ऑफ द रिकॉर्डः ‘अलग किसान बजट लाने की मोदी की योजना आंदोलन के कारण टली’
punjabkesari.in Sunday, Feb 07, 2021 - 06:02 AM (IST)
नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट में रेलवे पर अलग अध्याय जोडऩे के बजाय अलग ‘किसान बजट’ लाने पर विचार किया था। किसानों के आंदोलन से बहुत पहले जब मोदी ने कहा था कि 5 सालों में वह किसानों की आय दोगुना करेंगे, तब से वह इस विषय पर सोच रहे हैं। इस मुद्दे पर काफी काम किया गया है तथा नीति आयोग को भी इस संबंध में जोड़ा गया है।
मोदी रेल बजट को सदा से लोकलुभावन मानते आए हैं और उन्होंने उसे लगभग दफन ही कर दिया है। उन्होंने रेल बजट को केंद्रीय बजट का हिस्सा बना दिया और अब रेलवे व उसकी नई परियोजनाओं को लेकर मीडिया में सुर्खियां नहीं छपतीं। केवल कुछ नई मैट्रो चलाने की बातें ही प्रकाशित हो रही हैं। मोदी किसानों और ग्रामीण भारत को नई दृष्टि से देखना चाहते थे।
उन्होंने कृषि मंत्रालय का नाम भी कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय कर दिया है। किसान बजट पर अभी मंथन चल ही रहा था कि किसान कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमा पर आ जमे तो इसे किनारे कर दिया गया। मोदी उनमें से नहीं हैं जो दबाव में झुक जाएं। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने भूमि अधिग्रहण विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बावजूद उसे राज्यसभा से पारित कराने के लिए जोर नहीं डाला था।
यह जानना रोचक होगा कि 70 के दशक में चौधरी चरण सिंह ने पहली बार किसान बजट के विचार को आगे बढ़ाया था। गोवा के राज्यपाल सतपाल मलिक उन दिनों चौधरी चरण सिंह के संकटमोचक थे। वह उनके बहुत करीब थे और वही चौधरी चरण सिंह के राजनीतिक मामले देखते थे। जब मोरारजी देसाई किसान बजट के विचार से सहमत नहीं हुए तो चौधरी चरण सिंह जो पहले से ही परेशान थे, बागी हो गए थे। बाद में सतपाल मलिक ने ही बीच में पड़कर कांग्रेस में चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने की सहमति बनवाई। देवी लाल जब उपप्रधानमंत्री थे तो उन्होंने भी 1989-90 में किसान बजट लाने की इच्छा जताई थी, परंतु उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। मोदी ने भी किसान बजट पर सोचा परंतु फिलहाल उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का विचार छोड़ दिया है।