ने सभी 8 सीटें जीती थीं। हालांकि इस क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या 25 से 30 प्रतिशत है लेकिन 2014 में पश्चिमी यू.पी. से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता था। 

ऐसा शायद इसलिए हुआ था क्योंकि 2013 में मुजफ्फरनगर में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे जिस कारण भाजपा के पक्ष में लहर थी और उस समय विपक्षी पार्टियों का गठबंधन नहीं था लेकिन इस बार सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन वोटों के विभाजन को रोक सकता है और राज्य तथा केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के कारण सत्ता विरोधी लहर भी भाजपा को नुक्सान पहुंचाएगी। 

इस बार अजीत सिंह ने जाट समुदाय में काफी मेहनत की है जिसके परिणामस्वरूप 70 प्रतिशत से अधिक जाट चौधरी चरण सिंह के परिवार के साथ हैं। इस बार कांग्रेस के अधिकतर उम्मीदवारों के चुनाव लडऩे से सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवारों पर ज्यादा  असर नहीं पड़ेगा लेकिन भाजपा उम्मीदवारों को इससे नुक्सान होगा। इस बार भी मत प्रतिशत 2014 की तरह ही रहा। ऐसे में यह दिलचस्प है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी 8 सीटों पर भाजपा तथा सपा-बसपा-रालोद गठबंधन अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। 

मतों का ध्रुवीकरण बनाम गैर- ध्रुवीकरण
लोकसभा चुनाव में पहली बार ध्रुवीकरण पूरे जोरों पर है। यदि कन्हैया कुमार बेगुसराय की भीड़ में आजादी का राग अलाप रहे हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद को बजरंग बली का तथा विरोधियों को अली का भक्त बता रहे हैं। उधर  दारुल उलूम से जुड़े कस्बे देवबंद में सपा-बसपा की संयुक्त रैली में मायावती और अखिलेश यादव ने मुसलमानों से आह्वान किया कि वे कांग्रेस को वोट न डालें क्योंकि ऐसा करने से भाजपा मतों का ध्रुवीकरण करने में सफल हो जाएगी। बसपा सूत्रों का कहना है कि उन्होंने यहां रैली का आयोजन इसलिए किया था क्योंकि यह तीन लोकसभा क्षेत्रों सहारनपुर, कैराना और मुजफ्फरनगर का केन्द्र है तथा भाईचारे का प्रतीक समझा जाता है। देवबंद की रैली के बाद मायावती ने घोषणा की कि अली और बजरंग बली दोनों हमारे हैं। मतों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश न करें। 

नेता जी की फिसली जुबान
चुनावी गहमागहमी में कई बार नेता यह भूल जाते हैं कि क्या कहना है और क्या नहीं और ऐसा कहते समय वे उसका अंजाम भी भूल जाते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) नेता अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी 2013 की साम्प्रदायिक हिंसा के बाद दिखाई नहीं दिए लेकिन अब जगह-जगह वोट मांगते फिर रहे हैं। 

मोदी की इस टिप्पणी से जाटों में नाराजगी है क्योंकि उनका मानना है कि यह जाट नेता चौधरी चरण सिंह के परिवार पर सीधा हमला है। नरेन्द्र मोदी ने मेरठ और सहारनपुर की रैली में एक जैसी भाषा का प्रयोग किया। उधर गन्ना किसान वर्तमान सीजन के लिए चीनी मिलों द्वारा भुगतान न किए जाने पर नाराज हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रैलियों में कह रहे हैं कि लोगों को बहुत अधिक गन्ना नहीं उगाना चाहिए क्योंकि गन्ने से डायबिटीज होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदाता नरेन्द्र मोदी और यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टिप्पणियां सुनने के बाद असमंजस में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के भाषणों से निश्चित तौर पर मतों का ध्रुवीकरण रुकेगा। 

तृणमूल कांग्रेस बनाम भाजपा
पश्चिम बंगाल में टी.एम.सी. ने भी रामनवमी मनाना शुरू कर दिया है ताकि मतदाताओं को यह संदेश दिया जा सके कि भाजपा ही हिन्दूवाद की एकमात्र संरक्षक नहीं है। पश्चिमी मिदनापुर जिला तामलुक टी.एम.सी. उम्मीदवार दिदयेन्दु अधिकारी ने रामनवमी की पूजा में भाग लिया और टी.एम.सी. पार्षदों इंद्रजीत घोष और सुब्रत मुखर्जी ने हुगली के उत्तरपाड़ा में जलूस का नेतृत्व किया लेकिन हथियारों के बिना। इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रामनवमी रैली के दौरान हथियारों के प्रदर्शन के लिए भाजपा नेताओं पर निशाना साधा और कहा कि भाजपा  इन रैलियों का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल के लोगों को गुमराह करने के लिए कर रही है। टी.एम.सी. का कहना है कि उनका मुख्य प्रहार प्रदेश भाजपाध्यक्ष  दिलीप घोष पर है जो खडग़पुर में जलूस में तलवार लेकर चल रहे थे जहां से वह चुनाव लड़ रहे हैं। 

‘‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’’ 
इन लोकसभा चुनावों में स्वामी रामदेव ने चुप्पी साध ली है और वह किसी पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में स्वामी रामदेव ने देश भर में कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में धरनों और विरोध रैलियों में भाग लिया था। तब उन्होंने यह वायदा किया था कि यदि भाजपा नहीं जीतती है तो वह हरिद्वार से दूर रहेंगे और अपने कार्यकत्र्ताओं के लिए भाजपा से कुछ टिकट की भी मांग की थी लेकिन इस बार वह चुनाव से दूरी बनाए हुए हैं और अपने अनुयायियों के लिए टिकट की मांग भी नहीं की है। 

भाजपा नेताओं के अनुसार स्वामी रामदेव को उतना नहीं मिला जितनी उन्होंने उम्मीद की थी। यही कारण है कि उन्होंने प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भाग नहीं लिया। नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के 4 साल पूरे होने के बाद पतंजलि योगपीठ का दौरा किया। रामदेव की कम्पनी कांग्रेस सरकार के समय फली-फूली और भाजपा सरकार के समय उन्हें वैदिक शिक्षा बोर्ड की क्लीयरैंस के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। वीरवार को हरिद्वार में मतदान के बाद स्वामी रामदेव ने मीडिया से कहा कि जनता को उन्हीं लोगों को सांसद  चुनना चाहिए जो देश और संविधन के प्रति वफादार हों लेकिन उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में एक शब्द भी नहीं कहा। उन्होंने केवल इतना कहा कि ‘‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।’’ ऐसी एक चर्चा है कि स्वामी रामदेव इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि भाजपा इन लोकसभा चुनावों में दोबारा सत्ता में आएगी। यही कारण है कि उन्होंने इन चुनावों में चुप्पी साधे रखी है।-राहिल नोरा चोपड़ा
 


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