प्रेम को खरीदने के लिए अपनाएं ये Technique

punjabkesari.in Monday, Apr 08, 2019 - 12:27 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)

कबीर जी ने जात-पात के विरुद्ध आवाज उठाई थी और किसी भी जाति के व्यक्ति को नीचा ऊंचा नहीं समझा। अगर कोई नीचा है तो वह वही है जिसके हृदय में प्रभु की भक्ति नहीं। कबीर महाराज जी कहते हैं कि अगर प्रभु की कोई जाति नहीं तो उसके भक्तों और प्रेमियों की क्या जाति हो सकती हैं :

जात नहीं जगदीश की हरि जन कि कहां होय। जात-पात के कीच में डूबो मरो मत कोय।

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सदियों से लोग मूर्ति पूजा, स्नान, व्रत, पाठ, यज्ञ, हवन आदि बाहर मुखी क्रियाओं के कर्मकांड में डूबे हुए थे। कबीर जी ने जात-पात के भेदभाव धर्मांधता और अंधविश्वास से जगाने का काम किया। उनके शिष्यों में हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण, शूद्र, पंडित और मुल्ला सभी तरह के लोग शामिल थे। कबीर जी ने साफ-साफ कहा कि मंदिर और मस्जिद में जाने का तभी फायदा है जब दिल साफ हो कपट से भरा हुआ न हो। सभी दिशाओं में भगवान रहता है। कबीर जी के अनुसार जाति, कुल, धर्म के स्थान पर मनुष्य की सच्ची महिमा परमात्मा से मिलाप करने में है।
पोथि पढि़-पढि़ जग मुआ, पंडित हुआ न कोय। एकै अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

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पौथी पढ़-पढ़ कर सारा जग मर गया पर कोई पंडित नहीं हुआ। जो प्रेम का एक अक्षर पढ़ लेता है वह पंडित होता है।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे सांच है ताके हिरदे आप।।

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सत्य के समान संसार में कोई तप नहीं है और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है। जिसके हृदय में सत्य का निवास है उसके हृदय में ईश्वर स्वयं वास करते हैं।
प्रेमी ढूंढत मै फिरौ, प्रेमी मिलै न कई? प्रेमी को प्रेमी मिलै तब सब विष अमृत होइ।।

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कबीर साहब कहते हैं कि मैं ईश्वर-प्रेमी को ढूंढता फिर रहा हूं परंतु मुझे सच्चा ईश्वर प्रेमी कोई नहीं मिला। तब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर प्रेमी से मिल जाता है तो विषय वासनाओं रूपी सम्पूर्ण सांसारिक विष प्रेम रूपी अमृत में बदल जाता है। प्रेम न खेतों नीपजै प्रेम न हाटि बिकाइ। राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाई।।

प्रेम न खेतों में उत्पन्न होता है न ही बाजार में बिकता है कि जो चाहे इसे खरीद ले। प्रेम तो दुष्प्राप्य है। राजा अथवा प्रजा जो भी प्रेम लेना चाहता है उसे अपना सिर देकर अर्थात अहंभाव को छोड़ कर इसे लेना पड़ता है। 

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Niyati Bhandari

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