क्या यह चीन के आर्थिक पतन की शुरूआत है

punjabkesari.in Tuesday, Feb 08, 2022 - 07:14 AM (IST)

इन दिनों चीन में जो कुछ देखने को मिल रहा है, वह सब इस तरफ इशारा करता है कि अब चीन में आर्थिक विकास की रफ्तार में पहले जैसी बात नहीं रही। रियल एस्टेट का दिवालियापन, बिजली आपूॢत के लिए कोयले की भारी कमी, चीन का गिरता निर्यात, उइगर और तिब्बत समस्या, हांगकांग में चल रहे लोकतांत्रिक प्रदर्शनों को बेरहमी से कुचलना, इसके साथ ही अपने ढेर सारे पड़ोसियों के साथ चल रहे जमीनी विवाद, ये सब चीन के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। लेकिन 3 दशक पहले चीन ने जो उत्थान और प्रगति की र तार देखी थी, उसकी शुरूआत दरअसल 4 दशक पहले चीन के नंबर दो शक्तिशाली व्यक्ति तंग श्याओ फिंग ने आर्थिक उदारीकरण से की थी। 

चीन की क युनिस्ट सरकार ने वर्ष 1978 में जो आर्थिक पुनर्निर्माण की शुरूआत की थी, उसका असल नतीजा चीन को वर्ष 1989-90 में मिलना शुरू हुआ और उसके बाद चीन ने जो आॢथक तरक्की की, उसकी मिसाल आधुनिक विश्व में कहीं नहीं मिलती। औद्योगिकीकरण की जो तरक्की पश्चिमी विश्व को हासिल करने में दशकों लग गए, उसे चीन ने महज 30 वर्षों में हासिल कर सबको चौंका दिया। 

इसके बाद चीन दुनिया की फैक्टरी बन बैठा और विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति भी। लेकिन हाल के वर्षों में चीन में बदलाव की जो बयार बहती दिखाई दे रही है, वह चीन के लिए अच्छी नहीं। वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में चीन की सकल घरेलू उत्पाद की र तार 4.9 फीसदी पर उतर आई, जो पिछले वर्ष की इसी कालावधि में 7.9 फीसदी थी। हालांकि ये आंकड़े आर्थिक तरक्की की अनुमानित दर 5.2 फीसदी से कुछ कम हैं। इस थमती र तार के पीछे पहली नजर में जो 2 बड़े कारण नजर आते हैं, वे हैं कोयले की कमी जिसकी वजह से चीन के कई इलाकों में बिजली गुल है, और दूसरा बड़ा कारण है दिवालिया होता रियल एस्टेट सैक्टर। 

कोयले की कमी के कारण बिजली संकट ने सीधा असर डाला है विनिर्माण पर, जिसके रुकने से चीन के निर्यात में भारी कमी आई है। बिजली की भारी कमी के कारण चीन की केन्द्रीय सरकार को 20 प्रांतों और क्षेत्रों में बिजली के इस्तेमाल पर राशनिंग करनी पड़ी। इससे चीन के सकल घरेलू उत्पाद पर 66 फीसदी का असर पड़ा, सैंकड़ों फैक्ट्रियों में काम बंद करना पड़ा, वहीं कई घरों में घंटों बिजली गायब रही। उत्तरी चीन के जिन ठंडे प्रदेशों में बिजली गायब रही, वहां लोगों का जीवन बहुत कठिन हो गया। हालांकि इस समस्या से जूझते हुए कुछ महीने बीत जाने के बाद भी इसका कोई ठोस उपाय नहीं मिला। 

रियल एस्टेट सैक्टर के दिवालिया होने के कारण चीन को बड़ा झटका लगा है। इस सैक्टर की सबसे कमजोर कड़ी एवरग्रांडे है, जिसके दिवालिया होने से चीन के सकल घरेलू उत्पाद पर बहुत बुरा असर हुआ, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा रियल एस्टेट से जुड़ा है। चीन के भुतहा शहरों के बारे में अक्सर जानकारी मीडिया से मिलती है जहां पर खाली अपार्टमैंट, खाली शॉपिंग मॉल और खाली शहर दिखाए जाते हैं। 

