सुप्रीम कोर्ट के समर्थन में आए रिटायर्ड जज, कहा- ये लोग लोकतांत्रिक संस्थाओं पर करते हैं आघात
punjabkesari.in Wednesday, Aug 19, 2020 - 06:44 PM (IST)
नई दिल्लीः सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और नौकरशाह समेत नागरिकों के एक समूह ने वकील प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना के एक मामले में दोषी करार देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना करने वालों पर निशाना साधा है। न्यायालय के फैसले की निंदा करने वालों को घेरते हुए इन नागरिकों ने आरोप लगाया है कि ये लोग संसद, चुनाव आयोग और शीर्ष अदालत जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ों पर आघात करने का हर अवसर भुनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो अपमानजनक ट्वीट के मामले में अवमानना का दोषी ठहराया था।
Group of citizens, incl retired judges & bureaucrats, write to CJI, over people criticising SC's conviction of lawyer Prashant Bhushan in a contempt case; state, "Unfortunate when political ends of lawyers aren't served by court decision, they vilify it with scandalizing remarks" pic.twitter.com/o3Ld6U787L
— ANI (@ANI) August 19, 2020
न्यायमूर्ति अरुणा मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले में भूषण को सुनाई जाने वाली सजा पर दलीलें 20 अगस्त को सुनेगी। नागरिकों के समूह ने एक बयान में कहा, ‘‘हम कुछ लोगों के बयानों से बहुत चिंतित हैं जो खुद के सिविल सोसायटी का एकमात्र प्रतिनिधि होने का गलत दावा करते हैं और संसद, चुनाव आयोग तथा अब उच्चतम न्यायालय जैसे भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों पर हमला करने के हर अवसर का इस्तेमाल करते हैं।''
समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी 30 जुलाई को एक याचिका प्रेषित की थी जिसमें कहा गया कि छिपे हुए राजनीतिक एजेंडा वाले कुछ समूह जो संविधान और लोकतंत्र का एकमात्र संरक्षक होने का दावा करते हैं, को लोकतांत्रिक संस्थाओं, विशेष रूप से शीर्ष अदालत का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पत्र पर 100 से अधिक लोगों ने दस्तखत किये हैं जिनमें मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के आर व्यास, सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली, पूर्व पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्रा और पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पी सी डोगरा आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और ‘अदालत की अवमानना' को कोई ‘दबाव समूह' न्यायोचित नहीं ठहरा सकता।