...तो भारत में पहले से ही मौजूद था ओमीक्रान !

punjabkesari.in Tuesday, Dec 07, 2021 - 10:56 AM (IST)

नेशनल डेस्क: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार और जाने-माने संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची के उस बयान ने पूरे विश्व को असमंजस में डाल दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि ओमिक्रॉन को रोकना संभव नहीं है और यदि जांच हो तो कोई बड़ी बात नहीं कि यह पहले से देश में मौजूद हो। उनके इस बयान से खासकर भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं क्योंकि बेंगलुरु में जो स्वास्थ्य कार्यकर्ता ओमीक्रॉन से संक्रमित पाया गया है वह विदेश से नहीं लौटा था और न ही वह विदेश से लौटे किसी व्यक्ति के संपर्क में था। फाउची बयान को सही माने तो यह कहना सटीक हो सकता है कि भारत में पहले से ही ओमीक्रॉन मौजूद था। चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस बात से इनकार नहीं करते।    

कैसे फैला 30 से ज्यादा देशों में संक्रमण
फाउची के अनुसार, ओमिक्रॉन को रोकना संभव नहीं है और यदि जांच हो तो कोई बड़ी बात नहीं कि यह पहले से देश में मौजूद हो। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर मध्य में ओमिक्रॉन के संक्रमण की पुष्टि होते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पूरी दुनिया में सतर्कता बढ़ा दी थी। पहली बार दक्षिण अफ्रीका में इसके मामले मिले थे। 249 कोरोना पॉजिटिव नमूनों की जांच में 74 फीसदी मामलों में ओमिक्रॉन पाया गया था। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक वेरिएंट तब पकड़ में आया जब यह बड़े पैमाने में फैल गया था। इसका संक्रमण बड़े स्तर पर चला गया नतीजन यह अब 30 से ज्यादा देशों में फैल चुका है।

देश में मिल सकते हैं ओमीक्रॉन के कई मामले
वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि बेंगलुरु में जिस प्रकार से स्थानीय नागरिक में इस वेरिएंट की पुष्टि हुई है, वह यही दर्शाता है कि देश में इसकी एंट्री हो चुकी थी। देश में रोजाना दस हजार नए संक्रमित आ रहे हैं, यदि इनमें से ज्यादा से ज्यादा मामलों की जीनोम सिक्वेंसिंग की जाए तो कई और ओमिक्रॉन संक्रमित मिल सकते हैं।

सिर्फ पांच फीसदी की ही जीनोम सिक्वेंसिंग 
एनसीडीसी के प्रमुख सुजीत के सिंह कहते हैं कि जुलाई के पहले तक देश में कई वेरिएंट आ रहे थे जिनमें अल्फा के नौ, बीटा के 0.44, गामा के 0.004, डेल्टा के 63 तथा एवाई-1-एवाई-25 तक के 17 और कप्पा के 11 फीसदी मामले दर्ज किए गए थे। उसके बाद सिर्फ डेल्टा और उससे परिवर्तित हुए एवाई के मामले ही दर्ज किए गए हैं। जितने भी कोरोना संक्रमित मामले मिलते हैं, उसके पांच फीसदी की ही जीनोम सिक्वेंसिंग करने के प्रावधान हैं। सच्चाई यह है कि इतनी जांच हो ही नहीं पाती है। प्रतिमाह तीन लाख मामले देश में आ रहे हैं। इस प्रकार 15 हजार नमूनों की जीनोम सिक्वेंसिंग प्रतिमाह होनी चाहिए,लेकिन इसके आधे ही ही होते हैं।

क्या कहता है भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय
इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने दो महत्वपूर्ण बातें कही हैं। एक डैल्टा के बड़े पैमाने पर संक्रमण और टीकाकरण बढ़ने के कारण ओमिक्रॉन का ज्यादा प्रभाव देश पर नहीं होगा। दूसरा इसके बचाव के लिए जो रणनीति डैल्टा के लिए अपनाई गई है, वही अब भी काम आएगी। बता दें कि देश में 85 फीसदी वयस्क आबादी को एक और करीब 50 फीसदी को दोनों टीके लग चुके हैं।


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Content Writer

Anil dev

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