सुनी-अनसुनी: भूचाल ने बदल डाला था मोदी का राजनीतिक जीवन

punjabkesari.in Saturday, May 04, 2019 - 03:49 PM (IST)

इलैक्शन डैस्क (सूरज ठाकुर): नोटबंदी के दौरान राहुल गांधी ने संसद में एक बार कहा था कि ‘सरकार बोलने नहीं दे रही, जब बोलूंगा तो भूचाल आ जाएगा।’ 16वीं लोकसभा के आखिरी सत्र के दिन पी.एम. मोदी ने संसद के 5 सालों के कार्यकाल को याद करते हुए कहा था कि हम सुनते थे कि भूचाल आएगा मगर उनके कार्यकाल के दौरान संसद में कोई भूचाल नहीं आया। जब नरेंद्र मोदी 2014 में पी.एम. बने थे तो इलैक्ट्रानिक मीडिया ने उनकी जीवनी को अपने-अपने ढंग से बेहतर दर्शाने का प्रयास किया। आज हम आपको बता रहे हैं कि पी.एम. मोदी की राजनीति को वास्तव में एक ‘भूचाल’ ने ही सही दिशा प्रदान की थी।  2001 में जब गुजरात में भूकंप के आने से करीब 20 हजार लोग मारे गए थे तब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ था। तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की नीतियों पर सवाल उठने पर नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई थी। यही सफर उन्हें 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी तक ले आया। 

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ऐसे शुरू हुई थी कहानी
वर्ष 1988 में संजय जोशी व नरेंद्र मोदी आर.एस.एस. के कर्मठ कार्यकत्र्ताओं में से एक थे। नरेंद्र मोदी गुजरात में पहले से ही वहां कार्यरत थे। इस दौरान संजय जोशी को गुजरात का भाजपा प्रभारी और नरेंद्र मोदी को भाजपा का महासचिव नियुक्त किया गया। दोनों की जिम्मेदारी राज्य में पार्टी इकाई को मजबूत करना था। यह अलग बात है कि इस जिम्मेदारी के दौरान भाजपा में शंकर सिंह वाघेला की बगावत के कारण मोदी और जोशी में मतभेद पैदा हो गए थे। 1995 में सत्ता को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के बीच खींचतान शुरू हुई। वाघेला कांग्रेस में शामिल हो गए। इस पूरे घटनाक्रम के बीच केशुभाई पटेल के हाथों से मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई और सुरेश मेहता गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने।

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जहां भेजा जाता था वहां चल देते थे मोदी
यहां तक भी सब ठीक चल रहा था कि केशुभाई पटेल एक बार फिर 1998 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। पार्टी की इस जीत का श्रेय पूरी तरह से संजय जोशी को गया। इस कारण संजय जोशी और नरेंद्र मोदी के रिश्तों के बीच खटास बढ़ती चलती गई। संजय जोशी के प्रभावशाली होने के चलते मोदी को पार्टी मुख्यालय दिल्ली भेज दिया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी ने अपना सारा जीवन संघ को समॢपत कर दिया था। उन्हें जहां भेजा जाता वह वहां चल देते। ऐसे कहा जाता है कि 1998 में दोबारा भाजपा के सत्ता में आने के बाद वह गुजरात आकर वहां के लोगों की सेवा करना चाहते थे लेकिन संजय जोशी ने उनकी राह में रोड़े अटकाए।

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भूचाल से ऐसे खुला भाग्य
वर्ष 2001 में गुजरात भूचाल की चपेट में आ गया। इस दौरान करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई। सरकार पर आपदा प्रबंधन को लेकर सवाल उठने लगे। दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोडऩा पड़ा। इस दौरान नरेंद्र मोदी के लिए फिर से गुजरात के दरवाजे खुल गए। उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2002 में विधानसभा चुनाव में भाजपा फिर से गुजरात में काबिज हुई। मोदी को अपनी तरफ  से हाशिए पर धकेलने वाले संजय जोशी को दिल्ली भेज दिया गया। वहां उन्हें पार्टी संगठन के महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने संगठन में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की लेकिन 2005 में वह एक सी.डी. स्कैंडल में फंस गए और उन्हें पार्टी से वनवास लेना पड़ा।

गुजरात दंगे भी नहीं हिला पाए थे कुर्सी
साल 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओँ को जला दिए जाने की घटना के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका दर्द पूरा गुजरात और देश कभी नहीं भुला पाएगा। मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब 1000 से 2000 लोग मारे गए थे। मोदी पर इल्जाम लगा कि उन्होंने दंगों को भड़काने का काम किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य के हालात को देखते हुए मोदी के इस्तीफे की भी मांग की थी जबकि तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवानी और अन्य नेताओं ने उनकी कुर्सी कायम रखने की वकालत की थी। गोधरा कांड के बाद ही वर्ष 2005 में मोदी को अमरीका ने वीजा देने से इंकार कर दिया था।

जोशी अब तक हैं बेपटरी
मोदी बनाम जोशी की लड़ाई में दूसरा अध्याय तब आया जब पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी संजय जोशी को पार्टी में वापस लाए और उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मनोनीत किया। इसके विरोध में नरेंद्र मोदी पार्टी की अहम मीटिंगों से नदारद रहने लगे और यू.पी. चुनावों में पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं किया। मई, 2012 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो नरेंद्र मोदी ने आने से इंकार कर दिया। उन्होंने शर्त रखी कि जब तक संजय जोशी इस्तीफा नहीं देते तब तक वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नहीं होंगे। इसके बाद संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देना पड़ा। यही वह समय था जब दिल्ली के दरवाजे मोदी के लिए खुलने लगे थे। मोदी में गजब का आत्मविश्वास है शायद तभी उन्होंने 16वीं लोकसभा सत्र के आखिरी दिन सांसदों को कहा था कि मैं मई के अंतिम सप्ताह में ‘मन की बात’ करूंगा।     


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Anil dev

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