लोकसभा चुनाव 2019ः 13 संसदीय चुनावों में देश को पंजाब ने दिए बड़े दिग्गज नेता

punjabkesari.in Thursday, Mar 21, 2019 - 09:11 AM (IST)

चंडीगढ़(गुरउपदेश भुल्लर): लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब में दिलचस्प स्थितियां रही हैं और राज्य ने देश को बड़े दिग्गज नेता दिए हैं। वर्ष 1966 दौरान पुनर्गठित पंजाब में 13 संसदीय चुनावों में मुख्य तौर पर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल का ही वर्चस्व रहा है। कभी कांग्रेस तो कभी शिअद विजयी बनता रहा है। चुनावों दौरान ऐसा समय भी आया जब दो चुनावों में कांग्रेस और 1 में शिअद के हाथ एक भी सीट नहीं आई। बेशक आतंकवाद के दौर में चरमपंथी गु्रप अधिकतर सीटों पर विजयी हुए थे और कम्युनिस्ट पार्टियों व बसपा के कुछ प्रत्याशी भी जीते लेकिन तीसरे विकल्प को सफलता नहीं मिली। विधानसभा चुनाव और इससे पहले लोकसभा चुनाव में बेशक आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के तौर पर उभरी थी लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में स्थिति बदली हुई दिख रही है।

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ज्ञानी जैल सिंह
पंजाब के मुख्यमंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह वर्ष 1980 के दौरान लोकसभा चुनाव जीत कर देश के गृह मंत्री बने और 1982 में राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए।

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बूटा सिंह
पंजाब से ही संबंधित बूटा सिंह 8 बार लोकसभा चुनाव जीतने में सफल हुए।  बूटा सिंह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निकट रहे और देश के गृह मंत्री के पद पर कार्य किया।

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बलदेव सिंह
1952 और 1957 दौरान आजादी के बाद नए संविधान के तहत चुनाव जीतने वाले बलदेव सिंह केंद्र में पहले डिफैंस मंत्री बने।'

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गुरदयाल सिंह
गुरदयाल सिंह ढिल्लों 1967 में तरनतारन और 1985 में फिरोजपुर सीट से विजयी हुए थे। वह केंद्र में कृषि मंत्री के पद पर भी रहे। 

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बलराम जाखड़
बलराम जाखड़ दो-दो बार लोकसभा स्पीकर बने। जाखड़ 1980 में फिरोजपुर और 1984 में राजस्थान के सीकर से चुनाव जीत कर स्पीकर बने थे।

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स्वर्ण सिंह
वर्ष 1957, 1967 और 1972 में चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के स्वर्ण सिंह पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।

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वर्ष 2014 में ‘आप’ के नतीजों ने कर दिया था हैरान
1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 8 व शिअद-भाजपा 3 सीटों पर विजयी हुई, जबकि मान दल की ओर से सिमरनजीत सिंह मान दूसरी बार चुनाव जीते और 1 सीट भाकपा को मिली थी। 2004 में फिर कांग्रेस 2 सीटों पर आ सिमटी। जब पटियाला से परनीत कौर व जालंधर से राणा गुरजीत ही विजयी हुए थे। अकाली-भाजपा के हाथ 11 सीटें लगी थीं। 2009 में 8 सीटें कांग्रेस, 5 अकाली-भाजपा ने जीतीं। वर्ष 2014 के चुनाव में नई पार्टी के रूप में उभरी आम आदमी पार्टी ने 4 सीटें जीत कर सभी को हैरान कर दिया था। अकाली-भाजपा 6 तथा कांग्रेस & सीटों पर विजयी हुई थी। इस चुनाव में पटियाला लोकसभा हलके से ‘आप’ के उम्मीदवार डा. धर्मवीर गांधी से परनीत कौर को भी हार का सामना करना पड़ा था।

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मुख्यतौर पर मैदान में दो पार्टियां ही दिखती हैं
1966 के बाद संसदीय चुनावों के इतिहास पर नजर डालें तो दो पार्टियां ही मुख्यतौर पर मैदान में दिखती हैं। पुनर्गठन के बाद चौथी लोकसभा के लिए 1967 दौरान पहले चुनाव में 9 सीटें कांग्रेस, 3 सीटें शिअद और 1 भारतीय जन संघ ने जीती थी। 1971 में 10 सीटें कांग्रेस, 2 भाकपा और 1 शिअद के हाथ आई। एमरजैंसी के प्रभाव के चलते वर्ष 1977 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गई थीं, उस समय शिअद-भाजपा ने 12 और माकपा ने 1 सीट जीती थी। पटियाला से कै. अमरेंद्र सिंह को हराकर जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा जीते थे। इसी चुनाव में शिअद के प्रकाश सिंह बादल, जगदेव सिंह तलवंडी, सुरजीत सिंह बरनाला और मोहन सिंह तुड़ जैसे दिग्गज नेता विजयी हुए थे। 1996 में कांग्रेस 2, शिअद-भाजपा गठबंधन 8 व बसपा 3 पर विजयी हुई और 1998 में फिर हुए चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया था। शिअद-भाजपा गठबंधन 11 सीटों पर जीता। इस समय इंद्र कुमार गुजराल और आजाद उम्मीदार सतनाम कैंथ भी विजेता रहे थे। इन्हीं चुनावों में पटियाला से प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कै. अमरेंद्र सिंह को हराया था।

