जब बापू ने दिल्ली को कहा था मृत शहर

punjabkesari.in Sunday, Sep 29, 2019 - 12:54 PM (IST)

नई दिल्ली(अनिल सागर): दिल्ली में अपने 720 दिन के प्रवास में महात्मा गांधी ने पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली के सफर को भी तय किया। दिल्ली दरबार के साक्षी रहे किंग्जवे कैंप में उनके प्रवास का उल्लेख भी आवश्यक है जहां उन्होंने 24 सितम्बर, 1932 को हरिजन सेवक संघ आश्रम की स्थापना की और दो एकड़ के आश्रम में एक कमरे से ही मेल मुलाकात बढ़ाते हुए लुटियन जोन से सटी वाल्मीकि बस्ती और फिर लुटियन जोन में बिड़ला हाउस और विट्ठल भाई पटेल के आवास प्रवास करने लगे।  

 

‘मेरे एक मित्र ने लिखा गरीब बिड़ला हाउस में प्रार्थना में नहीं आ सके। पहले की तरह वाल्मीकि बस्ती में रहने क्यों नहीं गए। मैंने कहा, जब मैं दिल्ली आया था तब वह मृत शहर की तरह थी। अभी दंगे भड़के थे और बस्ती शरणार्थियों से भरी हुई थी। सरदार पटेल ने मुझे बिड़ला हाउस में रहने का निर्णय लिया। मैं नहीं समझता कि वहां रहना अब मेरे लिए उचित था। दिल्ली में मेरे रहने का उद्देश्य मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा, सहायता उपलब्ध करवाना है। बिड़ला हाउस में यह बेहतर ढंग से हो पा रहा है। मुस्लिम मित्र और केबिनेट के साथी भी यहां सुविधाजनक तरीके से आ सकते हैं। बिड़ला हाउस पहुंचने में बस्ती की अपेक्षा कम समय लगता है।’ 
-मो.क. गांधी, 9 दिसम्बर, 1947 

 

महात्मा गांधी देश की आजादी के लिए संघर्ष के अंतिम चरण में थे और आंदोलन पूरे चरम पर था। उन्हें अक्सर वायसराय से मुलाकात करनी होती, कांग्रेस के बड़े नेताओं से भी घंटों मंत्रणा होती। इसलिए 1934 से 1935 तक बापू हरिजन सेवक संघ आश्रम में ही रहे। वाल्मीकि बस्ती 1945-46 में अपने लंबे प्रवास के दौरान महात्मा गांधी से बस्ती मिलने पहुंचते। बस्ती जिसे भंगी कॉलोनी कहते थे तब यहां 1945 में शरद चंद्र बोस, 1946 में सर स्टॉफ फोर्ड भी उनसे मिलने बस्ती पहुंचे। बस्ती में आईएनए के पूर्व अफसरों के साथ बातचीत हो या अंग्रेजी हुक्मरानों के साथ चर्चा उन्होंने यहां कई कार्यकलापों को अंजाम दिया यहां सामूहिक चरखा कताई का कार्यक्रम और प्रार्थना सभा भी आयोजित की जाती। 

 

दिल्ली में दंगों और सरकारी दफ्तरों में आवाजाही बढऩे के, मंत्रिमंडल के सहयोगियों से मेल मुलाकात बढऩे के बाद सरदार पटेल की सलाह पर बापू घनश्याम दास बिड़ला के घर बिड़ला हाउस (तब अलबुकर रोड पर) आ गए। बापू रोजाना सुबह-शाम सैर के लिए जाते और उनके साथ कई बार उनके पुत्र रामदास गांधी होते तो कभी सरदार वल्लभ भाई पटेल होते। स्वामी परमानंद तीरथ और सीतारामय्या सहित कई लोग उनके नजदीक होते। आजाद हिंदुस्तान कैसा बने उसकी क्या रूपरेखा हो इसके लिए गवर्नमेंट हाउस, वायसराय हाउस सहित कई इमारतों से बापू की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। बिड़ला हाउस में देसी-विदेशी मेहमानों के साथ-साथ बापू अक्सर पत्रकारों से भी घिरेे रहते। 

 

1946-47 की कांग्रेस की कार्यसमिति हो या फिर देश के अन्य मुद्दे पत्रकारों के बीच बातचीत के कई अवसर स्पष्ट दिखाई देते हैं। यहां तक कि एक बार स्नान करते हुए बापू ने एक पत्रकार से वार्तालाप करते हुए अपने विचार रखे। विट्ठल भाई पटेल की कोठी में भी महात्मा गांधी ठहरे और दिल्ली में उनके अंतिम पांच महीने उनके जीवन सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। हालांकि बापू का आखिरी पल बिड़ला हाउस में ही बीता और जब उनके एक मित्र ने उनसे बिड़ला हाउस जाने पर उनकी राय मांगी तो उन्होने स्वीकारा कि सुविधाजनक होने के कारण बिड़ला हाउस में मैं प्रवास करूंगा। 


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vasudha

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