मेकेदातु परियोजना पर तमिलनाडु सरकार का प्रधानमंत्री को पत्र, कर्नाटक सीएम ने बताया 'राजनीतिक स्टंट"

punjabkesari.in Tuesday, Jun 14, 2022 - 07:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र को मंगलवार को ''राजनीतिक स्टंट'' करार दिया। पत्र में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) को 17 जून को उसकी बैठक में मेकेदातु परियोजना पर चर्चा करने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की मांग की गयी है। बोम्मई ने इसे ''अवैध'' और ''संघीय व्यवस्था के खिलाफ'' बताते हुए कहा कि पड़ोसी राज्य की मांग का कोई ''आधार'' नहीं है और केंद्र इस पर विचार नहीं करेगा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने सोमवार को प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में सीडब्ल्यूएमए को उसकी बैठक में कर्नाटक के मेकेदातु परियोजना प्रस्ताव पर चर्चा करने से रोकने की मांग की।

स्टालिन ने पत्र में कहा कि सीडब्ल्यूएमए के कामकाज का दायरा कावेरी मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने तक सीमित है और वह किसी अन्य मामले पर विचार नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही यह मामला अभी विचाराधीन है और इस संबंध में तमिलनाडु की याचिकाएं उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं। बोम्मई ने कहा, ‘‘मेकेदातु परियोजना के संबंध में केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने हमारी डीपीआर प्राप्त करते हुए एक शर्त रखी थी कि इसे कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित किया जाए और तदनुसार यह सीडब्ल्यूएमए बोर्ड के समक्ष है और कईं बैठकें हो चुकी हैं।'' उन्होंने पत्रकारों से कहा कि जब मामला ‘अंतिम रूप' देने के लिए प्राधिकरण के समक्ष आने वाला है तो पड़ोसी राज्य तमिलनाडु नये मुद्दे खड़े कर रहा है।

उन्होंने कहा, ''मुझे तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखे जाने की जानकारी मिली है, मेरे पास इसकी एक प्रति है। उनकी (तमिलनाडु की) मांग अवैध है, संघीय व्यवस्था के खिलाफ है और यह उस पानी के दुरुपयोग की साजिश है जिस पर हमारा अधिकार है।'' स्टालिन ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री से जल शक्ति मंत्रालय को निर्देश देने का अनुरोध किया है कि सीडब्ल्यूएमए के अध्यक्ष को मेकेदातु परियोजना पर उस समय तक कोई भी चर्चा करने से रोकने की सलाह दें, जब तक कि उच्चतम न्यायालय द्वारा मुद्दों की सुनवाई पूरी करके कोई निर्णय नहीं ले लिया जाता। पिछले सप्ताह, तमिलनाडु सरकार ने इस अनुरोध के साथ उच्चतम न्यायालय का रुख किया था कि सीडब्ल्यूएमए को यह निर्देश दिया जाए कि वह अपनी बैठक में परियोजना पर कोई भी चर्चा नहीं करे। बोम्मई ने कहा कि मेकेदातु परियोजना में किसी भी तरह से तमिलनाडु के हिस्से का पानी शामिल नहीं है और "यह हमारे राज्य के भीतर है और हमारे पानी के हिस्से पर है।"

उन्होंने कहा कि बहुत सारी प्रक्रियाओं के बाद, चीजें अब अंतिम चरण में पहुंच गई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘पहले ही 15 बैठकें हो चुकी हैं, उन्होंने (तमिलनाडु) तब कोई आपत्ति नहीं की, उन्होंने बहिष्कार करके असहयोग दिखाया। यह और कुछ नहीं बल्कि एक राजनीतिक स्टंट है। कावेरी मुद्दे पर तमिलनाडु की ओर से हमेशा एक राजनीतिक स्टंट होता आया है।'' कर्नाटक में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं ने राज्य सरकार से परियोजना के प्रति अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करने का आग्रह किया। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया ने कहा, ‘‘वे (तमिलनाडु) जो लिखते हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है, उनके लिए आपत्ति करने का कोई कारण नहीं था, न तो कानूनी रूप से और न ही किसी अन्य आधार पर .... अब उन्हें (कर्नाटक में भाजपा सरकार) को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी और केंद्र से परियोजना के लिए आवश्यक मंजूरी प्राप्त करनी होगी।''

पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि तमिलनाडु स्वाभाविक रूप से "राजनीतिक कारणों" से ऐसे पत्र लिखेगा। उन्होंने कहा, ‘‘कई बार मामले को अतीत में स्थगित कर दिया गया है और निर्णय नहीं लिया गया है। ऐसा लगता है कि केंद्र से कुछ दबाव है क्योंकि जिन अधिकारियों को निर्णय लेना है, वे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त हैं।'' मेकेदातु कर्नाटक द्वारा प्रस्तावित एक बहुउद्देश्यीय (पीने का पानी और बिजली) परियोजना है जिसमें रामनगर जिले में कनकपुरा के पास एक जलाशय का निर्माण शामिल है। पड़ोसी तमिलनाडु इस परियोजना का विरोध कर रहा है और आशंका जता रहा है कि अगर यह परियोजना पूरी हो जाती है तो राज्य प्रभावित होगा। परियोजना का उद्देश्य बेंगलुरु और पड़ोसी क्षेत्रों में पेयजल सुनिश्चित करना तथा 400 मेगावाट बिजली पैदा करना है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 9,000 करोड़ रुपये है।

 

 


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Content Editor

rajesh kumar

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