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ब्लू स्टार के विरोध में इस्तीफा देने वाले अमरेंद्र भी पहली बार चुनाव जीते
वर्ष 1980 चुनाव में रिजल्ट बिल्कुल विपरीत रहा जब कांग्रेस को 12 सीटों पर विजयी मिली जबकि शिअद के लहना सिंह तुड़ ही जीत सके। ऑप्रेशन ब्लू स्टार के बाद 1985 के चुनाव में 7 सीट शिअद और 6 सीटें कांग्रेस ने जीती। उल्लेखनीय है कि 1984 दौरान आप्रेशन ब्लू स्टार के विरोध में कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले कै. अमरेंद्र भी पहली बार चुनाव जीते। इसके बाद 1989 चुनाव में आतंकवाद के चलते 9 सीटें चरमपंथी समर्थक चुनाव जीते थे, जिनमें शिअद (मान) के 6 उम्मीदवार शामिल थे। खुद सिमरनजीत सिंह मान भी तरनतारन लोकसभा हलके से उस समय रिकार्ड मतों से विजयी हुए थे। उस समय जनता दल की ओर से स्व. इंद्र कुमार गुजराल, बसपा के हरभजन लाखा जीते थे जबकि कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। इसी तरह 1992 में चरमपंथी संगठनों के बहिष्कार के चलते शिअद भी चुनाव से बाहर रहा और 12 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही व 1 सीट बसपा के हिस्से आई थी।

कांग्रेस के गुरदयाल सिंह और बलराम जाखड़ दो-दो बार लोकसभा स्पीकर बने
पंजाब से विजयी उम्मीदवारों में कई देश के बड़े नेताओं के रूप में उभरे। कांग्रेस के गुरदयाल सिंह ढिल्लों और बलराम जाखड़ दो-दो बार लोकसभा स्पीकर बने। ढिल्लों वर्ष 1967 में तरनतारन और 1985 में फिरोजपुर सीट से विजयी हुए थे। वह केंद्र में कृषि मंत्री के पद पर भी रहे। जाखड़ 1980 में फिरोजपुर और 1984 में राजस्थान के सीकर से चुनाव जीत कर स्पीकर बने थे। वर्ष 1957, 1967 और 1972 में चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के स्वर्ण सिंह पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। उनके पास विदेश, रेल, डिफैंस और कृषि जैसे विभाग रहे। कैबिनेट में लगातार मंत्री के तौर पर 23 वर्ष का कार्यकाल एक रिकार्ड है, जबकि बाबू जगजीवन राम सबसे अधिक 30 वर्ष तक केंद्रीय कैबिनेट में रहे हैं लेकिन वह भी लगातार मंत्री नहीं रहे। 1952 और 1957 दौरान आजादी के बाद नए संविधान के तहत चुनाव जीतने वाले बलदेव सिंह केंद्र में पहले डिफैंस मंत्री बने। वर्ष 19&0 दौरान अकाल तख्त प्रमुख के पद पर रहे ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर 1952, 1957 और 1962 में लोकसभा चुनाव जीते थे। जो बाद में लोकसभा से इस्तीफा देकर 1966 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। पंजाब से ही संबंधित बूटा सिंह 8 बार लोकसभा चुनाव जीतने में सफल हुए। पहला चुनाव शिअद उम्मीदवार के तौर पर मोगा से जीता था। इसके बाद 3 चुनाव रोपड़ लोकसभा हलके से विजयी हुए। इसके अलावा 4 चुनाव राजस्थान के जालौर लोकसभा हलके से जीते। बूटा सिंह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निकट रहे और देश के गृह मंत्री के पद पर कार्य किया। अमृतसर लोकसभा हलके से कांग्रेस के रघुनंदन लाल भाटिया 6 बार चुनाव जीते और केंद्रीय रा’य मंत्री रहे। पंजाब के मुख्यमंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह 1980 में लोकसभा चुनाव जीत कर देश के गृह मंत्री बने और 1982 में राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल, सुरजीत सिंह बरनाला भी केंद्र में मंत्री पदों पर रह चुके हैं।
 


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