Dolo 650 ने ब्रिकी के मामले में तोड़े सारे रिकॉर्ड, कोरोना काल में बनी भारतीयों का पसंदीदा टेबलेट्स

punjabkesari.in Wednesday, Jan 19, 2022 - 01:42 PM (IST)

नई दिल्ली: दो साल पहले जब कोरोना फैलने के जब ये भ्रांति सामने आई कि 500 एमजी की पैरासिटामोल गोली से बुखार नहीं उतर सकता तो एक पुराना ब्रांड 650 एमजी की डोलो दवा यानी पैरासिटामोल ही प्रचलन में आ गई। जानकारों की माने तो इसका उत्पादन रातोंरात ज्यादा होना शुरू हुआ नतीजन आज डोलो भारत में बुखार की गोलियों की बिक्री में दूसरे नंबर पर आती है। इसका सालाना टर्नओवर करीब 307 करोड़ रुपये हैं वहीं जीएसके की कैलपोल इससे थोड़ी सी ही ऊपर है और इसका टर्न ओवर 310 करोड़ है। हालांकि  2010 में डोलो 650 को सबसे प्रबंधित ब्रांड का अवार्ड हासिल हुआ था। इसके साथ ही इसे और भी कई सम्मान और मान्यताएं हासिल हुईं। 

एक शोध करने वाली संस्था के डाटा के मुताबिक 2019 में कोविड के प्रकोप से पहले भारत में डोलो गोली के 7.5 करोड़ पत्ते (स्ट्रिप्स) बेचे गए थे। वहीं नवंबर 2021 तक इसकी बिक्री बढ़कर दोगुनी ( 14.5 करोड़ पत्ते (स्ट्रिप्स) यानी 217 करोड़ गोली हो चुकी थी। भारत सितंबर 2020 में कोविड की पहली लहर की चपेट में आया था, इसके बाद 2021 में भारत ने दूसरी लहर की भयावहता को झेला जिसमें भारत में काफी जानें गईं। इस दौरान भारत में कुल 3.5 करोड़ कोविड के मामले सामने आए और महामारी के इस काल में 350 करोड़ डोलो की गोलियां बेची गईं, यानी ये मान लें की सारी दवा की खपत हुई तो कोरोना काल में 350 करोड़ बार दवा गटक गए हैं देशवासी।

डोलो कैसे आई दोबारा प्रचलन में
इसी तरह भारत में चर्चित क्रोसिन बिक्री में छठे स्थान पर है और इसकी बिक्री 23.6 करोड़ रुपये है। दिलचस्प बात यह है कि डोलो 650 ना सिर्फ सबसे ज्यादा बिकने वाली गोली है बल्कि यह गोली गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च करने वाले कीवर्ड में से भी एक रही। जनवरी 2020 तक इसे 2 लाख बार ढूंढा गया। वहीं दूसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली कैलपोल को 40,000 बार खोजा गया। यह खोज दूसरी लहर के दौरान देखी गई। पैरासिटोमोल एक आम दवा है जो आमतौर पर दर्दनिवारक और बुखार को कम करने के काम आती है और यह दवा 1960 में बाजार में आई थी। क्रोसिन, डोलो और कैलपोल यह तीनों चर्चित ब्रांड हैं जो पैरासिटोमोल के नाम पर जाने जाते हैं। भारत में अब डोलो सिरदर्द,  दांत का दर्द, कोविड का बुखार या शरीर में दर्द, हर मर्ज का ही इलाज है।

पैरासिटामोल की तरह ही है डोलो
इसकी प्रसिद्धि को लेकर महाराष्ट्र के महात्मा गांधी इन्स्टिट्यू ऑफ मेडिकल साइंस में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. एसपी. कालांत्री का मानना है कि यह कई बातों का एक साथ योग हो सकता है, जिसमें अच्छी मार्केटिंग, सोशल मीडिया के साथ अच्छी किस्मत भी शामिल है, क्योंकि लगभग सभी पैरासिटामोल एक जैसा ही व्यवहार करती हैं। डोलो ब्राडिंग के लिए रखा गया नाम है जो आसानी से जुबान पर आ जाता है। यह किसी भी अनजान बीमारी के चलते होने वाले बुखार में सबसे कारगर होती है। 1973 में बेंगलुरु में स्थापित हुई माइक्रो लैब्स जो डोलो की निर्माता कंपनी है, ने शायद इस अवसर को महसूस कर लिया था। इस तरह से डोलो 650 एक चर्चित ब्रांड बनकर उभरा है।


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Content Writer

Anil dev

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