निसंतान दंपतियों के लिए वरदान है आईवीएफ, विश्व में अरबों डॉलर का बाजार

punjabkesari.in Tuesday, Aug 09, 2022 - 01:17 PM (IST)

नेशनल डेस्क: पूरे विश्व में ही नहीं अपितु भारत में इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) बाजार में तेजी आई है। वर्तमान में विश्व में आईवीएफ का बाजार अरबों डॉलर का है। एम्स दिल्ली का एक अध्ययन कहता है कि देश में करीब 10 से 15 फीसदी विवाहितों के जीवन पर कोरोना का प्रतिकूल असर पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशों से करीब 25 हजार निसंतान जोड़े भारत में आईवीएफ कराते हैं। हैरत की बात तो यह है कि आइवीएफ सेंटर व स्पर्म-एग बैंक देश के युवक और युवतियों के लिए पैसे कमाने का साधन भी बनते जा रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई कॉलेजों के छात्र, मॉडलिंग स्टूडेंट व खिलाड़ी तक अपने स्पर्म बेचकर अपने शौक पूरे कर रहे हैं।

बता दें कि आईवीएफ प्रक्रिया का प्रयोग सबसे पहले इंग्लैंड में 1978 में किया गया था। इस ट्रीटमेंट में महिला के अंडों और पुरुष के शुक्राणुओं को मिलाया जाता है। जब इसके संयोजन से भ्रूण बन जाता है, तब उसे वापस महिला के गर्भ में रख दिया जाता है। कहने को यह प्रक्रिया काफी जटिल और महंगी है, लेकिन यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए वरदान है, जो कई सालों से गर्भधारण की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं। अन्य सभी चिकित्सा प्रक्रियाओं और दवाओं की तरह, आईवीएफ के अपने जोखिम और विफलताएं हैं लेकिन इसकी अपनी खूबियां और लाभ भी हैं।

देश में निसंतान दंपति बच्चे के चाहत में जो कुछ भी उनसे धार्मिक या वैज्ञानिक स्तर पर बन पड़ता है, वे करने के लिए तैयार रहते हैं। देश के आईवीएम सेंटर भी निसंतान दंपतियों का सहारा बन रहे हैं, जहां कई बार उन्हें ठगी का भी शिकार होना पड़ रहा है। गुजरात, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कई ऐसे मामले आए, जहां इलाज के बहाने महिलाओं के अंडाणु निकालकर अन्य निसंतान दंपतियों को बेच दिए गए हैं। हालांकि यह भी दावा है कि  भारतीय चिकित्सा परिषद की नैतिक समिति ने आईवीएफ कार्य के लिए कुछ निश्चित आचार संहिता निर्धारित की हैं। नियमों और विनियमों का ये समूह न केवल मरीजों के हितों की रक्षा करता है, बल्कि मेडिकल प्रेक्टिशनर्स को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में आईवीएफ से 90 लाख बच्चों का जन्म हो चुका है। देश में हर साल 1800 आईवीएफ क्लीनिकों में करीब 2.5 लाख महिलाओं का ट्रीटमेंट हो पाता है, जबिक जरूरत 6 लाख को होती है। इंडियन मेडिकल रिसर्च सेंटर की गाइडलाइन के मुताबिक 21-55 आयु वर्ग के पुरुष स्पर्म,23-35 वर्ष की एक बच्चे की मां अंडाणु दान कर सकती है। स्पर्म-एग की क्वालिटी से कीमत तय होती है। गौरतलब है कि दुनिया भर में निःसंतानता की समस्या से लाखों जोड़े जूझ रहे हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन (2018) के अनुसार 10 से 14 प्रतिशत भारतीय आबादी निःसंतानता से प्रभावित है। विश्व में कोरोना संक्रमण, बेरोजगारी, देर से शादी, खराब खानपान, अनियमित दिनचर्या व नशा घटती प्रजनन दर का कारण बनी है।


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Content Writer

Anil dev

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