कश्मीरी संगीत: आधुनिकता के प्रचलन में लुप्त होती विरासत
punjabkesari.in Thursday, Jul 21, 2022 - 11:30 PM (IST)
श्रीनगर: कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। इस स्वर्ग में विविधि सांस्कृति विरासत है। बदलते परिवेश में कश्मीरी काव्य ने लोक संगीत के साथ तालमेल बिठाते हुये खुद को और निखारा है। सूफियाना मोसिकी, कश्मीर का क्लासिकल संगीत है और इसे 15वीं शताब्दी में सुलतान जैन-उल-रजीन अबिदीन ने विकसति किया। इसे रहस्यमय संगीत की श्रेणी में रखा गया है और कई कश्मीरी घराने इस संगीत को परफार्म करते हैं।
कुछ दशकों में ही इस संगीत से जुड़े संगीतकारों की संख्या में कमी आई है। साजनवाज परिवार की सातवीं पीढ़ी के कलाकार मुश्ताक अहमद साजनवाज को भी इसी डर ने घेर रखा है। वह कहते हैं, ध्वनि मेरे लिए संगीत का सबसे शुद्ध रूप है , जो किसी भी बाहरी तत्वों से मुक्त और अप्रभावित है।
सूफियाना संगीत
सूफियाना संगीत, एक प्रकार का कोरल वोकल संगीत है। इसमें संतूर, साज-ए-कश्मीर, कश्मीरी सेहतर और तबला की संगत में पांच से बारह संगीतकार एक साथ गाते हैं। रागों की जगह फारसी मकमों का प्रयोग किया जाता है। गीतों के बोल कश्मीरी और फारसी में लिखी गई रहस्यमयी सूफियाना कविताएं होती हैं। सूफियाना संगीत की नीव मकम है।
बदलाव के कारण
कश्मीरी के बदलते सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक हालात सूफियाना संगीत के लुप्त होने का एक कारण हैं। जहां पूरी वादी में इसकी धुन थी वहीं अब यह एकमात्र परम्परा बनकर रह गया है। स्वर्गीय संतूरवादक भजन सोपोरी ने कहा था, सूफियाना संगीत के लुप्त होने का कारण वास्तव में संरक्षण का कम होना और आर्थिक प्रोत्साहन नहीं मिलना है। लोग अपने बच्चों को वो चीज नहीं सिखाना चाहते हैं जिससे उनके बच्चों की रोजी-रोटी कमाना संभव न हो।
जम्मू कश्मीर स्टे्ट कल्चरल अकैडमी के पूर्व अतिरिक्त सचिव मेहराजुदीन के अनुसार, सूफियाना संगीत हमेशा से शाही दरबार की शान रहा है और महाराजाओं के दौर में भी। 1947 के बाद जैसे ही महाराजाओं का दौर खत्म हुआ तो सूफियाना संगीत ने महफिलों, धार्मिक स्थलों और यात्राओं की शरण ले ली। संगीत प्रेमी वीरवार, शुक्रवार और शनिवार को अपने घरों में इस तरह की महफिलों का आयोजन करते थे और इससे कलाकारों को मुआवजा मिलता था। सूफियाना कलाकारों की बुकिंग शादी समारोहों के लिए भी होती है।