नजरिया: छात्र राजनीति को तिलांजलि देने का समय

punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2020 - 12:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): कुछ नेताओं के डिग्री विवाद को नजरअंदाज कर दिया जाए तो बिना शक इस देश के अधिकांश नेता छात्र राजनीती से ही सियासत का ककहरा पढ़कर आगे बढे हैं। बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कांग्रेस के राजयसभा में डिप्टी लीडर आनंद शर्मा तक यह बात सभी दलों पर समान रूप से लागू होती है। अलबत्ता जीपी और आनंद शर्मा तो एक ही यूनिवर्सिटी  से पढ़े हुए हैं। लेकिन वर्तमान में जो तांडव शिक्षण संस्थानों में इस राजनीति  ने मचाया हुआ है उसके चलते  अब यह फैसला करने का वक्त शायद आ गया है जब तमाम शिक्षण संस्थानों में छात्र चुनाव बैन कर दिए जाएं।  खासकर जेएनयू विवाद की छाया में इसपर गहनता से गौर होना चाहिए।  हम पढऩा चाहते हैं लेकिन वो राजनीती कर रहे हैं.... ये जुमला कमोबेश हर बड़े शिक्षण संसथान में  आम है।  कभी एक दल तो कभी दूसरा। ..सब अपनी सुविधा अनुसार इसका इस्तेमाल करते हैं। अभी भी यही हो रहा है।  

PunjabKesari

देश की अर्थ व्यवस्था पर मंथन के समय हम जेएनयू  जैसे विषयों पर उलझे हुए हैं। आखिर क्यों ? क्यों नहीं इन सब समस्याओं को एक ही झटके में समाप्त किया जाता?  क्या कभी किसी निजी संसथान में  ऐसे आंदोलन अक्सर सुनने को मिले हैं ? यह सब वहीं हो रहा है जहां  सरकारी सुविधाओं के पानी से सींचकर पर सियासी पनीरी उगाई जा रही है। अगर ऐसा ही है तो क्यों नहीं अलग से कुछ ऐसे संसथान देश के चारों कोनों में खोल दिए जाते जहां सिर्फ वही जाएं जिनको फकत सियासत करनी है। फिर लोगों को तय करने दो कि उनमे से कौन कितना फन्ने खां है।  लेकिन बाकी निन्यानवे फीसदी बच्चे जो पढऩा चाहते हैं उनका इंटेलिजेंस, समय और  धन क्यों इस तरह के फसाद में बर्बाद किया जाये? अतीत पर नजर डालें तो पाएंगे कि कई विश्वविधालय ऐसे है जहां छात्र राजनीति के चलते बवाल हुए और जब छात्र चुनाव बैन हुए तो माहौल सामान्य हो गया। हरियाणा में पूरे 21 साल छात्र चुनाव बैन रहे और दो साल पहले ही यह बैन हटा है। वो भी खटटर सरकार की राजनीतिक रणनीति के चलते वर्ना शिक्षण संस्थानों की हिंसा पर डाट लग गया था।  

PunjabKesari

पंजाब यूनिवर्सिटी में भी छात्र चुनाव प्रतिबंधित रहे।  इलाहबाद, उत्तराखंड, गुरुकल कांगड़ी विश्व विधालय , हिमाचल प्रदेश समेत  अधिकांश राज्यों में  ऐसा हो चुका है।  कुछ जगह  तो बैन अभी भी जारी है। जाहिर है यह प्रतिबंध किसी फासीवादी ताकत द्वारा नहीं लगाया गया था अपितु प्रशासकों ने जब देखा कि हालात काबू से बाहर हो रहे हैं, हिंसा रुक नहीं रही तो ऐसे फैसले लिए गए। फैसले कारगर भी सिद्ध हुए हैं और अब  सम्बंधित  राज्यों के शिक्षण संस्थानों में शांति है। वर्तमान में जेएनयू मामले में बीजेपी सरकार विपक्ष के निशाने पर है कि दिल्ली चुनाव के चलते जानबूझकर जीएनयू में हिंसा फैलाई जा रही है ताकि ध्रुवीकरण में मदद मिले। चलो मान लिया यह सच है। तो भी इसका हल यही है न कि छात्र चुनाव बैन कर दिए जाएं।  न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. कुछ दिन तथाकथित सियासी स्याप होगा और उसके बाद सब वैसे ही ठीक हो जायेगा जैसे अधिकांश राज्यों में हुआ। यह विशुद्ध रूप से सियासी मसला है और सियासत खत्म करके ही इसका हल निकलेगा। शिक्षण संस्थानों में  छात्रों के हित  बचाये रखने के लिए  कई तरह की वैकल्पिक व्यवस्था है जिसका प्रयोग किया जाना चाहिए।  लेकिन छात्र चुनाव तुरंत प्रभाव से पूरे देश में बंद कर दिए जाने चाहियें। ..यकीं मानिए कुछ साल के भीतर ही इसके  बड़े सकारात्मक परिणाम सामने होंगे। 

PunjabKesari
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Edited By

Anil dev

Recommended News

Related News