स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जीवंत न्यायपालिका जरूरी, नालसा लोगों तक पहुंचेः CJI

punjabkesari.in Saturday, Oct 02, 2021 - 08:22 PM (IST)

नई दिल्लीः देश के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों की शीघ्र मंजूरी के लिए शनिवार को जोर देते हुए कहा कि वह न्याय तक समान पहुंच की सुविधा और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार का ‘सहयोग एवं समर्थन' चाहते हैं। प्रधान न्यायाधीश के रूप में 24 अप्रैल को कार्यभार संभालने के बाद उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सक्रिय रूप से नामों की सिफारिश कर रहे न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि कॉलेजियम ने मई से अब तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए 106 नामों की सिफारिश की है और उन्हें मंजूरी मिलने से ‘‘कुछ हद तक'' लंबित मामलों से निपटा जा सकेगा।

यहां एक कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी ने न्यायपालिका में ‘‘कुछ गहरी समस्याओं को उजागर किया है।'' उन्होंने विशेष रूप से कमजोर वर्गों के लिए न्याय तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘मेरे सहयोगी न्यायाधीशों और मैंने वादियों को शीघ्र न्याय दिलाने में सक्षम बनाने का प्रयास किया है। मैं यह बताना चाहता हूं कि मई के बाद से मेरी टीम ने अब तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में 106 न्यायाधीशों और नौ नए मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश की है।''

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘सरकार ने अब तक 106 न्यायाधीशों में से सात और मुख्य न्यायाधीशों के लिए नौ में से एक नाम को मंजूरी दी है। मुझे उम्मीद है कि सरकार बाकी नामों को जल्द ही मंजूरी देगी। इन नियुक्तियों से कुछ हद तक लंबित मामलों से निपटा जा सकेगा। मैं न्याय तक पहुंच और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार का सहयोग और समर्थन चाहता हूं।'' प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के प्रधान संरक्षक भी हैं। वह विज्ञान भवन में, नालसा द्वारा छह सप्ताह तक चलाए जाने वाले ‘अखिल भारतीय विधिक जागरूकता और संपर्क अभियान' की शुरुआत के अवसर पर बोल रहे थे।

महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अखिल भारतीय अभियान का उद्घाटन किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जीवंत न्यायपालिका आवश्यक है। कोविड-19 ने न्यायपालिका सहित कई संस्थानों के लिए कई समस्याएं पैदा की हैं। अलग-अलग मंचों पर हजारों मामले जमा हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘बड़ी रिक्तियों के अलावा, अदालतों का काम न करना और ग्रामीण क्षेत्रों में वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं की कमी...महामारी ने कुछ गहरी समस्याओं को उजागर किया है।''

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि कमजोर वर्ग अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे तो समान न्याय की संवैधानिक गारंटी अर्थहीन हो जाएगी। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि विशेष रूप से गरीबों को ‘‘न्याय तक समावेशी पहुंच'' प्रदान किए बिना स्थायी और समावेशी विकास हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान के निर्माता सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता से अच्छी तरह वाकिफ थे और इसलिए उन्होंने एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना की, जहां किसी को भी जीवन की बुनियादी जरूरतों से वंचित न रखा जाए।''

इस अवसर पर वरिष्ठ न्यायाधीश और नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति यू यू ललित ने वरिष्ठ वकीलों से प्रति वर्ष कम से कम तीन मामलों में कानूनी सहायता की पेशकश करने का आग्रह किया क्योंकि इससे कानूनी सहायता लेने के इच्छुक लोगों में विश्वास पैदा होगा। मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप की अवधारणा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उसी तर्ज पर कानून के छात्रों को देश के दूरदराज के हिस्सों में गरीबों को कानूनी सेवाएं देने के लिए कहा जा सकता है।

न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘‘मैं बार काउंसिल ऑफ इंडिया के लोगों के संपर्क में हूं और उन्होंने हमें आश्वासन दिया है...मुझे लगता है कि सभी विधि कॉलेज इसका समर्थन करेंगे।'' उन्होंने कहा कि कानूनी जागरूकता कार्यक्रम में मदद करने के अलावा, विधि कॉलेज और छात्र, नालसा के ‘‘लक्ष्य तक पहुंचने और हमारे अभियानों को साकार करने'' में मदद करेंगे।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Yaspal

Recommended News

Related News