आखिर क्यों भारत में घुसपैठ की बार-बार कोशिश करता है चीन, जानें 1962 के युद्ध के बाद कैसे बिगड़े हालात?

punjabkesari.in Tuesday, Dec 07, 2021 - 02:37 PM (IST)

नेशनल डेस्क: ढलाव वाली टिन की छत, लकड़ी और ईंट से बने घरों के छोटे-से शहर तवांग में आने वाले पर्यटकों के लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि आजादी के बाद भारत की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक इसी शहर में 59 साल पहले लड़ी गयी थी। हर जगह नूडल्स से लेकर डोसा तक बेच रहे रेस्त्रां और नए कारोबारी उद्देश्यों के लिए घर लौट रहे स्थानीय लोगों को देखकर यह अंदाजा लगा पाना कठिन है कि इस शहर से उत्तर की ओर 40 किलोमीटर दूर सीमा पर कहीं तनाव भी बना हुआ है। तवांग अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से करीब 445 किलोमीटर दूर और 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। चीन के साथ लगती सीमा पर हिमालय के बर्फीले हिस्से में स्थित इस शहर की रक्षा के लिए सुरक्षाबलों का काफिला मौजूद रहता है। भारत के उत्तरी पड़ोसी चीन ने 1962 में तवांग पर हमला किया था जिसमें करीब 800 भारतीय सैनिक मारे गए थे और 1,000 सैनिकों को बंधक बना लिया गया था। 

चीन पिछले एक दशक से सीमा के करीब सैन्य ढांचों का निर्माण कर रहा है जिनमें नए राजमार्ग, सैन्य चौकियां, हेलीपैड और तिब्बत के पठार पर मिसाइल प्रक्षेपण स्थल शामिल हैं। सैन्य सूत्रों के अनुसार, बर्फ से ढकी पर्वतीय सीमा पर चीन की ओर से गश्त दोगुनी करने और कई मौकों पर ‘‘अनजाने'' में सीमा पार करने के जवाब में भारतीय सेना ने भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त तेज कर दी है। करीब 14,000 लोगों की आबादी वाले इस शहर का केंद्र प्राचीन तवांग मठ है जिसका निर्माण 1680 में किया गया था और इसमें ज्यादातर बौद्ध मोनपा और तिब्बती लोग रहते हैं। कुछ नेपाली, मारवाड़ी, असमी और बंगाली निवासी भी यहां रहते हैं। चीन के साथ सीमा पर तनाव के बावजूद और सीमा से महज तीन घंटे या कई बार उससे भी कम की दूरी पर स्थित तवांग अपनी सामरिक स्थिति से बेखबर दिखायी देता है। शहर में 2016 में पांच होटल थे और अब यह संख्या बढ़कर 20 हो गयी है । और भी होटलों का निर्माण किया जा रहा है। 

तवांग वापस लौटे, लंदन में प्रशिक्षित वकील ल्हामो यांगजोम एक लघु फुटबॉल स्टेडियम बनाना चाहते हैं। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘कारोबार अच्छा चल रहा है। देश और विदेश में बड़े शहरों में जाने के बाद युवा अब घर लौट रहे हैं और उन्होंने नयी दुकानें, पर्यटक कंपनियां और होटल खोले हैं। मैं खुद फुटबॉल स्टेडियम बनाने पर विचार कर रहा हूं।'' हालांकि, कहीं न कहीं पृष्ठभूमि में ‘चीनी ड्रैगन' लोगों के दिमाग में बैठा हुआ है। यांगजोम ने कहा, ‘‘कई बार मेरी कार के रेडियो में केवल चीनी एफएम बजता है, मुझे नहीं पता कि यह कैसे होता है। कई बार फोन दिखाता है कि जिस विहंगम पर्वत या झरने की मैंने तस्वीरें ली हैं वे चीन में किसी स्थान की हैं... ऐसा लगता है कि जैसे हर समय कोई हमें देख रहा है।'' लेकिन अब भी लोगों के जेहन में 1962 अक्टूबर की यादें बसी है जब तवांग में लड़ाई हुई थी। जब धोन्दुप परिवार ने सुना था कि तवांग घाटी और बोमडिला के बीच एक और पर्वतीय क्षेत्र सेला में भारतीय रक्षा बल कमजोर पड़ गए हैं तो वे घबराकर उस काफिले का हिस्सा बन गए जो सुरक्षा के लिए असम की ओर रवाना हुआ था। 

उसी साल 23 अक्टूबर को चीनी सेना के करीब 16,000 सैनिकों ने तवांग को घेर लिया था। तवांग जिले के कुछ लोग तिब्बत और भूटान चले गए जबकि कुछ ने वहीं रुकने का साहस दिखाया। तवांग मठ के थुप्तेन शेरिंग ने कहा, ‘‘ज्यादातर लामा (बौद्ध भिक्षु) भाग गए क्योंकि चीनी पीएलए का धर्म विरोधी इतिहास रहा है...हालांकि उनमें से 20-30 वहीं रह गए थे।'' विश्लेषकों के अनुसार, चीनियों ने पूर्व नियोजित रणनीति के तहत वहीं रह गए कुछ लोगों को लुभाया और मठ या शहर में लूटपाट नहीं की। कुछ ऐसा ही उन्होंने तिब्बत में किया जिस पर उन्होंने 1950 में कब्जा जमाया था। सुरक्षा विश्लेषक मेजर जनरल बिस्वजीत चक्रवर्ती (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘‘चीनियों ने तवांग पर ध्यान केंद्रित किया जो आज अरुणाचल प्रदेश में है और फिर नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी को बुलाया क्योंकि वहां तिब्बत के छठे दलाई लामा का जन्म हो चुका था और ये क्षेत्र उस सांस्कृतिक-धार्मिक क्षेत्र का हिस्सा थे जहां तिब्बती बौद्ध धर्म का बोलबाला था।'' दलाई लामा की सरकार और नयी दिल्ली के बीच 1914 में मैकमोहन रेखा पर सहमति बनी थी जिसमें हिमालयी क्षेत्र पर भारत और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारित की गयी। हाालंकि, चीन ने कभी इस सीमा को स्वीकार नहीं किया। तवांग में एक घर पर हर साल पांच रुपये का कर लगाया जाता है ताकि उन्हें इस बात पर राजी किया जा सके कि उन्हें भारतीय नागरिक के तौर पर मान्यता दी गयी है। 


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Content Writer

Anil dev

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