भारतीय जल्द करेंगे स्वदेशी GPS का इस्तेमाल, सेना को भी होगा लाभ

punjabkesari.in Wednesday, Jul 17, 2019 - 06:52 PM (IST)

नई दिल्लीः अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय यूनियन की तर्ज पर जल्द भारतीयों के लिए भी स्वदेशी जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा। इस स्वदेशी जीपीएस का नाम है ‘नाविक’ यानी नेविगेशन विद इंडियन कान्स्टलैशन। जानकारी मिली है कि बेंगलुरू स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मोबाइल फोन की चिप बनाने वाली कंपनी क्वालकॉम से इस संबंध में चर्चा की है। ताकि जल्द ही अमेरिकी नेविगेशन सिस्टम जीपीएस के स्थान पर स्वदेशी ‘नाविक’ का इस्तेमाल स्मार्टफोन में किया जा सके।

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अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय यूनियन के पास पहले से ही स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम (दिशानिर्देशन प्रणाली)  मौजूद है। जीपीएस अमेरिका का ही नेविगेशन सिस्टम है जिसे फिलहाल हम इस्तेमाल करते हैं। रूस, यूरोपीय यूनियन और चीन क्रमशः ग्लोनास, गैलीलियो और बाईदु नेविगेशन सिस्टम का प्रयोग करते हैं। नेविगेशन सिस्टम को ये देश न केवल नागरिक उपयोग के लिए करते हैं, बल्कि सैन्य जरूरतों में भी इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।

 कारगिल युद्ध ने ‘नाविक’ के विकास में निभाई अहम भूमिका 

सैन्य विशेषज्ञ कहते हैं कि 1999 में कारगिल युद्ध के समय भारत अमेरिकी नैविगेशन प्रणाली की मदद चाहता था लेकिन अमेरिका ने इनकार कर दिया। उसी समय भारतीय वैज्ञानिक समुदाय और सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच यह एकराय बनी कि अब देश को जल्द ही ऐसी प्रणाली विकसित करनी चाहिए। दरअसल इस प्रणाली का इस्तेमाल कर हम दुश्मन के सैन्य ठिकानों का आसानी से पता लगा सकते हैं। 

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क्या है नाविक प्रणाली?

भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आइआरएनएसएस) आठ सेटेलाइटों की एक प्रणाली है जिसे नाविक (नेविगेशन विद इंडियन कान्स्टलैशन) के नाम से भी जानते हैं। इसके सुचारू रूप से कार्य करने के लिए आठ सेटेलाइटों को भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में स्थापित किया जाना था। इसका पहला सेटेलाइट आइआरएनएसएस-1ए 1 जुलाई, 2013 को पीएसएलवी-सी22 लांच व्हीकल से प्रक्षेपित किया गया और इस प्रणाली का अंतिम सेटेलाइट 12 अप्रैल, 2018 को अंतरिक्ष में स्थापित हुआ। ये सेटेलाइट 20 मीटर की शुद्धता के साथ दो स्थानों के बीच की दूरी सटीकता से बता सकते हैं। यह केवल भारत की ही नहीं बल्कि भारतीय सीमा से 1500 किलोमीटर दूरी तक की जानकारी देने में भी सक्षम है। इस लिहाज से यह नेविगेशन प्रणाली पूरे दक्षिण एशिया को कवर करती है।  

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भारतीय सेना को होगा लाभ

यह स्वदेशी प्रणाली आम नागरिकों के लिए ही नहीं बल्कि भारतीय सेना के लिए भी बहुत उपयोगी है। मुख्य रूप से यह दो प्रकार से सेवाएं प्रदान करती है। पहली स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सेवा (एसपीएस) जो सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध होगी। दूसरी रिस्ट्रिक्टेड सेवा (आरएस), केवल सेना और कुछ विशेष यूजर को ही मिलेगी। सेना के पास स्वदेशी प्रणाली होने से दूसरे या दुश्मन देश को हमारी सैन्य गतिविधियों का पता नहीं चलेगा। इसके साथ ही हम अपनी समुद्री सीमा की निगरानी करने में पहले से कई गुणा अधिक सक्षम हो जाएंगे। दूसरी ओर हमारी वायुसेना और थल सेना को आसानी से दुश्मन देश के सैन्य ठिकानें पता लग जाएंगे। जिनकों गाइडेड मिसाइलों से ध्वस्त करना आसान होगा।     


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Author

Ravi Pratap Singh

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