भारत में बढ़ रहे MDR-टीबी के मरीज, बेअसर हो रही दवा

punjabkesari.in Thursday, Dec 12, 2019 - 09:26 AM (IST)

नई दिल्ली: हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में टी.बी. खत्म होने का नाम नहीं ले रही है जबकि कुछ ऐसे भी केस हैं जिन पर टी.बी. की दवा असर नहीं कर रही है। ये मामले मल्टीड्रग-प्रतिरोधी तपेदिक (मल्टीड्रग रजिस्टैंट-टी.बी.) के हैं। वैश्विक टी.बी. रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के कुल मल्टीड्रग-प्रतिरोधी तपेदिक मरीजों का 27 प्रतिशत हिस्सा भारत में है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रति लाख व्यक्तियों के पीछे 9.6 प्रतिशत मरीज एम.डी.आर.-टी.बी. के हैं। यह जानकारी स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी। चौबे ने कहा, ‘‘2016 के लिए भारत में मल्टीड्रग-रजिस्टैंट/रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी टी.बी. (एम.डी.आर/आर.आर.-टी.बी.) रोगियों की अनुमानित संख्या 1,30,000 है।’’

 

उन्होंने कहा कि इसका कारण पब्लिक सैक्टर में गलत प्रस्क्रिप्शन हो सकता है जो पहले निजी क्षेत्र में व्याप्त थी और अब टी.बी. का पता लगाने और उपचार के लिए निजी क्षेत्र को बेहतर तरीके से शामिल करने के लिए वचनबद्ध किया जा रहा है। इसका दूसरा कारण निर्धारित समय से पहले उपचार बंद करना भी हो सकता है। उपचार में देरी से भी ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्यमंत्री ने इस मामले पर कहा कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों के माध्यम से संशोधित राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम (आर.एन.टी.सी.पी.) चलाया गया है। मंत्री ने कहा कि सरकार ने कई सुधारात्मक उपाय किए हैं जैसे कि टी.बी. की जांच के लिए उच्च जोखिम वाली आबादी में स्क्रीनिंग की व्यवास्था की गई है, वहीं अधिसूचना तहत मुफ्त डायग्नोज और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्राइवेट सैक्टर को भी वचनबद्ध किया गया है।

उन्होंने बताया कि शीघ्र डायग्नोज सुनिश्चित करने के लिए बलगम संग्रह और परिवहन तंत्र को मजबूत करने की पहल की गई है। कार्यक्रम ने पहुंच बढ़ाने के लिए इंडिया पोस्ट के साथ भी करार किया है।

स्थानीय स्तर पर तंत्र को मजबूत करने के लिए कोरियर एजैंसियों, मानव कोरियर के साथ समझौता किया गया है। प्रोग्राम में जल्द से जल्द दवा प्रतिरोध का पता लगाने के लिए तेजी से आणविक निदान का नैटवर्क बढ़ाना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम ने 2018 से सार्वभौमिक ड्रग संवेदनशीलता परीक्षण (यू.डी.एस.टी.) को लागू कर दिया है जिसके अनुसार सभी अधिसूचित टी.बी. रोगियों के लिए रिफैम्पिसिन हेतु प्रतिरोध परीक्षण अनिवार्य है।

 

राष्ट्रीय रणनीतिक योजना पर काम
संचार अभियान का उद्देश्य जागरूकता के स्तर को बढ़ाने और समुदाय के बीच कलंक को कम करने के लिए मीडिया का भी सहारा लिया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने 13 मार्च, 2018 को 2025 तक भारत में टी.बी. को समाप्त करने के लिए ‘‘टी.बी. मुक्त भारत’’ अभियान शुरू किया था। सरकार 2025 तक टी.बी. के खात्मे के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एन.एस.पी.) (2017-25) लागू कर रही है।

एक्टिव केस ढूंढने के साथ-साथ गुमनाम मामलों की खोज करना सबसे महत्वपूर्ण रणनीति है। 2017 में 3 राऊंड राष्ट्रीय अभियान के रूप में आयोजित किए गए थे, 5.5 करोड़ से अधिक आबादी की जांच की गई थी और कुल 26,781 अतिरिक्त टी.बी. मामलों का निदान किया गया था। 2018 में, 3 राऊंड राष्ट्रीय अभियान के रूप में आयोजित किए गए थे, 18.9 करोड़ से अधिक आबादी की जांच की गई थी और कुल 47,307 अतिरिक्त टी.बी. मामलों का निदान किया गया था। स्वास्थ्य मंत्री ने 25 सितम्बर, 2019 को ‘टी.बी. हारेगा देश जीतेगा’ अभियान भी शुरू किया जिसमें राज्यों के लिए सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों के लिए सामग्री के नए सैट लॉन्च और प्रसारित किए गए हैं।


विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की रिपोर्ट अनुसार

  • 4,90,000- केस एम.डी.आर.-टी.बी. के सामने आए विश्वभर में
  • 2,40,000-लोगों की मौत एम.डी.आर./आर.आर. टी.बी. से। सबसे ज्यादा मामले और मौतें एशिया में
  • 1,53,000- केस एम.डी.आर./आर.आर. टी.बी. के डिटैक्ट
  • 1,30,000 -मरीजों का एम.डी.आर.-टी.बी. का इलाज शुरू

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Seema Sharma

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