5 दशक में ‘धरतीपुत्र’ नसीब नहीं हुआ करनाल को

punjabkesari.in Tuesday, Mar 19, 2019 - 10:25 AM (IST)

पानीपत(खर्ब): यह एक बड़ी विडम्बना है कि करनाल-पानीपत के लोगों को आज तक लोकसभा चुनाव में महत्व नहीं दिया गया। 5 दशक हो गए लेकिन इस दौरान किसी पार्टी ने यहां के धरतीपुत्र मतलब स्थानीय नेता को महत्व नहीं दिया। यह संयोग कहें या नेताओं के साथ नाइंसाफी लेकिन 2 सांसदों को छोड़कर आजादी से लेकर आज तक सभी सांसद बाहरी ही बनते जा रहे हैं। 1977 से पहले 1967 व 1971 में पंडित माधोराम पानीपत वासी करनाल से 2 बार सांसद बने थे। पंडित माधोराम के अलावा सन् 1962 में घरौंडा के रामेश्वरानंद ही थे जिन्हें टिकट मिला और सांसद बने। 

देश की आजादी से लेकर आज तक माधोराम व रामेश्वरानंद के अलावा कोई करनाल का धरती पुत्र नेता किसी जीतने वाली पार्टी की टिकट नहीं ले पाया। पहले सांसद - देश की आजादी के बाद पहले चुनाव की बात करें तो करनाल के पहले सांसद वीरेंद्र कुमार सत्यवादी अम्बाला से संबंध रखते थे। दूसरे सांसद- 1957 में करनाल से सांसद बनी सुभद्रा जोशी भी दिल्ली से संबंध रखती थीं। हालांकि उनका जन्म सियालकोट अब पाकिस्तान में हुआ था। जोशी ने अधिकतर राजनीति दिल्ली व उत्तर प्रदेश में की। इसी प्रकार 1977 में सांसद बने भगवत दयाल शर्मा भी बेरी-झज्जर से संबंध रखते थे। शर्मा हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे तथा बाद में राज्यपाल बने। 

1980 से 1991 तक 4 बार सांसद बने चिरंजीलाल शर्मा आहुलाना सोनीपत के मूल निवासी थे। चिरंजी लाल शर्मा ने करनाल को कर्मभूमि बनाकर रखा जिस कारण 4 बार सांसद बने लेकिन फिर भी स्थानीय की बजाय बाहरी नेता में गिनती होती है। 1996 व 1999 में सांसद बनने वाले आई.डी. स्वामी भी जिला अम्बाला से संबंध रखते हैं। सांसद बनने के बाद स्वामी मंत्री भी बने थे। 1998 में करनाल से सांसद बने चौधरी भजन लाल आदमपुर हिसार वासी थे। भजन लाल का जन्म कोतवाली, गांव बहावलपुर पाकिस्तान में हुआ था। 2004-2009 में करनाल से सांसद बनने वाले डा. अरविंद शर्मा भी झज्जर से ही संबंध रखते हैं। वहीं 2014 में सांसद ने भाजपा नेता भी दिल्ली वासी है।


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Deepak Paul

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