यासीन मलिक को जेल भिजवाने में जैक, जाॅन और अल्फा की अहम भूमिका

punjabkesari.in Thursday, May 26, 2022 - 11:08 PM (IST)

नयी दिल्ली : जैक, जाॅन  और अल्फा राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के उन संरक्षित गवाहों में से कुछ नाम हैं जिन्होंने प्रतिबंधित जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को सजा दिलवाने में अहम भूमिका निभाई।

ये नाम आतंकी वित्त पोषण मामले में महत्वपूर्ण संरक्षित गवाहों को उनकी सुरक्षा के लिए पहचान छिपाते हुए दिए गए थे। आतंकवाद के वित्त पोषण मामले में एनआईए ने 70 स्थानों पर छापे के दौरान लगभग 600 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए थे।

दिल्ली की अदालत ने बुधवार को मलिक को आतंकवाद के वित्त पोषण मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

घटनाक्रम से अवगत अधिकारियों ने बताया कि लगभग चार दर्जन संरक्षित गवाह थे लेकिन कूट (कोड) नाम केवल कुछ चुनिंदा लोगों को दिए गए थे जो एक पुख्ता मामला बनाने में मदद कर सकते थे।

मामले की जांच एजीएमयूटी कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी महानिरीक्षक अनिल शुक्ला के नेतृत्व में एनआईए की एक टीम ने की थी, जिसके तत्कालीन निदेशक शरद कुमार संगठन का नेतृत्व कर रहे थे।

कुमार ने गुरुग्राम में अपने घर से बताया, "फैसला निश्चित रूप से मामले की जांच करने वाली टीम की कड़ी मेहनत का इनाम है। मैं सजा से बहुत संतुष्ट हूं। उसने (यासीन) मौत की सजा से बचने के लिए अपराध स्वीकार कर चतुराई दिखाई। लेकिन फिर भी, उसकी सजा को देश के खिलाफ युद्ध छेडऩे का सपना देखने वालों के लिए एक निवारक के रूप में काम करना चाहिए।"

अधिकारियों ने कहा कि अब अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तैनात शुक्ला एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखे जाते हैं, जिन्होंने अलगाववादियों को धन की आपूर्ति रोककर कश्मीर घाटी में पथराव की घटनाओं को समाप्त किया। उन्होंने मामले में संरक्षित गवाह रखने की नीति का पालन करने का फैसला किया था ताकि कोई कोर-कसर न रह जाए।

मलिक (66) के खिलाफ आरोप तय करते समय, विशेष एनआईए न्यायाधीश ने संरक्षित गवाहों जैक, जाॅन  और अल्फा समेत अन्य पर भरोसा किया था, जिन्होंने प्रदर्शन और बंद के लिये अन्य हुर्रियत नेताओं के साथ सैयद अली शाह गिलानी और मलिक की नवंबर 2016 में हुई बैठकों के बारे में उल्लेख किया था।

एक अन्य संरक्षित गवाह ने कहा था कि यह गिलानी और मलिक थे जो उसे अखबारों में प्रचार के लिए विरोध कैलेंडर भेजते थे।

एनआईए ने स्वीकारोक्ति बयानों पर अधिक जोर दिया क्योंकि वे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए गए थे जहां आरोपियों को यह पुष्टि करनी होती है कि वे जांच एजेंसी के दबाव के बिना इसे दे रहे हैं।

उनके कबूलनामे को लिखते समय, पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई और कार्यवाही के दौरान कोई भी जांच अधिकारी अदालत परिसर में मौजूद नहीं था। बाद में, अगर ये मुकर गए, तो एनआईए उनके खिलाफ झूठी गवाही का आरोप दायर करेगी।
 


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Content Writer

Monika Jamwal

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