विवादों के साए में रहा राफेल
punjabkesari.in Friday, Nov 15, 2019 - 11:40 AM (IST)
नई दिल्ली: राफेल मामले पर काफी समय से विवाद चल रहा है। हालांकि भारत को इसकी खेप मिलनी शुरू हो गई है इसके बाद भी विवाद जिंदा है। बीते लगभग सभी चुनावों में विपक्ष ने इस मुद्दे को जोर-शोर के साथ उठाया था। मिग व जगुआर विमानों की खराब हालत और लड़ाकू विमानों की कमी को देखते हुए लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए कवायद शुरू की गई थी। पहले क्षमता बढ़ाए रखने के लिए 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन की जरूरत थी जिसको बाद में 34 कर दिया गया था। वाजपेयी सरकार ने 126 राफेल विमान खरीदने का पहली बार प्रस्ताव रखा। बाद में कांग्रेस ने आगे बढ़ाया और 2007 में खरीद को मंजूरी दी थी।
सौदे से पहले गतिरोध
यूपीए सरकार के दौरान टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध के कारण सौदा अंतिम रूप नहीं ले सका। एक बिंदु पर दसॉल्ट राजी नहीं था। भारत चाहता था यहां तैयार होने वाले राफेल की गुणवत्ता की जिम्मेदारी भी कंपनी ले, लेकिन कंपनी इसके लिए तैयार नहीं थी। दसॉल्ट के मुताबिक भारत में इसके उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत थी, जबकि एचएएल ने इसके तीन गुना अधिक मानव घंटों की जरूरत बताई थी। इसकी वजह से विमान पर आने वाली लागत काफी बढ़ जाती।
ऐसे शुरू हुआ विवाद
फ्रांस से राफेल पर सौदे के बाद यूपीए ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कहीं अधिक कीमत पर यह सौदा किया है। यूपीए का कहना था कि उनकी सरकार के मुकाबले एनडीए ने यह सौदा करीब साढ़े बारह सौ करोड़ रुपये अधिक में किया है। वहीं सरकार की तरफ से कहा गया है पहले सौदे में राफेल के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कहीं नहीं थी जबकि महज मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस दिए जाने की बात कही गई थी। सरकार का दावा था कि सौदे के बाद फ्रांस की कपंनी मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगी।
कौन-कौन थे होड़ में
- अमरीका का बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट
- अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन
- रूस का मिखोयान मिग-35
- फ्रांस का डसॉल्ट राफेल
- ब्रिटेन का यूरोफाइटर टाइफून
- स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन
चुनने की वजह
- 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ दे रही थी
- एक विमान 428 करोड़ में खरीदने की बात थी
- 108 विमानों की असेंबलिंग भारत में होनी थी, 18 तैयार विमान मिलते
- सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी शामिल था
एनडीए सरकार की डील
- 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही
- एक विमान की कीमत 1555 करोड़ रुपए
कांगे्रस के एतराज
- इस सौदे में घोटाले का आरोप लगाया है
- सौदे से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक किए जाएं
- सौदे को लेकर मोदी सरकार में हड़बड़ी क्यों थी
कब क्या हुआ
- 2007 : रक्षा मंत्रालय से 126 बहुपयोगी लड़ाकू विमान की खरीदारी के लिए अनुरोध पत्र आमंत्रित
- 2008: अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस समूह ने रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजिस लिमिटेड की स्थापना की।
- 2012: दसॉल्ट एविएशन की बोली सबसे कम पाई गई।
- 2014: कार्य बंटवारे के लिए एचएएल और दसॉल्ट एविएशन के बीच करार
- 108 विमानों के लिए एचएएल 70 फीसदी और दसॉल्ट के 30 फीसदी काम पर सहमति
- 2015: फ्रांस से पूरी तरह से निर्मित 36 विमान खरीदने की घोषणा
- 2016: सरकार ने संसद को बताया एक विमान 670 करोड़ रुपए का
- मार्च 2018 : उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर स्वतंत्र जांच कराने व कीमत संसद को बताने की मांग
- सितम्बर 2018 : न्यायालय ने सौदे पर रोक लगाने की याचिका सुनने को तैयार
- अक्तूबर 2018 : न्यायालय ने केंद्र से सौदे की प्रक्रिया सीलबंद लिफाफे में मांगी
- नवम्बर 2018 : केंद्र ने कीमत संबंधी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी
- दिसम्बर 2018 : न्यायालय ने कहा कि मोदी सरकार की प्रक्रिया में कहीं शंका नहीं
- सीबीआई जांच व प्राथमिकी दर्ज करने की याचिकाएं खारिज
- राहुल गांधी ने सदन में सौदे को 1 लाख 30 हजार करोड़ का बताया
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