आशीष मिश्रा की जमानत रद्द होने पर राकेश टिकैत बोले- कोर्ट के पावर से ही देश ठीक चलेगा

punjabkesari.in Monday, Apr 18, 2022 - 03:05 PM (IST)

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत सोमवार को रद्द कर दी और उससे एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा। वहीं सुप्रीम कोर्ट  के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय किसान  के प्रवक्ता राकेश टिकैत का बयान आया है। उन्होंने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट अपने पावर का इस्तेमाल करे तो देश ठीक चल सकता है। राकेश टिकैत ने कहा कि 
सुप्रीम कोर्ट ठीक काम करती है, यदि काम करने दिया जाए। 

 टिकैत ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को अब पीड़ित किसानों को सुरक्षा, मुआवजा और न्याय दिलाने के लिए काम करना चाहिए। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता टिकैत ने ट्वीट किया, ‘‘उच्चतम न्यायालय द्वारा मंत्री के पुत्र आशीष की जमानत रद्द करने से किसानों में न्याय की उम्मीद जगी है। उत्तर प्रदेश सरकार पीड़ित किसानों की सुरक्षा-मुआवजा-न्याय दिलाने का काम करे। बेगुनाह किसानों को जेल से निकलवाए। पूर्ण न्याय मिलने तक संघर्ष जारी रहेगा।'' इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत सोमवार को रद्द कर दी और उससे एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा। 

वहीं मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत व न्यायमूर्ति हिमा कोहली की विशेष पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अप्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखा और प्राथमिकी की सामग्री को अतिरिक्त महत्व दिया। शीर्ष अदालत ने प्रासंगिक तथ्यों और इस तथ्य पर ध्यान देने के बाद कि पीड़ितों को सुनवाई का पूरा अवसर नहीं दिया गया था, गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए जमानत अर्जी को भेज दिया। फैसले के प्रभावी हिस्से को पढ़ने वाले न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “पीड़ितों की सुनवाई से इनकार और उच्च न्यायालय द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी में जमानत आदेश रद्द करने योग्य है।” उन्होंने कहा कि “आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता और इसे खारिज करना होगा।” पीठ ने कहा कि यह मानने की जरूरत नहीं है कि आरोपी की जमानत अर्जी पर वही न्यायाधीश सुनवाई नहीं कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस पहलू को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ देना बेहतर है। 

मिश्रा की जमानत रद्द करवाने के लिये दायर किसानों की याचिका पर शीर्ष अदालत ने चार अप्रैल को अपना आदेश सुरक्षित रखा था। उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश की पीठ ने 10 फरवरी को मिश्रा को जमानत दे दी थी, जो चार महीने से हिरासत में था। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय ने मिश्रा को जमानत देने के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि जब मुकदमा शुरू होना बाकी था तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, घावों की प्रकृति जैसे “अनावश्यक” विवरण में नहीं जाना चाहिए था। आशीष की जमानत रद्द करने की मांग करने वाली किसानों की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखते हुए पीठ ने इस तथ्य का भी कड़ा संज्ञान लिया था कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं की थी, जैसा कि शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त एसआईटी द्वारा सुझाया गया था। पीठ ने कहा था, “यह कोई ऐसी बात नहीं है जहां आप वर्षों तक प्रतीक्षा करते हैं।” 

पीठ ने कहा, “न्यायाधीश पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आदि में कैसे जा सकते हैं। हम जमानत के मामले की सुनवाई कर रहे हैं, हम इसे लंबा नहीं करना चाहते। गुण-दोष में जाने और घाव आदि को देखने का यह तरीका जमानत के सवाल के लिए अनावश्यक है।” जमानत को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने 16 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार और आशीष मिश्रा से उनका पक्ष मांगा था। किसानों की तरफ से पेश हुए वकील द्वारा 10 मार्च को मामले के प्रमुख गवाह पर हमले के संदर्भ में जानकारी दिए जाने पर न्यायालय ने प्रदेश सरकार को गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था। पिछले साल तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हिंसा के दौरान आठ लोग मारे गए थे। यह हिंसा तब हुई थी जब किसान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इलाके के दौरे का विरोध कर रहे थे। उत्तर प्रदेश पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार, एक वाहन जिसमें आशीष मिश्रा बैठे थे, उसने चार किसानों को कुचल दिया था। घटना के बाद गुस्साए किसानों ने वाहन चालक और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस दौरान हुई हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हो गई थी। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anil dev

Recommended News

Related News