'PM मोदी ने कश्मीर पर पाक की तरफ फैकी लूज़ बॉल, छक्का लगाना इमरान का काम'
punjabkesari.in Monday, Oct 21, 2019 - 11:22 AM (IST)
इस्लामबादः पिछले कुछ समय से कश्मीर और भारत-पाकिस्तान तनाव मुद्दा पूरी दुनिया में सबसे अधिक चर्चा में है। यही नहीं पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते भारत प्रशासित कश्मीर, FATF और एक विपक्षी नेता मौलाना फ़ज़लुर्रहमान के होने वाले आज़ादी मार्च से जुड़ी ख़बरें सबसे ज़्यादा सुर्ख़ियों में रहीं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भले ही हर फोरम पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ बयान देते रहते हैं और कश्मीरियों का समर्थन करते रहते हैं लेकिन पाकिस्तान में एक वर्ग ऐसा भी है जो कश्मीर के मामले में इमरा की कड़ी आलोचना करता है और उन्हें इस मामले में पूरी तरह असफल मानता है। अख़बार जंग में सलीम साफ़ी ने एक कॉलम लिखा है जिसका शीर्षक है 'कश्मीर-अब क्या होगा?'।
मोदी की हिम्मत बेमिसाल
इस कॉलम में जहां उन्होंने कश्मीर के मामले में पाकिस्तान और ख़ासकर इमरान की जमकर आलोचना की है वहीं उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिम्मत को बेमिसाल बता दिया है।उनके अनुसार कश्मीर के मामले में इमरान बुरी तरह नाकाम रहे हैं। वो लिखते हैं कि 65, 71 और फिर करगिल की जंग हुई। इन जंगों के अलावा भी कई बार ऐसा हुआ कि भारत और पाकिस्तान की सेना एक दूसरे के सामने आईं लेकिन कभी भी भारत सरकार ये हिम्मत नहीं कर सकी कि कश्मीर के संवैधानिक अधिकारों में कोई बदलाव कर सके। ये पहली बार हुआ है जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने कश्मीर के संवैधानिक अधिकारों को छीनते हुए उसके विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया है।
इमरान एक नाकाम बल्लेबाज
वो आगे लिखते हैं, ''कहा जा रहा था कि मोदी ने कश्मीर के मामले में ये फ़ैसला लेकर पाकिस्तान की तरफ़ एक लूज़ बॉल फेंक दी है और अब इस पर छक्का लगाना हमारा काम है। यहां तक कहा जाने लगा कि कश्मीर की आज़ादी अब या कभी नहीं। लेकिन सवाल ये है कि मोदी की इस लूज़ बॉल पर पाकिस्तान चौका-छक्का तो दूर की बात एक भी रन नहीं बना सका। ऐर अब इमरान एक नाकाम बल्लेबाज़ की तरह मोदी से दूसरी लूज़ बॉल का इंतजार कर रहे हैं।''
पाक ने की अमरीका को अम्पायर समझने की गलती
सलीम साफ़ी इसका कारण बताते हुए लिखते हैं, ''इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि हम अपने ऊपर भरोसा करने के बजाए अमरीका को अम्पायर समझने और उस पर निर्भर रहने की ग़लती करते रहे हैं। ''संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में इमरान ख़ान ने ज़ोरदार तक़रीर ज़रूर की लेकिन पाकिस्तान को अमरीका का कोई समर्थन नहीं मिला। यूएन असेम्बली की बैठक में इस्लामी देशों में से केवल दो तुर्की और मलेशिया और बाक़ी दुनिया में केवल चीन के विदेश मंत्री ने कश्मीर का ज़िक्र किया।
चीन ने भी छोड़ा साथ
वो कहते हैं इस मामले में चीन ने भी पाक साथ नहीं दिया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए तो उन्होंने कश्मीर पर कोई बात नहीं की। इतिहास में पहली बार हुआ कि कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत के लिए पाकिस्तान इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी की बैठक तक नहीं बुलवा सका। वो आगे लिखते हैं, ''अफ़सोस की बात है कि ओआईसी का नेतृत्व इस समय सऊदी अरब कर रहा है जिसकी सुरक्षा के लिए हमने अपने पूर्व सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ़ को भिजवा रखा है और जिसके ग़म में हम कश्मीर के मसले को छोड़कर सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता करने में लगे हैं।''
इमरान रचा रहे ढोंग
इमरान ख़ान के इस क़दम की भी सलीम साफ़ी जमकर आलोचना करते हुए लिखते हैं, ''मुझे तो लगता है कि कश्मीर के मामले में नाकामी के बाद उससे ध्यान हटाने के लिए ही वो सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता करने का ढोंग रचा रहे हैं। लेकिन हम वहां भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि न तो हम सऊदी अरब से और न ही ईरान से कोई बात मनवा सकते हैं।
FATF में भारत का नाम घसीटने की कोशिश
इसके अलावा फ़ाइनैंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) के पाकिस्तान के बारे में दिए गए फ़ैसले की ख़बर भी सारे अख़बारों में प्रमुखता से छपी। एफ़एटीएफ़ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरक़रार रखने का फ़ैसला किया है लेकिन उसने पाकिस्तान को सख़्त चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर पाकिस्तान ने फ़रवरी 2020 तक इस मामले में ज़रूरी क़दम नहीं उठाया तो फिर उसे ब्लैक लिस्ट में डाला जा सकता है। लेकिन कई अख़बारों ने इसमें भी भारत का नाम घसीटने की कोशिश की है। जंग, दुनिया और नवा-ए-वक़्त जैसे अख़बारों ने सुर्ख़ी लगाई है, ''पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में शामिल कराने की भारतीय कोशिश नाकाम।'' इसके अलावा एक प्रमुख विपक्षी नेता मौलाना फ़जलुर्रहमान की प्रस्तावित आज़ादी मार्च और ब्रिटेन के शाही जोड़े की पाकिस्तान यात्रा की ख़बर भी सुर्ख़ियों में रही।