दुनिया भर में सबसे अधिक खाली मकान और दुकान चीन में हैं। चीन की निर्भरता रियल एस्टेट पर कुछ ज्यादा ही है। ऐसा हाल स्पेन का भी था, लेकिन वहां रियल एस्टेट का बुलबुला वर्ष 2008 में फूट गया।  देश में रियल एस्टेट को आगे बढ़ाने के लिए चीन सरकार ने निजी बिल्डरों और वित्तीय संस्थानों को सस्ते लोन मुहैया करवाए, जो चीन की अर्थव्यवस्था के लिये घातक साबित हुआ। चीन में रियल एस्टेट के बुलबुले के फूटने के कारण दुनिया के दूसरे देश भी सहमे हुए हैं कि कहीं चीन का असर उन देशों के रियल एस्टेट पर न पड़े। 

किसी भी देश की मजबूत अर्थव्यवस्था का सीधा संबंध वहां की मजबूत आधारभूत व्यवस्था से होता है, लेकिन चीन ने इस क्षेत्र में जरूरत से ज्यादा और बिना किसी योजना के खर्च किया, जो अब उसके लिए सिरदर्द बन चुका है। अगर हम चीन की बुलेट ट्रेन की बात करें तो जब वर्ष 2000 की शुरूआत में चीन ने बुलेट ट्रेन पर खर्च करना शुरू किया था तो उस समय चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ रही थी, जिसके कारण चीन के गांव-देहात का आदमी रोजगार और बेहतर जीवन के लिए शहरों का रुख कर रहा था। इसके लिए रेलवे का बड़ा नैटवर्क तैयार करना चीन के लिए बहुत जरूरी था क्योंकि उस समय हवाई यात्रा और खुद के वाहन से शहरों से अपने पैतृक स्थान की यात्रा करना बहुत महंगा सौदा था।

इसलिए चीन सरकार ने उस समय बुलेट ट्रेन पर खर्च करना शुरु किया था। वर्ष 2008-09 की आर्थिक मंदी के दौरान सरकार ने बुलेट ट्रेन बनाने में अधिक धन खर्च किया, ताकि आर्थिक मंदी से बाहर निकला जाए। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिला, जिसने चीन की अर्थव्यवस्था को संबल दिया और बुलेट ट्रेन से लगातार होने वाली आय ने चीन की अर्थव्यवस्था को कुछ समय तक संभाला भी, लेकिन सच्चाई यह है कि पेइङ्क्षचग-शंघाई-क्वानचौ वाली लाइन ही मुनाफे में चलती है, बुलेट ट्रेन की बाकी लाइनें चीन की अर्थव्यवस्था पर बोझ हैं। उनके रख-रखाव पर भारी खर्च आता है। लेकिन चीन सरकार दुनिया को अपनी तकनीक और तरक्की दिखाना चाहती थी, इसलिए बुलेट ट्रेन निर्माण का काम चलने दिया गया जो बहुत ज्यादा खर्चीला है। 

चीन के विनिर्माण के लिए साधारण रेलवे लाइन मुनाफे का सौदा था, जबकि बुलेट ट्रेन की महंगी निर्माण लागत से घाटा होने लगा जिसका असर महंगे रेलवे टिकट के रूप में नजऱ आता है। महंगे टिकट का बोझ गरीब तबके पर भी पड़ता है जो जल्दी अपने घर पहुंचने के लिए बुलेट ट्रेन का टिकट खरीदता है। चीन की आर्थिक रफ्तार को बढ़ाने में वहां की बड़ी आबादी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन समय के साथ ये मेहनतकश आबादी बूढ़ी होने लगी और चीन की एक बच्चे की नीति ने जनसं या पर रोक लगाई लेकिन इसने आनुपातिक असंतुलन पैदा किया। 

इसकी वजह से आज एक युवा चीनी के ऊपर 4 वृद्धों का बोझ है-नाना-नानी और दादा-दादी और जल्दी ही इसमें 2 लोगों की बढ़ोतरी और होगी जो इस युवा के माता-पिता होंगे। यानी अब काम करने वालों से ज्यादा बूढ़ी आबादी चीन में है, जिस पर उसका खर्च ज्यादा होगा, जो चीन की ढलती अर्थव्यवस्था में दीमक का काम करेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन अपनी इन विशाल समस्याओं से बाहर कैसे निकलता है। 


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Content Writer

Pardeep

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