Vikas Dubey-एनकाउंटर पर जानिए क्या कहता है भारत का कानून?, ये हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

punjabkesari.in Friday, Jul 10, 2020 - 01:13 PM (IST)

नेशनल डेस्कः कुख्यात अपराधी एवं कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले का मुख्य आरोपी विकास दुबे शुक्रवार सुबह कानपुर के भौती इलाके में पुलिस मुठभेड़ मे मारा गया। कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार ने बताया कि तेज बारिश हो रही थी। पुलिस ने गाड़ी तेज भगाने की कोशिश की जिससे वह डिवाइडर से टकराकर पलट गई और उसमें बैठे पुलिसकर्मी घायल हो गए। उसी मौके का फायदा उठाकर दुबे ने पुलिस के एक जवान की पिस्तौल छीनकर भागने की कोशिश की और कुछ दूर भाग भी गया। तभी पीछे से एस्कार्ट कर रहे STF के जवानों ने उसे गिरफ्तार करने की कोशिश की और उसी दौरान उसने एसटीएफ पर गोली चला दी जिसके जवाब में जवानों ने भी गोली चलाई और वह घायल होकर गिर पड़ा।

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जवान उसे अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। विकास के एनकाउंटर के बाद अब यूपी पुलिस पर सवाल उठने लगे हैं। सभी यही पूछ रहे हैं कि जब विकास का सरेंडर ही करना था तो उसे गिरफ्तार ही क्यों किया। इस एनकाउंटर की सच्चाई चाहे जो हो लेकिन चर्चा होने लगी है कि क्या एनकाउंटर के लिए किसी तरह के दिशा-निर्देश बनाए गए हैं? तो यहां आज हम आपको एनकाउंटर को लेकर भारत क्या दिशा-निर्देश हैं उसके बारे में बताने जा रहे हैं।

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भारतीय संविधान में 'एनकाउंटर' शब्द का जिक्र नहीं
भारतीय संविधान में कहीं भी 'एनकाउंटर' शब्द का ज़िक्र नहीं है। इसका सिर्फ पुलिसिया भाषा में इस्तेमाल होता वो भी तब जब कोई खतरनाक अपराधी या आतंकी पुलिस या सुरक्षाबलों की कस्टडी से भागने की कोशिश करता है। पुलिस को उसे रोकने या पकड़ने के लिए उसके खिलाफ बंदूक का प्रयोग करना पड़ता है। अगर अपराधी या आतंकी पुलिस पर फायरिंग करे तो सुरक्षा बल भी जवाबी कार्रवाई करते हैं। इसके अलावा पुलिस पर हमला करने वाले का भी एनकाउंटर सुरक्षाकर्मी कर सकते हैं। 

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ये हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

  • सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसके तहत हर एनकाउंटर की जांच को अनिवार्य किया गया था। ये जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाती है और जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिसकर्मियों पर एक्शन होता है।
  • अगर एनकाउंटर फर्जी पाया जाए तो इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता। 
  • सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन के अनुसार, CRPC की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच अनिवार्य होती है। पुलिसकर्मियों को हर एनकाउंटर के बाद इस्तेमाल किए गए हथियार व गोलियों का हिसाब देना होता है।
  • अनुचित (फेक) एनकाउंटर में दोषी पाए गए पुलिसकर्मी को निलंबित करके उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाती है। अगर दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती है तो पीड़ित सत्र न्यायाधीश से इसकी शिकायत कर सकता है।
  • खुफिया गतिविधियों की सूचना लिखित या इलेक्ट्रोनिक तरीके से आंशिक रूप में ही सही पर रिकॉर्ड अवश्य की जानी चाहिए।
  • यदि सूचना के आधार पर पुलिस एनकाउंटर के दौरान हथियारों का इस्तेमाल करती है और ऐसे संदिग्ध की मौत हो जाती है तो आपराधिक जांच के लिए FIR अवश्य दर्ज हो।
  •  एक स्वतंत्र सीआईडी टीम पूरे घटनाक्रम की जांच आठ पहलुओं पर हो। एनकाउंटर में हुई सभी मौतों की मजिस्टेरियल जांच जरूरी है।
  • एनकाउंटर में हुई मौत के संबंध में तत्काल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य आयोग को सूचित करें।
  • अगर एनकाउंटर में अपराधी घायल होता है तो उसे तुरंत मैडिकल की सुविधा दी जाए। अपराधी की मौत पर रिश्तेदारों को सूचित करें।

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Seema Sharma

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