सलमान रुश्दी पर हुए हमले को लेकर आखिर क्यों चुप रहे भारतीय राजनीतिक दल और सरकार !
punjabkesari.in Friday, Aug 19, 2022 - 11:30 AM (IST)
नेशनल डेस्क: मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' और 'सैटेनिक वर्सेज' जैसे उपन्यासों के लेखक सलमान रुश्दी पर हुए हमले के बाद भारत सरकार व राजनीतिक दलों ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है। यहां तक कि भारत के मुस्लिम समाज के नेताओं और नामचीन लोगों ने भी रुश्दी पर हमले के मामले पर बोलने से परहेज ही किया है। बेंगलुरु में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रुश्दी पर हमले के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि मैंने भी इस बारे में पढ़ा है।
मेरा मानना है कि यह एक ऐसी घटना है जिसका पूरी दुनिया ने नोटिस लिया है और जाहिर है इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। जिन कुछ नेताओं में निजी तौर पर रुश्दी पर हमले की निंदा की है उनमें माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पार्टी के मीडिया चीफ पवन खेड़ा और शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी शामिल है। जबकि न बीजेपी और न मोदी सरकार और ना ही कांग्रेस ने इस पर कोई आधिकारिक बयान दिया है।
भाजपा ने राजीव गांधी सरकार के अक्टूबर में 1988 में किताब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले की मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण के रूप में आलोचना की थी। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने द सैटेनिक वर्सेज विवाद के बाद पहली बार फरवरी 1999 में रुश्दी को भारत यात्रा के लिए वीजा प्रदान किया था और वह 2000 में भारत भी आए थे। सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने अब सोच-समझकर फैसला किया है कि ऐसी किसी भी घटना पर टिप्पणी करने से परहेज किया जाए जिसमें अंतरराष्ट्रीय प्रभाव शामिल हों। इसलिए विशेष रूप से देख जाए तो रुश्दी प्रकरण संवेदनशील है। हाल ही में पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा प्रकरण के बाद जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बवाल मचा तो जाहिर है ऐसे में रुश्दी जैसे संवेदनशील मामले पर टिप्पणी करने से स्थिति और भी जटिल हो सकती है।
भाजपा के एक पूर्व मंत्री का कहना है कि पार्टी ने 2014 से अंतरराष्ट्रीय संबंधों से जुड़े मुद्दों पर टिप्पणी नहीं करने का निर्णय लिया है। सत्ता में पार्टी होने के नाते भाजपा उन मुद्दों पर टिप्पणी नहीं कर सकती जो सरकार की स्थिति के विपरीत चल सकते हैं। उधर विदेशों में प्रधानमंत्री मोदी की छवि को लेकर पार्टी में एक कड़ा संदेश गया है कि ऐसा कुछ भी न करें जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करे और उन्हें या उनकी सरकार को शर्मिंदा करे। पूर्व मंत्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि अमरीकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद भाजपा के साथ-साथ आरएसएस में कई लोग ताइवान के पास चीनी सैन्य अभ्यास पर टिप्पणी करने के इच्छुक थे, लेकिन भारत सरकार के नाजुक संतुलन अधिनियम को ध्यान में रखते हुए चुप रहे।
सलमान रुश्दी भारत में पैदा हुए फिर ब्रिटेन चले गए और अब अमेरिका के नागरिक हैं। लेकिन 1988 में 'सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद जो विवाद हुआ उसका भी भारत से गहरा नाता है। उस वक्त भारत में राजीव गांधी की सरकार थी। उनकी सरकार ने 'सैटेनिक वर्सेज' को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया था। भारत इस किताब को बैन करने वाला पहला देश बन गया था।
उस वक्त खुद रुश्दी ने राजीव गांधी को चिट्ठी लिख कर किताब को प्रतिबंधित करने पर अपनी नाखुशी जताई थी।1990 में लिखे गए एक लेख में उन्होंने कहा था कि किताब बैन करने की मांग मुस्लिम वोटों की ताकत का पावर प्ले है। कांग्रेस इस वोट बैंक पर निर्भर रही है और इसे खोने का जोखिम नहीं ले सकती। जाहिर है रुश्दी पर हमले पर कांग्रेस का कोई आधिकारिक बयान न आने का सिरा अतीत में उठाए गए उसके इस कदम से जुड़ा है। वरना वह कई बार कथित तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामले में मोदी सरकार को घेर चुकी है।