तिब्बत की संस्कृति और धर्म को कुचल रहा चीन, बौद्ध प्रतिमाएं की नष्ट
punjabkesari.in Sunday, Mar 20, 2022 - 06:08 PM (IST)
बीजिंगः चीन की शी जिनपिंग सरकार तिब्बत की संस्कृति और धर्म को कुचलने के लिए हर प्रयास कर रही है। तिब्बत प्रेस रिपोर्ट के अनुसार चीन तिब्बती आस्था और परंपराओं को खत्म करने के लिए बौद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर रहा है। पिछले दिसंबर से तिब्बत में तीन बौद्ध मूर्तियों को नष्ट किया जा चुका है। चीन की ओर से बौद्ध धर्म के प्रति आक्रामक रुख अपनाए जाने के पीछे एक वजह दलाई लामा का उत्तराधिकार माना जा रहा है।
दरअसल 86 वर्षीय दलाई लामा ने कहा है कि उनके निधन के बाद उनका अवतार भारत में मिलेगा। चीन की ओर से इस बारे में चेतावनी दी गई है कि उसकी की ओर से नामित उत्तराधिकारी के अलावा किसी अन्य नाम को स्वीकार नहीं किया जाएगा। चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) भारत के बजाय तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रवर्तक के रूप में चीनी वर्जन को ही आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक चीनी बौद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने का मकसद तिब्बतियों के विश्वास और तिब्बती परंपराओं को संरक्षित करने के उनके अधिकार को खत्म करना है। चीन की ओर से उक्त कार्रवाइयां सांस्कृतिक नरसंहार का संकेत देती हैं। चीन की इन कार्रवाइयों के पीछे तिब्बत का भारत से पुरातन जुड़ाव भी है। इतिहासकार मानते हैं कि तिब्बत में बौद्ध धर्म को सातवीं शताब्दी के अंत में तिब्बती सम्राट सोंगस्टेन गम्पो द्वारा भारत से लाया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक आठवीं शताब्दी में राजा ठिसोंग देचेन ने भी तिब्बत में बौद्ध मठ परंपरा को स्थापित करने के लिए दो भारतीय विद्वानों को आमंत्रित किया था। पदमसंभव और शांतरक्षित नाम के दो विद्वान नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख भिक्षु थे जिन्हें निंगमापा की स्थापना के लिए तिब्बत आमंत्रित किया गया था। निंगमापा तिब्बती बौद्ध धर्म का सबसे पुराना प्रमुख स्कूल था।