इंदिरा एकादशी: ये कथा पितरों को देगी मोक्ष और आपके लिए खोलेगी स्वर्ग का द्वार

punjabkesari.in Wednesday, Sep 25, 2019 - 07:28 AM (IST)

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आज इंदिरा एकादशी है, जो हर साल श्राद्धों में आती है। ये एकाशी पितृपक्ष में आती है इसलिए ये पितरों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। आज पुण्यदायिनी एकादशी का पवित्र दिन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी की महिमा को विस्तार पूर्वक बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि,"आश्विन मास के कृष्णपक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। जो कोई श्रद्धालु इस व्रत का पालन करता है और विधि-विधान से पूजन करता है वह कभी भी यमपुरी में नहीं जाता। श्राद्धों में आने वाली इस एकादशी की इतनी महिमा है की व्रतधारी इस एकादशी से प्राप्त होने वाले पुण्यों से अपने पूर्वजों को भी यम की यातनाओं से बचा लेते हैं और उन्हें स्वर्ग का पदाधिकारी बना देते हैं। पितृपक्ष में इस एकादशी के आने का उद्देश्य भी यही है कि जिनके पितर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें मुक्ति मिल जाए।"

PunjabKesari Indira Ekadashi 2019

सम्राट इन्द्रसेन के पिता ने अपने जीवन काल में बहुत पाप किए जिस वजह से उन्हें यमलोक में यमदेव द्वारा अनेक यातनाएं सहनी पड़ रही थी। एक दिन रात्रि को स्वप्न में आ कर इन्द्रसेन के पिता ने उनसे कहा," मुझे मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ है। मैं यमपुरी में अपने बुरे कर्मों का दण्ड पा रहा हूं। मेरे विमुक्तिकरण के लिए कोई उपाय करो।"

सपने में अपने पिता को कष्ट में देख उनकी नींद टूट गई और वह बेचैन हो उठे। वे अपने पिता की मुक्ति का उपाय खोजने लगे। इस दौरान नारद मुनि उनसे भेंट करने के लिए आए। उन्होंने राजा से उनकी बेचैनी का कारण पूछा तो उन्होंने अपने सपने की पूरी बात उन्हें बताई और प्रार्थना की कि उन्हें उनके पिता की मुक्ति का मार्ग बताएं। किस प्रकार वह उन्हें यमपुरी से निकाल कर स्वर्ग में स्थान दिला सकते हैं।

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इस पर नारद मुनि जी बोले," राजन! आप आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करें तत्पश्चात व्रत के पुण्य का फल अपने पिता को दे दें, जिससे आपके पिता यमपुरी से निकल कर स्वर्ग में स्थान पाएंगे।"

सम्राट इन्द्रसेन ने देवर्षि नारद के बताए अनुसार विधि-विधान से एकादशी का व्रत किया। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा आदि देकर विदा किया तत्पश्चात एकादशी के पुण्य का फल अपने पिता को दान दे दिया। पुण्य के प्रभाव से इन्द्रसेन के पिता के सभी पाप नष्ट हो गए और वह नरक से स्वर्ग में चले गए। संसार के सभी सुखों को भोगने के बाद इन्द्रसेन ने भी मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में स्थान प्राप्त किया।

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आपके पूर्वज जो स्वर्ग सिधार गए हैं उनके लिए श्री हरि विष्णु से प्रार्थना करें कि उन्हें सद्गति प्रदान करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और यथा संभव दक्षिणा देकर प्रसन्न करें तत्पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करें।


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Niyati Bhandari

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