असम 2019: कैब, NRC को लेकर प्रदर्शनों की चिंगारी के लिए याद किया जाएगा ये साल

punjabkesari.in Saturday, Dec 28, 2019 - 11:31 AM (IST)

गुवाहाटीः असम को इस साल संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी की प्रक्रिया को लेकर हिंसक प्रदर्शनों और विरोध के लिए याद किया जाएगा, जिसकी तपिश पूरे देश में महसूस की गई। राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) तैयार करने के दौरान इसलिए भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उसका गठबंधन सहयोगी दल नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (एनईडीए) उससे नाराज हो गया, जबकि विपक्ष पूरी कवायद को ‘‘विनाशकारी'' बताया। गौरतलब है कि 31 अगस्त तक प्रकाशित हुई अंतिम एनआरसी सूची से 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर रखा गया, जिनमें हिंदुओं की भी अच्छी-खासी संख्या है। उच्चतम न्यायालय की निगरानी वाली इस प्रक्रिया में हजारों आवेदक अपनी पहचान साबित करने के लिए दस्तावेजों के साथ सेवा केंद्रों के बाहर लंबी-लंबी कतारों में खड़े रहे। 

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कई परिवारों ने दावा किया कि उनके कुछ सदस्यों को पंजी में शामिल कर दिया गया, जबकि कुछ को नहीं। इनमें से कई को ‘विदेशी' और ‘‘संदेहपूर्ण मतदाता'' घोषित किया गया और उन्हें निरोध केंद्र भेजा गया, जिसकी व्यापक निंदा की गई। एनआरसी की प्रक्रिया में ‘‘भारी अनियमितताओं और विसंगतियों'' के आरोपों के बीच एनआरसी संयोजक प्रतीक हजेला का राज्य से बाहर तबादला कर दिया गया। नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के संयोजक और राज्य के प्रभावशाली मंत्री हिमंत बिस्व सरमा एनआरसी की अंतिम सूची के खिलाफ आवाज उठाने वालों में से एक रहे। उन्होंने कहा कि यह अंतिम सूची स्वीकार्य नहीं है और उसे रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह ‘‘लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाम रही।'' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाद में घोषणा की कि एनआरसी सभी राज्यों में लागू की जाएगी और असम में गलतियों को सुधारने के लिए यह प्रक्रिया फिर शुरू की जाएगी। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि उनकी सरकार ने देशभर में एनआरसी लागू करने के बारे में कभी चर्चा नहीं की और इस बयान का समर्थन शाह ने भी किया। 

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साल की शुरुआत में नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ असम में प्रदर्शन हुए थे जिसके चलते भाजपा की सहयोगी एजीपी ने विधेयक को पेश न किए जाने पर जोर देते हुए कुछ समय के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन से नाता तोड़ लिया। इस आक्रोश को नजरअंदाज करते हुए भाजपा ने लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस ने तीन सीटें जीती जबकि एआईयूडीएफ और निर्दलीय उम्मीदवार ने एक-एक सीट जीती। भाजपा की आम चुनावों में प्रचंड जीत के बाद इस विधेयक को संसद में पेश किया गया और पारित करा लिया गया जिसके बाद राज्य में ताजा प्रदर्शन शुरू हुई। इसके चलते कई शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), वाम दलों और स्वायत्त संगठनों के नेतृत्व वाला यह प्रदर्शन संसद द्वारा विधेयक पारित किए जाने के बाद तेज हो गया। भाजपा से अलग होने के दो महीने बाद फिर से उसके साथ आने वाली एजीपी ने संशोधित कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झड़पों और आगजनी के लिए विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि, कांग्रेस ने आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि प्रदर्शन स्वाभाविक थे और सभी वर्ग के लोग सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल हुए। 


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इस प्रदर्शन का सबसे बड़ा असर भारत-जापान शिखर वार्ता पर पड़ा, जिसे अनिश्चिकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। वर्षों से बांग्लादेश से अवैध शरणार्थियों को सहन करने वाली राज्य की मूल आबादी लंबे समय से जोर दे रही थी कि अवैध शरणार्थियों को बाहर किया जाए चाहे उनका धर्म जो भी हो। ब्रह्मपुत्र घाटी में लोगों ने आरोप लगाया कि केंद्र ने इस क्षेत्र को विवादित कानून के दायरे से छूट नहीं देकर उन्हें अलग-थलग कर दिया है। हालांकि, बराक घाटी के हिंदू बंगालियों ने संशोधित कानून का स्वागत करते हुए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग की जो धार्मिक उत्पीड़न के चलते वहां से भाग आए। इस कानून को लेकर लोगों के मन से भय मिटाने की कोशिश करते हुए सोनोवाल ने नलबाड़ी में शांति रैली की और उनके मंत्रिमंडल ने असमी को राज्य की भाषा घोषित करने समेत कई कदमों से गुस्साएं नागरिकों को खुश करने की कोशिश की। ब्रह्मपुत्र और बराक जैसी दो बड़ी नदियों की सौगात वाला यह पूर्वोत्तर राज्य मानसून के दौरान बाढ़ से भी जूझता रहा, जिसमें 90 से अधिक लोगों की जान चली गई और 50 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। 
 


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Edited By

Anil dev

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