PAK के पंजा साहिब गुरुद्वारे में बैसाखी मनाने पहुंचा 815 भारतीय सिखों का जत्था

punjabkesari.in Tuesday, Apr 13, 2021 - 11:01 AM (IST)

पेशावरः वैशाखी  का त्यौहार मनाने के लिए 800 से अधिक भारतीय सिखों का जत्था पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 16 वीं सदी के गुरुद्वारा पहुंचा। एवेक्यू ट्रस्ट बोर्ड के अधिकरियों और सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधिकारियों ने वाघा सीमा पर श्रद्धालुओं का अभिवादन किया। बोर्ड एक सांविधिक संस्था है और यह विभाजन के बाद भारत से पलायन करने वाले हिंदुओं और सिखों की धार्मिक संपत्ति तथा धार्मिक ढांचों का प्रबंधन करता है।

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वाघा बॉर्डर पर यात्रियों के लिए लंगर का किया इंतजाम
बोर्ड के प्रवक्ता अमीर हाशमी ने कहा, ‘‘कुल 815 सिख यात्री गुरुद्वारा पंजा साहिब,हसन अब्दल में वैशाखी की रस्मों में शामिल होने के लिए भारत से वाघा बॉर्डर के जरिए सोमवार को पहुंचे।'' यह गुरुद्वारा लाहौर से करीब 350 किमी की दूरी पर स्थित है। उन्होंने बताया कि वाघा बॉर्डर पर यात्रियों के लिए लंगर का इंतजाम किया गया था।  बता दें कि 13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया। इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया। आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है। 

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 इसलिए खास है गुरुद्वारा पंजा साहिब
लाहौर से 350 किलोमीटर दूर स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब सिखों के महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। मान्यता है कि सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव इस स्थान पर आए थे।  यहां एक पहाड़ी थी जिसपर एक फकीर वली कंधारी रहा करता था। जब  गुरु नानकजी पहाड़ी के नीचे ध्यान लगाकर बैठे थे तो वली कंधारी ने पहाड़ी से गुरु नानकजी पर एक बड़ा सा पत्थर लुढ़का दिया। तब गुरु नानकजी ने अपने पंजे से उस पत्थर को रोक दिया और उस पत्थर पर गुरुजी के पंजे के निशान छप गए । आज भी गुरुद्वारा में वो पत्थर रखा हुआ है।  पंजे से पत्थर रोकने के कारण ही गुरुद्वारे का नाम पंजा साहिब पड़ा। इस गुरुद्वारे को 16वीं सदी में बनाया गया था।

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Content Writer

Tanuja

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