जब पार्टी दफ्तर में ही लगाया गया ‘शाह का बिस्तर’

punjabkesari.in Sunday, Apr 14, 2019 - 03:53 AM (IST)

देश में पहले चरण के मतदान के ठीक पहले वाली शाम को भाजपा के लखनऊ कार्यालय में पार्टी दिग्गजों की एक मैराथन बैठक चली। इस बैठक में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी, दोनों उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य, सुनील बंसल, महेंद्र पांडेय मौजूद थे और इस बैठक की अध्यक्षता स्वयं अमित शाह कर रहे थे। यू.पी. के सियासी व चुनावी हालात पर हो रही यह मंत्रणा इतनी गंभीर थी कि सूत्र बताते हैं कि बैठक खत्म होते-होते सुबह के 3 बज गए। 

कहते हैं तब भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अब उनके अंदर इतनी एनर्जी नहीं बची है कि वे होटल जा पाएं, अच्छा होगा कि अगर उनका बिस्तर यहीं लगवा दिया जाए। आनन-फानन में शाह के लिए बिस्तर का जुगाड़ किया गया, वैसे भी इस मैराथन मंथन के बाद शाह आश्वस्त थे कि गैर यादव, गैर जाटव और जाट मतदाताओं पर ही भाजपा को सारा दाव लगाना होगा, तब ही प्रदेश में पार्टी का बेड़ा पार हो सकता है। एक पुरानी कहावत है कि समंदर में बवाल हो और जहाज का कैप्टन पूरी हरकत में आ जाए तो इससे क्या संदेश मिलता है? 

क्या अब हाजीपुर से चिराग?
रामविलास पासवान अपने स्वास्थ्यगत कारणों से इस दफे का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, चुनांचे उनकी पार्टी लोजपा चलाने की सारी जिम्मेदारी उनके युवा सांसद पुत्र चिराग पासवान के कंधों पर आन पड़ी है। चिराग बिहार के जमुई संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जहां से वे 2014 में सांसद चुने गए थे। इस बार जमुई में 11 अप्रैल को पहले चरण में मतदान सम्पन्न हो चुका है। पर लोजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस बार जमुई में अपनी जीत को लेकर चिराग और उनकी कोर टीम इतनी आश्वस्त नहीं जान पड़ती सो इन सम्भावनाओं पर भी विचार किया जा रहा है कि चिराग क्यों नहीं अपने पिता की परम्परागत संसदीय सीट हाजीपुर से भी चुनाव लड़ जाएं, जहां उनकी जीत की संभावनाएं कहीं ज्यादा बेहतर हैं। हाजीपुर एक सुरक्षित संसदीय सीट है, जिसे रामविलास पासवान ने दशकों से अपने लिए सिंचित किया है। एक पिता का भी भरोसा है कि यहां की जनता उनके पुत्र को निराश नहीं करेगी। 

कैलाश का आभास
वर्तमान लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी सरकार ने विपक्षी नेताओं और उनके करीबियों पर ताबड़तोड़ इंकम टैक्स के छापे डलवाए हैं। ऐसी ही एक इंकम टैक्स की रेड मध्य प्रदेश के सी.एम. कमलनाथ के करीबियों पर पड़ रही थी तो ऐसे में भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का एक बयान सामने आता है और वह भी सुबह-सुबह कि इस छापेमारी में 281 करोड़ से ज्यादा की बेहिसाबी नकदी का पता चला है और शाम में इसी बात की पुष्टि आयकर विभाग औपचारिक रूप से करता है, यानी भाजपा को प्राप्त जानकारियों पर मात्र मोहर लगाने की कवायद इंकम टैक्स विभाग कर रहा था या प्राप्त जानकारियों पर आगे की कार्रवाइयां?जगन क्यों हैं मगन? 

इस बार के चुनावी महासंग्राम में भाजपा हाईकमान की नजरें उन क्षत्रपों पर टिकी हैं जो बहुमत की गिनती का सारा खेल बना-बिगाड़ सकते हैं। इस लिस्ट में पहला नंबर आंध्र से जगन मोहन रैड्डी का आता है, जिनकी पार्टी के बारे में माना जा रहा है कि इन चुनावों में वह बेहतर प्रदर्शन करेगी और आंध्र की कुल 25 लोकसभा सीटों में से कम से कम 18-20 सीटों पर जगन की पार्टी की सम्भावनाएं बेहतर बताई जा रही हैं। सबसे खास बात तो यह कि जगन की पार्टी के लिए चुनावी रणनीतियां बुनने का जिम्मा इस बार प्रशांत किशोर को मिला है जो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) के लिए भी चुनावी व्यूह रचना बनाने के जिम्मेदार बताए जाते हैं। 

सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर के माध्यम से नीतीश लगातार जगन के सम्पर्क में हैं। सूत्रों का यह भी दावा है कि अगर इन चुनावों में भाजपा 200 का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाती है तो पाला बदलने में सिद्धहस्त नीतीश एन.डी.ए. का दामन छोड़ कर सरकार बना सकने वाले समूह के साथ आ सकते हैं। पर ऐसे में प्रशांत किशोर के उस ट्वीट के निहितार्थ को बूझना भी बेहद जरूरी है जिसमें उन्होंने कहा कि बिहार में जद(यू) का सारा चुनावी प्रबंधन वे नहीं बल्कि आर.सी.पी. देख रहे हैं। क्या किशोर के ट्वीट का अर्थ यह माना जाए कि वे बिहार में जद (यू) के प्रदर्शन को लेकर उतने आश्वस्त नहीं हैं, तभी तो वे आर.सी.पी. को सामने रख कर पीछे से बंदूक दाग रहे हैं। 

राजनाथ को इतना भाव क्यों?
एक ओर जहां लखनऊ संसदीय क्षेत्र में राजनाथ सिंह एक आसान जीत की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं भाजपा में इस बात को लेकर भी हैरानी का आलम बरकरार है कि वे शायद भाजपा में मोदी-शाह के बाद एक ऐसे कद्दावर नेता हैं जिन पर पार्टी आलाकमान की कृपा बरस रही है। पार्टी का मीडिया डिपार्टमैंट भी मोदी-शाह के अलावा बस राजनाथ के बारे में भी जानकारियां मुहैया कराता है। मोदी-शाह के बाद अगर देश भर में सबसे ज्यादा रैलियां कोई संबोधित कर रहा है तो वे राजनाथ ही हैं। यू.पी. में भाजपा के डगमगाते स्वास्थ्य को देखते हुए मोदी-शाह द्वय राजनाथ को छेडऩा नहीं चाहता। 

भाजपा का प्लॉन ‘बी’
अगर इन चुनावों में भाजपा पोषित एन.डी.ए. बहुमत के जादुई आंकड़े से दूर रह जाता है तो ऐसे में राष्ट्रपति की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हो सकती है। जो संविधान का हवाला देकर सबसे बड़े दल यानी भाजपा (जिसके बारे में माना जा रहा है कि यह सबसे बड़े दल के तौर पर सामने आएगी) को सरकार बनाने का न्यौता दे सकते हैं और बहुमत साबित करने के लिए एक भरी-पूरी मियाद भी। ऐसे में भाजपा के कर्णधारों का भरोसा है कि वे एन.डी.ए. के नए-पुराने साथियों के अलावा कई अन्य अपने मूल स्वरूप में भाजपा विरोधी होने का दावा करने वाले दलों पर भी डोरे डाल सकते हैं। इस कड़ी में बसपा का नाम सबसे पहले लिया जा रहा है जो कुछ कारणों से इन दिनों भाजपा के प्रति किंचित नर्म हो गई है। मोदी-शाह अपनी चुनावी रैलियों में नवीन पटनायक पर भी सीधा व तीखा हमला करने से बच रहे हैं। भाजपा हाईकमान को भरोसा है कि नवीन पटनायक की बीजद और राव की टी.आर.एस. जैसी पाॢटयां भाजपा को केन्द्र में सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन दे सकती हैं। 

भीड़ मैनेजमैंट का भगवा तंत्र
2014 के चुनावी आगाज के दौर में नरेंद्र मोदी की रैलियों में बम्पर भीड़ रहती थी, उनकी थकी हुई रैलियों में भी कम से कम एक-डेढ़ लाख की भीड़ जुट जाती थी और वे एक दिन में कम से कम 2-3 रैलियां किया करते थे। लेकिन पिछले दिनों जब भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने 2019 की चुनावी रैलियों का आगाज किया तो उनकी आगरा और मुरादाबाद रैलियों में गिनती के लोग आए, तमाम ·कुर्सियां खाली रहीं। सो, अब रैलियों को लेकर भाजपा का मैनेजमैंट ज्यादा सतर्क हो गया है, खास कर मोदी की रैली में भीड़ जुटाने के पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं। 

रिप्रिंट हो रहा कांग्रेस मैनीफैस्टो
भाजपा और कांग्रेस के बीच 2019 के चुनाव में सीधा घमासान चल रहा है। दोनों दलों में एक और लड़ाई देखने को मिल रही है, वह है घोषणा पत्रों की लड़ाई। कांग्रेस का दावा है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र की खासी डिमांड है, उसका ‘न्याय’ न सिर्फ सुर्खियां बटोर रहा है अपितु मीडिया और जनता को खूब लुभा रहा है। कांग्रेस का दावा है कि उसके घोषणा पत्र की इतनी डिमांड है कि रिपिंट्र के आर्डर देने पड़े हैं। 

...और अंत में
असम और पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में मजदूरी करने वाले चाय मजदूरों के अच्छे दिन आ गए लगते हैं। इन चुनावों की आहटें शुरू होते ही पिछले एक महीने से इन्हें एक रुपए किलो चावल, मुफ्त में चीनी और इनके ठेकेदारों के खातों में 5 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर की जा रही है।-त्रिदीब रमण 


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