कुर्सी संभालते ही कोविंद को करना होगा ये बड़ा फैसला!

punjabkesari.in Monday, Jul 17, 2017 - 02:16 PM (IST)

नई दिल्लीः देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए आज हो रहे चुनाव का नतीजा 20 जुलाई को आएगा और 25 जुलाई तक देश के नए राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करेंगे। राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करते ही रामनाथ कोविंद के सामने अपने कार्यकाल का पहला बड़ा फैसला लेने की चुनौती होगी। ये फैसला आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने का हो सकता है।

चुनाव आयोग इस मामले में सुनवाई पूरी कर चुका है और इस पर किसी भी समय आयोग का फैसला आ सकता है। ये फैसला आयोग राष्ट्रपति के पास भेजेगा और बतौर राष्ट्रपति कोविंद को आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता रद्द करने को लेकर पहला बड़ा फैसला करना होगा। ये मामला मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास पहुंचा था जिन्होंने इस मामले में आयोग से प्रेसीडेंशियल रेफरेंस मांगा था। आयोग पिछले 2 साल से इस मामले की सुनवाई कर रहा था और ये सुनवाई अब पूरी हो चुकी है।

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क्या होगी प्रक्रिया?
चुनाव आयोग ने एक अर्द्धनाययक बॉडी की तरह पूरे मामले की जांच की है और इस मामले में याचिकाकर्त्ता प्रशांत पटेल और आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद यदि आयोग का फैसला आप के 21 विधायकों के खिलाफ जाता है तो उन्हें इस मामले में अदालत में चुनौती देना का पूरा अधिकार है। ये चुनौती तभी संभव हो सकेगी यदि राष्ट्रपति ने इस पर तुरंत फैसला न लिया। यदि राष्ट्रपति ने मामले में फैसला ले लिया तो मामले को अदालत की शरण में ले जाने का विकल्प खत्म हो जाएगा। क्योंकि राष्ट्रपति के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

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क्या है मामला?
दिल्ली सरकार ने मार्च 2015 में 21 आप विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया जिसको प्रशांत पटेल नाम के वकील ने लाभ का पद बताकर 21 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की। याचिकाकर्त्ता का कहना है कि अाम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने का मामला लाभ के पद के दायरे में आता है और केजरीवाल सरकार ने इन विधायकों को संसदीय संचिव बनाकर तमाम सरकारी सुविधाएं दी हैं। लिहाजा इनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए।

नहीं काम आई केजरीवाल की चाल
मामले के चुनाव आयोग में पहुंचने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में एक बिल पारित करके सीपीएस के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दिया था।  आयोग ने इस मामले में याचिकाकर्त्ता की दलील की स्वीकार कर लिया था। इस बीच मामले में समानंतर कार्रवाई उच्च न्यालय में भी चल रही थी। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में दिल्ली के 21 संसदीय सचिवों की न्युक्ति को अवैध ठहरा दिया। जिसके चलते इन 21 विधायकों को संसदीय संचिव पद से इस्तीफा देना पड़ा था।


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